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बौद्ध से कैसे अलग है जैन धर्म? दोनों के देवी-देवताओं में अंतर समझिए

भारत की धार्मिक और दार्शनिक धारा में जैन धर्म और बौद्ध धर्म का विशेष स्थान है। आइए जानते हैं, दोनों धर्मों में क्या अंतर है और इनके देवताओं से जुड़ी मान्यताएं क्या हैं?

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प्रतीकात्मक तस्वीर: Photo credit: AI

भारत की धार्मिक और दार्शनिक धारा में जैन धर्म और बौद्ध धर्म का विशेष स्थान माना जाता है। दोनों ही धर्मों की स्थापना छठी शताब्दी ईसा पूर्व की मानी जाती है। मान्यता के अनुसार, जैन धर्म और बौद्ध धर्म की स्थापना उस दौर में हुई थी, जब समाज जातिगत भेदभाव, यज्ञ-बलि और कर्मकांडों से जकड़ा हुआ था। करुणा, अहिंसा और समानता को केंद्र बनाकर महावीर स्वामी और गौतम बुद्ध ने मानवता को नई दिशा दी थी। हालांकि दोनों ही धर्मों की जड़ें एक जैसी दिखती हैं लेकिन इनके सिद्धांतों और मान्यताओं में अंतर बताया गया है।

 

जैन धर्म आत्मा को शाश्वत और अमर मानता है, जो कर्मों के बंधन में बंधकर जन्म-मरण का चक्र भोगती है। जैन धर्म की मान्यता के अनुसार, तप और संयम के मार्ग से आत्मा का शुद्धीकरण करके मोक्ष प्राप्त किया जा सकता है। वहीं, दूसरी ओर बौद्ध धर्म 'अनात्म' सिद्धांत पर आधारित है, यानी कि बौद्ध धर्म में आत्मा का कोई स्थायी अस्तित्व नहीं माना गया है। बुद्ध का कहना था कि जीवन दुखमय है और उसकी वजह सिर्फ इच्छा या लालच है, जिसे मध्यम मार्ग और अष्टांग मार्ग से समाप्त किया जा सकता है।

 

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जैन धर्म और बौद्ध धर्म में अंतर

जैन धर्म और बौद्ध धर्म की स्थापना लगभग एक ही समय (6वीं शताब्दी ईसा पूर्व) पर हुई थी।

 

आत्मा: जैन धर्म आत्मा को शाश्वत, अमर और कर्म के बंधन में बंधा हुआ माना जाता है। बौद्ध धर्म 'अनात्म' का सिद्धांत देता है। बौद्ध धर्म में आत्मा का कोई स्थायी अस्तित्व नहीं माना जाता है।

 

मोक्ष: जैन धर्म के अनुसार, आत्मा को मोक्ष शुद्धीकरण और कर्म बंधन से मुक्त होने पर मिलता है। बौद्ध धर्म में निर्वाण को मान्यता दी गई है। बौद्ध धर्म के अनुसार,  दुखों और जन्म-मरण के चक्र से मुक्ति को ही निर्वाण माना जाता है।

 

साधना मार्ग: जैन धर्म कठोर तप, अहिंसा, सत्य, अपरिग्रह और ब्रह्मचर्य पर जोर देता है। बौद्ध धर्म मध्यम मार्ग (ना तो ज्यादा तपस्या, ना ही ज्यादा भोग) को प्रमुख मानता है।

 

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दोनों धर्मों में किसकी पूजा होती है?

जैन धर्म: इसमें तीर्थंकरों (विशेषकर महावीर स्वामी और आदिनाथ ऋषभदेव) की पूजा होती है। जैन धर्म में इन्हें ईश्वर नहीं बल्कि सिद्ध पुरुष माना जाता हैं। जैन धर्म के अनुसार,  सिद्ध पुरुष वही है, जिसे आत्मा से पूर्ण मुक्ति मिल गई हो।

 

बौद्ध धर्म: इसमें गौतम बुद्ध को जागृत पुरुष के रूप में पूजा जाता है। साथ ही महायान बौद्ध परंपरा में बोधिसत्त्वों की भी वंदना की जाती है।

 

दोनों धर्मों की मान्यता

 

जैन धर्म: जैन धर्म के अनुसार, आत्मा शाश्वत है और उसके शुद्धिकरण के लिए अहिंसा, तप और संयम का मार्ग अपनाना जरूरी है। इस धर्म में अंतिम लक्ष्य मोक्ष यानी जन्म-मरण से मुक्ति को माना गया है।

 

बौद्ध धर्म: बौद्ध धर्म के अनुसार, जीवन दुखमय है और दुख की वजह को इच्छा या लालच बताया गया है। बौद्ध धर्म में अष्टांगिक मार्ग और मध्यम मार्ग पर चलकर निर्वाण प्राप्त किया जा सकता है।

दोनों धर्मों की समानताएं

  • दोनों ही धर्म ईश्वर या सृष्टिकर्ता की अवधारणा को नहीं मानते।
  • दोनों ही धर्मों की जड़ें अहिंसा, करुणा और सत्य पर आधारित हैं।
  • दोनों ने वर्ण व्यवस्था और यज्ञों का विरोध किया।
  • दोनों में ही संन्यास, साधना और ध्यान को महत्व दिया गया है।
  • दोनों धर्म कर्म और पुनर्जन्म को मानते हैं।
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