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कोंकण क्षेत्र का नया साल कब? जानिए गुड़ी पड़वा की तिथि और मान्यताएं

हिंदू धर्म में और खासकर कोंकण में गुड़ी पड़वा पर्व को बहुत ही महत्वपूर्ण माना जाता है। जानते हैं इस पर्व से जुड़ी कुछ खास बातें और महत्व।

Image of Gudi Padwa

गुड़ी पड़वा सांकेतिक चित्र(Photo Credit: Freepik)

गुड़ी पड़वा एक प्रमुख हिंदू पर्व है, जिसे विशेष रूप से महाराष्ट्र, गोवा और कोंकण क्षेत्र में बड़े उत्साह से मनाया जाता है। यह पर्व हर साल चैत्र महीने के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि के दिन मनाया जाता है। यह हिंदू लूनर पंचांग (चंद्र कैलेंडर) पर आधारित है और इसे हिंदू नववर्ष की शुरुआत भी माना जाता है। आइए जानते हैं कि इस वर्ष कब मनाया जाएगा गुड़ी पड़वा पर्व और इससे जुड़ी मान्यताएं।

गुड़ी पड़वा 2025 तिथि

वैदिक पंचांग के अनुसार, चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि 29 मार्च शाम 04 बजकर 27 मिनट पर शुरू हो रही है और इस तिथि का समापन 30 मार्च शाम 12 बजकर 49 मिनट पर समाप्त हो जाएगा। ऐसे में गुड़ी पड़वा पर्व 30 मार्च 2025, रविवार के दिन मनाया जाएगा। बता दें कि इस दिन से मराठी संवत 1947 शुरू होगा।

 

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गुड़ी पड़वा का क्या है अर्थ?

‘गुड़ी’ का अर्थ होता है एक विशेष ध्वज या पताका, जिसे घरों के मुख्य द्वार पर ऊंचाई पर बांधा जाता है। ‘पड़वा’ का अर्थ होता है प्रतिपदा तिथि, यानी महीने का पहला दिन। इस दिन घरों में गुड़ी फहराकर, उत्सव मनाकर और विशेष पकवान बनाकर नववर्ष का स्वागत किया जाता है।

गुड़ी पड़वा की शुरुआत कब हुई?

गुड़ी पड़वा पर्व की शुरुआत को लेकर कई धार्मिक मान्यताएं हैं। माना जाता है कि इसी दिन भगवान ब्रह्मा ने सृष्टि की रचना की थी, इसलिए यह दिन ब्रह्मा जी के दिवस के रूप में भी मनाया जाता है। इसके साथ ही यह भी कहा जाता है कि भगवान राम ने रावण पर विजय प्राप्त कर अयोध्या में इसी दिन प्रवेश किया था, इसलिए इसे विजय और शुभ आरंभ का प्रतीक माना जाता है।

 

इतिहास में यह भी उल्लेख मिलता है कि मराठा शासक छत्रपति शिवाजी महाराज ने भी कई विजय अभियानों की शुरुआत इसी शुभ दिन पर की थी। मराठा साम्राज्य में गुड़ी पड़वा को विजय ध्वज के रूप में मनाने की परंपरा शुरू हुई थी।

 

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किस पंचांग पर आधारित है?

गुड़ी पड़वा हिंदू चंद्र पंचांग पर आधारित पर्व है, जिसमें वर्ष की गणना चंद्रमा की गति के अनुसार होती है। हिंदू धर्म में वर्ष की शुरुआत चैत्र शुक्ल प्रतिपदा से होती है, इसलिए इस दिन को नववर्ष का पहला दिन माना गया है। देश के विभिन्न हिस्सों में इसी दिन को अलग-अलग नामों से मनाया जाता है, जैसे कि उगादी (आंध्र प्रदेश, कर्नाटक), चेटी चंड (सिंधी समुदाय) और नवरेह (कश्मीर)।

गुड़ी फहराने का महत्व

गुड़ी एक कलश, पीला रेशमी कपड़ा, नीम पत्ते, फूल और श्रीफल से सजी होती है। इसे घर के बाहर ऊंचाई पर बांधा जाता है। यह विजय, समृद्धि और सौभाग्य का प्रतीक मानी जाती है। मान्यता है कि गुड़ी लगाने से घर में सकारात्मक ऊर्जा आती है और बुरी शक्तियों का नाश होता है।

 

Disclaimer- यहां दी गई सभी जानकारी सामाजिक और धार्मिक आस्थाओं पर आधारित हैं।

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