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करतारपुर साहिब: जहां गुरु नानक देव ने बिताया था अंतिम समय

सिख धर्म में करतारपुर गुरुद्वारे को बहुत ही पवित्र स्थल माना जाता है, जहां हर साल कई श्रद्धालु जाते हैं। जानिए इस स्थान से जुड़ी खास बातें।

Image of Kartarpur Sahib

करतारपुर साहिब, पाकिस्तान(Photo Credit: Wikimedia Commons)

जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में 22 अप्रैल को हुए आतंकी हमले के बाद भारत और पाकिस्तान के बीच मतभेद की खाई और गहरी होती दिखाई दे रही है। जहां एक ओर भारत ने पाकिस्तान पर आतंकवाद को पनाह देने के आरोप लगाते हुए कई प्रतिबंध लगाए हैं, वहीं दोनों देशों की सीमाएं आम नागरिकों के लिए बंद कर दी गई हैं।

हालांकि, करतारपुर साहिब कॉरिडोर को पाकिस्तान की ओर से चालू रखने का निर्णय लिया गया है।

 

बता दें कि करतारपुर साहिब सिख धर्म का एक पवित्र और ऐतिहासिक स्थल है, जो पाकिस्तान के पंजाब प्रांत के नारोवाल जिले में स्थित है। यह पवित्र स्थान भारत-पाकिस्तान सीमा से करीब 4.5 किलोमीटर दूर, डेरा बाबा नानक के पास स्थित है।

 

सिख धर्म में इस स्थान का महत्व इसलिए है क्योंकि यहीं सिखों के पहले गुरु, गुरु नानक देव ने अपने जीवन के अंतिम 18 वर्ष व्यतीत किए थे और यहीं पर 1539 ईस्वी में उन्होंने देह त्याग किया था।

 

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करतारपुर साहिब का धार्मिक महत्व

सिखों के लिए करतारपुर साहिब तीर्थ से कम नहीं है। यह वही स्थान है जहां गुरु नानक देव ने आध्यात्मिक और सामाजिक शिक्षाएं दीं। उन्होंने यहां 'नाम जपो, किरत करो और वंड छको' (ईश्वर का नाम लो, मेहनत की कमाई खाओ और मिल-बांटकर खाओ) का सिद्धांत प्रचारित किया।

 

गुरु नानक जी के अनुयायी इस स्थान को 'करतारपुर' अर्थात ‘भगवान का स्थान’ कहते हैं। यहां उन्होंने जात-पात, ऊंच-नीच, और धार्मिक भेदभाव के खिलाफ शिक्षा दी। वह स्वयं खेती करते थे और अपने अनुयायियों के साथ सेवा भाव में जीवन बिताते थे।

करतारपुर गुरुद्वारे का इतिहास

करतारपुर साहिब गुरुद्वारा, जिसे 'गुरुद्वारा दरबार साहिब' भी कहा जाता है, गुरु नानक देव की याद में बना सबसे ऐतिहासिक स्थल है। यह गुरुद्वारा रावी नदी के तट पर बना है। ऐसा कहा जाता है कि गुरु नानक देव के देह त्याग के बाद उनके मुस्लिम और हिंदू अनुयायियों में यह विवाद हुआ कि उनका अंतिम संस्कार किस तरह किया जाए। परंपरा के अनुसार, जब उन्होंने गुरु जी का शव उठाने के लिए चादर हटाई, तो वहां सिर्फ फूल मिले, जिसे दोनों समुदायों ने अपने-अपने रीति से दफनाया और जलाया।

 

यह गुरुद्वारा कई बार मरम्मत और पुनर्निर्माण से गुजरा। 1947 में भारत-पाक विभाजन के बाद यह स्थान पाकिस्तान में चला गया लेकिन भारतीय सिख श्रद्धालु इसके दर्शन नहीं कर पाते थे। लंबे समय तक यह सीमित रूप से सिखों की पहुंच में रहा।

 

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करतारपुर कॉरिडोर की शुरुआत

साल 2019 में सिख धर्म के संस्थापक गुरु नानक देव की 550वीं जयंती के अवसर पर भारत और पाकिस्तान ने मिलकर करतारपुर कॉरिडोर शुरू किया। यह कॉरिडोर भारत के डेरा बाबा नानक (पंजाब) से शुरू होकर पाकिस्तान में स्थित करतारपुर साहिब तक जाता है। इस रास्ते से अब भारतीय श्रद्धालु बिना वीजा के, केवल एक परमिट के सहारे, रोजाना दर्शन कर सकते हैं।

 

कॉरिडोर की शुरुआत से पहले भारतीय सीमा से दूरबीन की मदद से श्रद्धालु करतारपुर साहिब के दर्शन करते थे। हालांकि अब वह जाकर प्रार्थना करने की सुविधा है। गुरुद्वारा दरबार साहिब का रखरखाव और प्रबंधन पाकिस्तान सरकार द्वारा किया जाता है।

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