हिंदू धर्म में पूजा, आरती और उपचार को महत्वपूर्ण स्थान दिया गया है। माना जाता है कि पूजा के अलग-अलग प्रकार होते हैं। धर्म ग्रंथों में पूजा को चार रूपों बांटा गया है। इसके साथ ही पूजा के बाद देवताओं की सेवा के रूप में उपचार भी बनाए गए हैं। इसके लिए मुख्य रूप से तीन विधियां बताई गई हैं। वहीं आरती भी केवल एक साधारण प्रक्रिया नहीं है, बल्कि यह पांच प्रमुख रूपों में की जाती है। ग्रंथों के अनुसार, हर प्रकार की पूजा, उपचार और आरती का महत्व अलग-अलग होता है।
मान्यता है कि पूजा को नित्य पूजा, नैमित्तिक पूजा, काम्य पूजा और व्रत्य पूजा के रूप में बांटा गया है। वहीं, उपचार को पंचोपचार (पांच उपचार), दशोपचार (दस उपचार) और षोडशोपचार (सोलह उपचार) के रूप में बांटा गया है, उपचारों का वर्णन बृहद् तंत्रसार जैसे तांत्रिक ग्रंथों में मिलता है। वहीं, आरती को पांच रूप दिया गया है, जिसमें मंगला, श्रृंगार, राजभोग, संध्या और शयन आरती शामिल है।
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पूजा के प्रकार
पूजा को मुख्य रूप से चार रूपों में बांटा गया है:
नित्य पूजा – यह हर रोज की जाने वाली साधारण पूजा होती है, जिसमें गृहस्थ या मंदिर में फूल, धूप, दीप, और आरती की जाती है। यह दैनिक भक्ति की आदत कायम करने का माध्यम है।
नैमित्तिक पूजा – इसके अंतर्गत ऐसे पूजन आते हैं, जिसे त्योहार या फिर किसी विशेष अवसर जैसे, दिपावली, नवरात्र, करवा चौथ, गणेश चतुर्थी आदि पर किया जाता है।
काम्य पूजा – किसी विशेष इच्छा पूर्ति के लिए की जाने वाली पूजा, जैसे लक्ष्मी पूजा, सत्यनारायण कथा।
व्रत्य पूजा – व्रत के दौरान की जाने वाली पूजा, जैसे एकादशी, करवा चौथ आदि।
उपचार (सेवा) के प्रकार
पूजा में देवता को अर्पण की जाने वाली सेवाएं 'उपचार' कहलाती हैं। इसके तीन प्रमुख प्रकार हैं:
पंचोपचार पूजा – मान्यता के अनुसार, इसमें पांच वस्तुएं अर्पित की जाती हैं:
गंध (चंदन/सुगंध), पुष्प (फूल), धूप, दीप (दीया), नैवेद्य (भोग)।
दशोपचार पूजा – इसमें पांच और सेवाएं जोड़ दी जाती हैं, जैसे पाद्य (पैर धोने का जल), अर्घ्य (हाथ धोने का जल), आचमन, वस्त्र, आभूषण आदि।
षोडशोपचार पूजा – सबसे विस्तृत पूजा, जिसमें 16 उपचार होते हैं। इसमें ध्यान, आह्वान, स्नान, वस्त्र, आभूषण, गंध, पुष्प, धूप, दीप, नैवेद्य, आरती आदि सब शामिल होते हैं।
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आरती के प्रकार
आरती दीपक के साथ की जाने वाली भक्ति प्रक्रिया है। इसके पांच प्रमुख प्रकार हैं:
मंगला आरती – मान्यता के अनुसार, सुबह देवता को जगाने के बाद (सुबह की पहली आरती)
श्रृंगार आरती – भगवान के श्रृंगार बाद की जाने वाली आरती।
राजभोग आरती – दोपहर भोजन (भोग) अर्पण के बाद की जाने वाली आरती।
संध्या आरती – शाम के समय दीप जलाकर की जाने वाली आरती।
शयन आरती – रात के समय विश्राम से पहले की जाने वाली आरती।