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जब गुरु गोबिंद सिंह जी के 40 सिख लड़ाकों ने 10 लाख मुगलों को खदेड़ा

गुरु गोबिंद सिंह के 40 लड़ाकों को युद्ध में भेजने से पहले एक खास संदेश दिया था। जानिए उनके वीरगाथा की कहानी।

AI Image of Guru Gobind Singh

युद्ध क्षेत्र में गुरु गोबिंद सिंह जी।(Photo Credit: AI Image)

गुरु गोबिंद सिंह जी, सिख धर्म के दसवें गुरु थे। गुरु गोबिंद सिंह जो को सिर्फ 9 वर्ष की आयु में गुरु की गद्दी मिल गई थी। उन्होंने अपने शिष्यों के मनोबल को बढ़ाने के लिए कहा ‘चिड़िया नाल मैं बाज लड़ावां, गीदड़ां नू मैं शेर बणावां, सवा लाख ते एक लड़ावां, तां गोबिंदसिंह नाम धरावां’। यह प्रसिद्ध पंक्तियां उस समय कही गई थी, जब उन्होंने सिख समुदाय को एक संगठित और सशक्त रूप देने का संकल्प लिया था।

गुरु गोबिंद सिंह ने कब दिया था ये संदेश

गुरु गोबिंद सिंह जी के जीवन काल में चमकौर की लड़ाई एक अद्वितीय गाथा का हिस्सा है, जिसमें 40 बहादुर योद्धाओं ने अपने गुरु और धर्म की रक्षा के लिए अप्रतिम साहस का प्रदर्शन किया। यह घटना उस समय की है जब मुगलों की विशाल सेना ने गुरु गोबिंद सिंह और उनके अनुयायियों को घेर लिया था।

 

गुरु गोबिंद सिंह अपने कुछ सिख योद्धाओं के साथ चमकौर की एक छोटी गढ़ी में ठहरे थे। मुगल सेना की संख्या लाखों में थी, जबकि गुरु जी के पास केवल 40 योद्धा थे। हालांकि, इन गिने-चुने वीरों ने अपने साहस और अटूट विश्वास से दुश्मनों का सामना करने का निश्चय किया।

 

गुरु गोबिंद सिंह ने अपने अनुयायियों को प्रेरित करते हुए कहा कि हमें धर्म और सच्चाई की रक्षा के लिए अपना सर्वस्व न्यौछावर करना होगा। उन्होंने अपने सैनिकों को छोटे-छोटे समूहों में बाहर भेजा, ताकि वे दुश्मन पर धावा बोल सकें। हर सिख योद्धा ने असाधारण वीरता दिखाते हुए कई दुश्मनों को परास्त किया और अंत तक लड़ते रहे।

 

इस युद्ध में गुरु गोबिंद सिंह के दो पुत्र, अजीत सिंह और जुझार सिंह, भी शामिल थे। उन्होंने अपने पिता की शिक्षाओं पर चलते हुए वीरगति प्राप्त की। उनकी इस शहादत ने सिख धर्म में बलिदान और वीरता की नई गाथा लिखी थी।

 

हालांकि, गढ़ी में सैनिकों की संख्या कम होती जा रही थी, लेकिन गुरु गोबिंद सिंह ने अपनी सूझबूझ और रणनीति से मुगलों को गढ़ी में प्रवेश करने से रोके रखा। अंत में, बचे हुए सिख योद्धाओं ने गुरु गोबिंद सिंह को गढ़ी से सुरक्षित बाहर निकलने में सहायता की थी।

गुरु गोबिंद सिंह जी के संदेश का अर्थ

जब गुरु गोबिंद सिंह जी ने खालसा पंथ की स्थापना की और सिखों को आंतरिक और बाहरी दोनों तरह की चुनौतियों के लिए तैयार किया। चिड़िया से बाज लड़ाने का अर्थ है कमजोर को इतना सक्षम बनाना कि वह शक्तिशाली के साथ भी संघर्ष कर सके। गीदड़ों को शेर बनाने का मतलब है लोगों में डर और हीनता को मिटाकर साहस और आत्मविश्वास भरना। ‘सवा लाख से एक लड़ाऊं’ का आशय है कि उन्होंने अपने अनुयायियों को इतना बलशाली बनाया कि वे सवा लाख दुश्मनों का भी अकेले सामना कर सकें। इन शब्दों ने सिख समुदाय में अद्वितीय साहस और आत्मविश्वास का संचार किया और उन्हें धर्म, न्याय और मानवता की रक्षा के लिए प्रेरित किया।

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