हिरोइन से महामंडलेश्वर कैसे बनीं ममता कुलकर्णी? ये है पूरी कहानी
ममता कुलकर्णी की नई पहचान है कि वह किन्नर अखाड़े में महामंडलेश्वर हैं। उन्होंने ग्लैमर की दुनिया छोड़कर अध्यात्म की राह चुनी है।

ममता कुलकर्णी। (Photo Credit: Khabargaon)
एक जमाने में सुपरस्टार अभिनेत्री रही ममता कुलकर्णी ने संन्यास ले लिया है। 90 के दशक में बॉक्स ऑफिस पर उनकी तूती बोलती थी। वह जितना संजीदा अभिनय करती थीं, उतनी ही लोकप्रिय भी थीं। उन्होंने अचानक से बॉलीवुड को अलविदा कहा था। कई साल विवादों में उलझी रहीं लेकिन जब वापसी कीं तो अध्यात्म की शरण में जा पहुंची।
अब ममता कुलकर्णी की पहचान बदल गई है। वह किन्नर अखाड़े की महामलेश्वर हैं। उनका नाम ममता नंद गिरी है। आखिरकार ममता कुलकर्णी ने धर्म और अध्यात्म मार्ग अपनाने के बाद किन्नर अखाड़े को ही क्यों चुना यह भी बेहद दिलचस्प है। किन्नर अखाड़ी की मुफिया लक्ष्मी नारायण त्रिपाठी को वह अरसे से जानती रही हैं।
ममता कुलकर्णी का मानना है कि महाकुंभ नगर क्षेत्र में जितने भी अखाड़े हैं उनमें से किन्नर अखाड़ा मध्यमार्गी है और उनके अनुकूल सबसे अच्छा है। यहां वह सांसारिक जीवन के साथ ही अध्यात्म और धर्म से जुड़कर एक संत का जीवन भी जी सकती हैं। किन्नर अखाड़े से वह पिछले 2 साल से जुड़ी हैं।
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23 साल से तपस्वी जीवन जी रहीं हैं ममता कुलकर्णी
ममता कुलकर्णी ने कहा है कि वह 23 साल से तपस्या की है। उन्होंने जूना अखाड़े के चैतन्य गगन गिरि से दीक्षा ली है। यह सब अचानक से नहीं हुआ। साल 2000 से उनका झुकाव धर्म और आध्यात्म की ओर हो गया था। वह अब धर्म का प्रचार करना चाहती हैं। इस वजह से उन्होंने संन्यास की दीक्षा ली। इसके पहले वह वर्ष 2013 के कुंभ में भी यहां आ चुकी हैं। अगला अमृत स्नान भी किन्नर अखाड़े के साथ ही करने की कोशिश रहेगी।
क्या छोड़ना होगा फिल्मी करियर?
किन्नर अखाड़े की महामंडलेश्वर लक्ष्मी नारायण त्रिपाठी का कहना है कि ममता कुलकर्णी करीब दो साल से अखाड़े के संपर्क में थीं। फिर से बॉलीवुड में लौटने फिल्में साइन करने को लेकर लक्ष्मी नारायण त्रिपाठी ने साफ किया की किन्नर अखाड़े की तरफ से ऐसी कोई पाबंदी नहीं है। अगर वह चाहे तो फिल्में या अभिनय कर सकती हैं।लेकिन ममता कुलकर्णी दोबारा बॉलीवुड की लौटने से इन्कार किया है।
ममता कुलकर्णी का नया लुक है सुर्खियों में
ममता कुलकर्णी अब भगवा कपड़े में नजर आ रही हैं। गले में रुद्राक्ष की माला, माथे पर तिलक, कानों में कुंडल के साथ ही वह छत्र और चंवर धारी हो गई हैं। शुक्रवार को संगम के तट पर पिंडदान करने के बाद किन्नर अखाड़े की आचार्य महामंडलेश्वर लक्ष्मी नारायण त्रिपाठी की मौजूदगी में उनका पट्टाभिषेक किया। अब उन्हें ममता कुलकर्णी नहीं महामंडलेश्वर श्री यामाई ममता नंद गिरी की नाम से जाना जाएगा।
कब ममता ने लिया था संन्यास?
