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डूम देवता:  जिनकी उत्पत्ति के साथ प्रकट हुए थे नौ ग्रंथ

हिमाचल प्रदेश में डूम देवता को प्रमुख स्थान दिया गया है, मान्यता है कि डूम देवता की उत्पत्ति पृथ्वी से हुई थी। आइए जानते हैं क्या है डूम देवता से जुड़ी धार्मिक और स्थानीय मान्यताएं।

Doom devta jatar

डूम देवता जातर: Photo Credit: X handle/varun chaudhary

हिमाचल प्रदेश की आस्था और लोकसंस्कृति में डूम देवता का नाम सबसे प्रमुख देवताओं में लिया जाता है। मान्यता है कि डूम देवता का अवतार स्वयं धरती से हुआ था और उसी समय भूमि से नौ पवित्र ग्रंथ भी प्रकट हुए थे, जिन्हें उनकी दिव्यता और शक्ति का प्रतीक माना जाता है। हिमाचल के विभिन्न हिस्सों, खासकर शिमला, सोलन और सिरमौर जिलों में डूम देवता को ग्रामदेव या कुलदेव के रूप में पूजा जाता है। स्थानीय लोग मानते हैं कि डूम देवता जहां विराजते हैं, वहां न तो प्राकृतिक आपदाएं आती हैं और न ही अकाल पड़ता है। यही वजह है कि इन्हें क्षेत्र का रक्षक देवता भी कहा जाता है।

 

डूम देवता से जुड़ी एक और खास परंपरा उनकी ‘जातर’ यात्रा है, जो हर 20 साल में एक बार निकलती है और यह यात्रा करीब चार साल तक चलती है। इस दौरान रथयात्रा, लोकनृत्य और पारंपरिक वाद्ययंत्रों की धुनों से पूरा क्षेत्र गूंज उठता है। इस यात्रा को समाज में समृद्धि, सुरक्षा और शांति का प्रतीक माना जाता है। ऐतिहासिक मान्यताओं के अनुसार, डूम देवता ने रियासतों के संकट को दूर कर वहां सुख-समृद्धि लौटाई थी। यही वजह है कि आज भी हिमाचल की लोकआस्था में डूम देवता सर्वोपरि स्थान रखते हैं और उनके मंदिरों में श्रद्धालुओं की अटूट आस्था दिखाई देती है।

 

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डूम देवता का अवतार और उत्पत्ति

किवदंतियों के अनुसार, डूम देवता का अवतार स्वयं धरती से हुआ था। कहा जाता है कि जब उनका प्राकट्य हुआ तो उसी समय भूमि से नौ दिव्य ग्रंथ भी प्रकट हुए। ये ग्रंथ ज्ञान, धर्म और लोकजीवन की मर्यादाओं के प्रतीक माने जाते हैं। यही वजह है कि डूम देवता का स्वरूप अन्य देवताओं से अलग और अद्वितीय है, क्योंकि उनकी उत्पत्ति सीधे धरती से मानी जाती है।

नौ ग्रंथों का महत्व

इन नौ ग्रंथों को पवित्र शास्त्रों की तरह पूजा जाता है। लोकमान्यताओं में यह स्पष्ट नहीं है कि इन ग्रंथों के नाम क्या हैं लेकिन इन्हें धार्मिक आस्था, न्याय और सामाजिक व्यवस्था का मूल सूत्र माना जाता है।

 

हिमाचल प्रदेश के प्रमुख देवता क्यों माने जाते हैं

डूम देवता को हिमाचल का सबसे प्रमुख लोकदेवता इसलिए माना जाता है क्योंकि विश्वास है कि जहां-जहां उनका वास होता है, वहां अकाल, महामारी या प्राकृतिक आपदा का भय नहीं रहता। लोग मानते हैं कि वे गांव और परिवारों के रक्षक हैं।

जन्म और पौराणिक मान्यता

एक कथा के अनुसार, जब एक रियासत के राजा पर भारी संकट आया तो डूम देवता ने उन्हें विपत्ति से बचाया और राज्य में फिर से सुख-समृद्धि लौटाई। इस घटना के बाद ही उन्हें सर्वोच्च देवता के रूप में पूजा जाने लगा।

 

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हिमाचल में मान्यता

हिमाचल प्रदेश के कई हिस्सों, खासकर शिमला, सिरमौर और सोलन में, डूम देवता को कुलदेव या ग्रामदेव के रूप में पूजा जाता है। उनकी ‘जातर’ (विशाल यात्रा) 20 साल में एक बार निकलती है, जो लगभग चार साल तक चलती है। इस दौरान लोग उनका आशीर्वाद पाते हैं और इसे क्षेत्र की समृद्धि और शांति का प्रतीक मानते हैं।

डूम देवता की रथ यात्रा

रथ यात्रा और जातर: डूम देवता की यात्रा हर 20 वर्षों में एक बार निकलती है, जो करीब 4 वर्षों तक चलती है। यह आयोजन एक विशाल उत्सव होता है, जिसमें रथ-यात्रा, लोकनृत्य, संगीत व लोकगीत शामिल होते हैं। यह पर्व स्थानीय समाज के लिए समृद्धि और कल्याण की प्रतिज्ञा का भी अवसर होता है 

 

वाद्य यंत्र और नृत्य: उनकी पूजा उत्सवों में पारंपरिक हिमाचली वाद्ययंत्रों पर लोकगीत गाए जाते हैं और रंग-बिरंगे नृत्य किए जाते हैं, जो श्रद्धा और सांस्कृतिक के जुड़ाव को दर्शाते हैं।

 

सामाजिक न्याय और स्थानीय शांति: डूम देवता को न्याय, सुरक्षा, और प्राकृतिक आपदाओं से रक्षा करने वाला देव माना जाता है। ग्रामीण जीवन में उनकी उपस्थिति एक ताकतवर सांस्कृतिक प्रतीक मानी जाती है। 

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