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वेद या पुराण, कहां से आया है 'गायत्री मंत्र', क्या है इतिहास?

गायत्री मंत्र को वेदों का अमूल्य रत्न कहा जाता है, वेदों, पुराणों और भगवद्गीता में गायत्री मंत्र को मोक्ष और आत्मशुद्धि का सबसे सरल और प्रभावशाली साधन बताया गया है।

Devi Gayatri and bhagwan surya representational Picture

देवी गायत्री और भगवान सूर्य की प्रतीकात्मक तस्वीर: Photo Credit: AI

गायत्री मंत्र को वेदों का अमूल्य रत्न कहा जाता है। यह सिर्फ एक मंत्र नहीं बल्कि आत्मिक ऊर्जा का अद्भुत स्रोत है। वेदों, पुराणों और भगवद्गीता में गायत्री मंत्र को मोक्ष और आत्मशुद्धि का सबसे सरल और प्रभावशाली साधन बताया गया है। यही कारण है कि यह मंत्र सिर्फ पूजा-पाठ तक सीमित नहीं, बल्कि एक जीवनशैली का हिस्सा बन चुका है। इस मंत्र से जुड़ी कई मान्यताएं हैं। मान्यताओं के अनुसार, यह मंत्र हर सांस के साथ आपको प्रकाश की ओर ले जाता है।

 

गायत्री मंत्र का मूल भाव  यह है कि 'हम उस परम दिव्य प्रकाश का ध्यान करते हैं, जो हमारी बुद्धि को धर्म और सत्य के मार्ग पर प्रेरित करे।' इसके 24 अक्षरों वाले गायत्री छंद का उच्चारण विशेष ध्वनियों से बना है, जो मस्तिष्क, नसों और मन पर सीधा प्रभाव डालते हैं।

 

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गायत्री मंत्र की उत्पत्ति

गायत्री मंत्र का मूल ऋग्वेद के मंडल 3, सूक्त 62, मंत्र 10 में मिलता है। इसे महर्षि विश्वामित्र ने प्रकट किया था। यह मंत्र सूर्य देव, मां गायत्री की उपासना का मंत्र है। इस मंत्र का इस्तेमाल जीवन में सही मार्ग और बुद्धि को शुद्ध करने के लिए किया जाता है। गायत्री मंत्र का छंद 'गायत्री छंद' है, जिसमें 24 अक्षर होते हैं और इसी वजह से इसे गायत्री मंत्र कहा जाता है।

गायत्री मंत्र का मूल रूप

ॐ भूर्भुवः स्वः
तत्सवितुर्वरेण्यं
भर्गो देवस्य धीमहि
धियो यो नः प्रचोदयात्॥

 

शब्दार्थ:

ॐ – यह ब्रह्म (सर्वोच्च ईश्वर) का प्रतीक है। यह तीन अक्षरों से बना है (अ + उ + म) जो क्रमशः सृष्टि, पालन और संहार का द्योतक हैं।

भूः – पृथ्वी लोक, भौतिक जीवन और प्राणशक्ति का प्रतिनिधित्व करता है।
भुवः – अंतरिक्ष लोक, मानसिक और आध्यात्मिक ऊर्जा का द्योतक।
स्वः – स्वर्ग लोक, दिव्यता और आनंद का प्रतीक।

तत् – 'वह' (परमात्मा), जो सबका स्रोत है।
सवितुः – 'सूर्य', या 'सृष्टिकर्ता', जो जीवन को प्रकाश और ऊर्जा देता है।
वरेण्यम् – जो पूजनीय और श्रेष्ठ है, जिसे अपनाने योग्य है।

भर्गः – दिव्य तेज या पवित्र प्रकाश, जो अज्ञान और पाप को नष्ट करता है।
देवस्य – उस परम दिव्य शक्ति का।
धीमहि – हम ध्यान करते हैं, एकाग्र होकर स्मरण करते हैं।

धियो – हमारी बुद्धि, विचार और विवेक।
यः – जो (ईश्वर)।
नः – हमारी (सबकी)।
प्रचोदयात् – प्रेरणा दे, सही मार्ग पर चलने के लिए उकसाए।

 

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पूर्ण भावार्थ

'हम उस परम दिव्य सृष्टिकर्ता के पवित्र तेज का ध्यान करते हैं, जो तीनों लोकों के स्वामी हैं। वह दिव्य शक्ति हमारी बुद्धि को प्रेरित करे, जिससे हम सच्चाई, धर्म और ज्ञान के मार्ग पर चल सकें।'

 

किन वेदों और पुराणों में उल्लेख

  • ऋग्वेद — (मंडल 3, सूक्त 62, मंत्र 10) में इसका मूल रूप।
  • यजुर्वेद — इसमें भी गायत्री मंत्र के महत्व और उसके जप के लाभ बताए गए हैं।
  • सामवेद — इसमें मंत्र के गेय (गाकर) रूप का वर्णन है।
  • भगवद्गीता (अध्याय 10, श्लोक 35) — श्रीकृष्ण ने कहा है कि 'मैं मंत्रों में गायत्री हूं।'
  • विष्णु पुराण, स्कंद पुराण, और पद्म पुराण — इन ग्रंथों में गायत्री मंत्र को ब्रह्मविद्या की कुंजी और मोक्ष का साधन बताया गया है।

गायत्री मंत्र पढ़ने के नियम

  • शुद्ध आचरण — मंत्र का जाप करने से पहले मन, वाणी और शरीर को पवित्र रखना चाहिए।
  • स्नान के बाद — इसे सुबह, दोपहर और संध्याकाल (शाम) को स्नान के बाद पढ़ना चाहिए।
  • आसन का प्रयोग — कुशासन, ऊनी आसन या स्वच्छ कपड़े का आसन लेकर पूर्व या उत्तर दिशा की ओर मुख (मुंह) करके बैठना चाहिए।
  • गायत्री जाप संख्या — आमतौर पर 108 बार जप किया जाता है लेकिन कम से कम 3, 11 या 21 बार भी कर सकते हैं।
  • जप के समय एकाग्रता — मन को विचलित किए बिना, धीमे और स्पष्ट उच्चारण के साथ मंत्र का जाप करना चाहिए।
  • संध्या-वंदन में प्रयोग — वेद परंपरा के अनुसार, गायत्री मंत्र संध्या-वंदन का मुख्य हिस्सा है।

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गायत्री मंत्र जाप के फायदे

  • मानसिक शांति — इसका नियमित जाप तनाव कम करता है और मन को शांत करता है।
  • एकाग्रता में वृद्धि — पढ़ाई और काम में ध्यान केंद्रित करने की क्षमता बढ़ती है।
  • शारीरिक ऊर्जा — प्राणशक्ति बढ़ती है और शरीर में नई ऊर्जा का संचार होता है।
  • नकारात्मकता से मुक्ति — यह मंत्र मन से भय, चिंता और नकारात्मक विचारों को दूर करता है।
  • आध्यात्मिक उन्नति — आत्मज्ञान, करुणा और सत्य के मार्ग पर आगे बढ़ने की प्रेरणा देता है।
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