ममता कुलकर्णी शुक्रवार सुबह सेक्टर-16 संगम लोवर मार्ग स्थित किन्नर अखाड़ा शिविर पहुंचीं। इसके बाद उनकी संन्यास दीक्षा क्रियाएं आरंभ हुईं। आचार्य पुरोहित की मौजूदगी में करीब दो घंटे तक संन्यास दीक्षा हुई। श्रीपंचदशनाम जूना अखाड़ा के महामंडलेश्वर गर्गाचार्य मुचकुंद, पीठाधीश्वर स्वामी महेंद्रानंद गिरि समेत अन्य संतों की मौजूदगी मेंं धार्मिक क्रियाएं हुईं। इसके बाद शाम को संगम तट पर पिंडदान हुआ। फिर पट्टाभिषेक हुआ। किन्नर अखाड़े की आचार्य लक्ष्मी नारायण त्रिपाठी ने महामंडलेश्वर बनने की घोषणा किया।
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कौन हैं ममता कुलकर्णी?
ममता कुलकर्णी का जन्म 20 अप्रैल 1972 को मुंबई में हुआ था। उनके पिता मुकुंद कुलकर्णी और उनकी दो बहने मोलिना और मिथिला हैं। ऐसा कहा जाता रहा है कि साल 2013 में ममता ने विक्की गोस्वामी से शादी की थी। विवेक गोस्वामी पर ड्रग माफिया होने के आरोप लगे। उनका फिल्मी कैरियर 1993 से 2001 तक रहा। छुपा रुस्तम उनकी अंतिम फिल्म थी। ममता कुलकर्णी इनकार करती रही हैं कि उनका विवेक गोस्वामी से संबंध है।
कौन है विक्की गोस्वामी?
विक्की गोस्वामी को ड्रग्स माफिया कहा जाता है। वही मुंबई पुलिस ने उनके खिलाफ भी ड्रग्स तस्करी का मुकदमा दर्ज कर रखा था। फिल्मी डायरेक्टर्स को अंडरवर्ल्ड डॉन छोटा राजन से धमकी दिलवा कर फिल्में लेने का भी उनके ऊपर आरोप रहा है। फिल्मी दुनिया में होते हुए अंडरवर्ल्ड माफिया छोटा राजन के साथ भी उनका नाम जुड़ा था। बाद में अचानक से उन्होंने देश छोड़ दुबई चली गई।
कैसे शुरू हुआ था फिल्मी करियर?
ममता कुलकर्णी की पहली हिट फिल्म 1093 में तिरंगा आई। यह एक्शन फिल्म थी जिसमें राज कुमार, नाना पाटेकर,वर्षा उसगांवकर, हरीश कुमार और ममता कुलकर्णी लीड रोल में थे। फिल्म को मेहुल कुमार ने डायरेक्ट किया था। फिल्म तिरंगा को बॉक्स ऑफिस पर जबरदस्त कामयाबी मिली थी। यहीं से ममता कुलकर्णी का करियर भी चमक उठा।
कैसे बनते हैं महामंडलेश्वर?
महामंडलेश्वर बनने के लिए बहुत कठिन तपस्या करनी पड़ती है। सबसे पहले किसी गुरु के साथ जुड़कर साधना और आध्यात्मिक शिक्षा लेनी होती है। इस दौरान परिवार, धन और सारी दुनियादारी को छोड़ना पड़ता है। गुरु की देखरेख में भंडारे और सेवा के काम करने होते हैं। कई सालों की तपस्या और मेहनत के बाद, जब गुरु को लगता है कि शिष्य पूरी तरह तैयार है, तभी उसे महामंडलेश्वर की उपाधि दी जाती है।
महामंडलेश्वर की शर्तें क्या हैं?
किन्नर अखाड़ा सनातन धर्म के 13 प्रमुख अखाड़ों से अलग है। किन्नर अखाड़ा मध्य मार्गी है जहां संन्यासी बनने के बाद भी भौतिक जीवन जिया जा सकता है और इसमें महामंडलेश्वर बनने के लिए संसारिक और पारिवारिक रिश्तों को खत्म करना जरूरी नहीं होता है। ममता कुलकर्णी ने इस अखाड़े को चुना और अब वो भौतिक जीवन जीते हुए भी संन्यासी बनकर रह सकेंगी। इसमें उन्हें वैराग्य वाला जीवन नहीं बिताना होगा।
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