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ईद-ए-मिलाद: क्यों मनाते हैं यह त्योहार? सब कुछ जान लीजिए

इस्लाम धर्म में ईद-ए-मिलाद का त्योहार हजरत मोहम्मद साहब के जन्म दिवस के अवसर पर मानया जाता है। इस दिन लोग मुख्य रूप से शाम या रात के समय इबादत करते हैं।

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प्रतीकात्मक तस्वीर: Photo Credit: AI

ईद-ए-मिलाद, जिसे बारावफात या मिलाद-उन-नबी भी कहा जाता है, इस्लाम धर्म का एक अहम पर्व है। इसे पैगंबर हजरत मोहम्मद साहब के जन्म दिवस की खुशी में मनाया जाता है। इस्लामी कैलेंडर के तीसरे महीने रबी-उल-अव्वल की 12वीं तारीख को उनका जन्म हुआ था। इस साल यह त्योहार भारत के ज्यादा से ज्यादा हिस्सों में 4 सितंबर को मनाया जा रहा है। इस दिन मुस्लिम समुदाय पैगंबर के जीवन, उपदेशों और कुरआन की शिक्षाओं को याद करता है। मान्यता के अनुसार, मोहम्मद साहब ने दुनिया को बराबरी, भाईचारे, दया और इंसानियत का रास्ता दिखाया था।

 

ईद-ए-मिलाद पर मस्जिदों और घरों को रोशनी और सजावट से सजाया जाता है। इस दिन मूल रूप से शाम को इबादत की जाती है। मुस्लिम समुदाय के लोग इस दिन जुलूस और मिलाद की महफिलों का आयोजन करते हैं। जिनमें पैगंबर के जीवन से जुड़ी घटनाएं सुनाई जाती हैं। जगह-जगह लोगों को मिठाइयां बांटी जाती हैं और गरीबों की मदद की जाती है। कुरआन शरीफ की तिलावत और दुआओं का विशेष महत्व होता है। इस पर्व को बारावफात इसलिए भी कहा जाता है क्योंकि पैगंबर का जन्म और निधन दोनों ही रबी-उल-अव्वल की 12वीं तारीख को हुआ था।

 

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ईद-ए-मिलाद का महत्व

  • ईद-ए-मिलाद का आयोजन हजरत मोहम्मद साहब के जन्मदिन की खुशी में होता है। उनका जन्म इस्लामी कैलेंडर के तीसरे महीने रबी-उल-अव्वल की 12वीं तारीख को हुआ था।
  • मोहम्मद साहब को अल्लाह का अंतिम संदेशवाहक माना जाता है, जिन्होंने कुरआन के जरिए इंसानियत, बराबरी, दया और नेक जीवन जीने का संदेश दिया।
  • इस दिन मुस्लिम समुदाय उनके जीवन, उपदेशों और हदीसों (उनके कथनों) को याद करता है।

ईद-ए-मिलाद कैसे मनाई जाती है?

  • इस दिन मस्जिदों और घरों में विशेष सजावट की जाती है।
  • लोग एक-दूसरे को मुबारकबाद देते हैं और मिठाइयां बांटते हैं।
  • मिलाद-उन-नबी की महफिलें आयोजित होती हैं, जिनमें पैगंबर के जीवन, उनके त्याग और उपदेशों का उल्लेख किया जाता है।
  • जुलूस (जश्न-ए-ईद-ए-मिलाद) भी निकाले जाते हैं, जिनमें लोग नारे, कव्वालियां और नात (पैगंबर की प्रशंसा में लिखे गए गीत) पेश करते हैं।
  • गरीबों और जरूरतमंदों की मदद करना, दुआ करना और कुरआन शरीफ की तिलावत करना इस दिन बेहद पुण्यकारी माना जाता है।

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ईद-ए-मिलाद से जुड़ी परंपराएं

  • इसे बारावफात इसलिए कहा जाता है क्योंकि पैगंबर साहब का जन्म और निधन दोनों ही इस्लामी महीने की 12 तारीख को हुआ था। कई जगहों पर यह दिन जुलूस और उत्सव की तरह मनाया जाता है, तो वहीं कुछ समुदाय इसे अधिक सादगी और इबादत के रूप में मनाते हैं।
  • इस दिन का मुख्य संदेश है, पैगंबर मोहम्मद साहब की शिक्षाओं को जीवन में अपनाना और इंसानियत की सेवा करना।
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