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भगवान शिव के त्रिशूल पर बसे शहर काशी से जुड़ी पौराणिक कथाएं

मान्यता है कि काशी भगवान शिव के त्रिशूल पर बसी हुई है। आइए जानते हैं इस शहर से जुड़ी पौराणिक कथाएं और महत्व।

AI Image of Kashi

काशी का प्रतीकात्मक चित्र। (Pic Credit: Freepik)

वाराणसी, जिसे काशी और बनारस के नाम से भी जाना जाता है, भारतीय संस्कृति में एक प्राचीन और पवित्र केंद्र है। इस शहर की पौराणिक मान्यताओं के कारण ही सनातन धर्म में विशेष महत्व प्राप्त है। कहा जाता है कि यह शहर स्वयं भगवान शिव ने स्थापित किया था और यह उनके त्रिशूल पर टिका हुआ है। इस कथा के अनुसार, वाराणसी का विनाश कभी नहीं हो सकता क्योंकि यह भगवान शिव के संरक्षण में है।

काशी से जुड़ी पुराणिक कथाएं

पौराणिक कथा के अनुसार, वाराणसी का नाम दो नदियों, वरुणा और असि, के नाम पर पड़ा। कहा जाता है कि इस स्थान पर शिव ने स्वयं निवास किया और इसे अपनी कर्मभूमि बनाया। यहां गंगा नदी का प्रवाह उत्तरवाहिनी है, जो इसे और अधिक पवित्र बनाता है। मान्यता है कि इस भूमि पर मृत्यु प्राप्त करने से मोक्ष की प्राप्ति होती है। इसलिए, वाराणसी को 'मोक्षनगरी' भी कहा जाता है। यहां द्वादश ज्योतिर्लिंगों में से काशी विश्वनाथ ज्योतिर्लिंग भी विराजमान हैं।

 

काशी विश्वनाथ मंदिर, जिसे भगवान शिव के द्वादश ज्योतिर्लिंगों में से एक के रूप में पूजा जाता है, वाराणसी के में स्थित है। पौराणिक कथा के अनुसार, काशी भगवान शिव की प्रिय नगरी है, जिसे उन्होंने स्वयं स्थापित किया था। कहा जाता है कि जब भगवान विष्णु और ब्रह्मा के बीच सर्वोच्चता को लेकर विवाद हुआ, तो शिव ने एक अनंत ज्योतिर्लिंग प्रकट किया और कहा कि जो इसका आदि या अंत खोज लेगा, वही महान होगा। यह वही ज्योतिर्लिंग है जो काशी विश्वनाथ के रूप में प्रतिष्ठित है।

 

कथाओं के अनुसार, प्राचीन काल में असुरों और देवताओं के बीच भयंकर युद्ध हुआ। इस युद्ध में असुरों ने काशी को बुरी शक्तियों से घेर लिया और इसे विनाश की ओर धकेल दिया। तब भगवान शिव ने अपने त्रिशूल का प्रयोग कर काशी की रक्षा की और इसे अपनी शक्ति के केंद्र में स्थान दिया। त्रिशूल पर काशी को स्थापित करने का उद्देश्य इसे विनाश और कालचक्र से परे रखना था। मान्यता है कि काशी में जो भी जीव मृत्यु पाता है, उन्हें मोक्ष की प्राप्ति होती है और वह पुनर्जन्म के चक्र से मुक्त हो जाता है।

काशी ने बनाया नया रिकॉर्ड

काशी विश्वनाथ मंदिर में श्रद्धालुओं की संख्या हर साल आस्था का नया कीर्तिमान स्थापित कर रही है। जनवरी 2022 में 74,59,471 श्रद्धालु बाबा के दर्शन के लिए पहुंचे, जबकि जुलाई में यह संख्या 76,81,561 तक पहुंच गई। हालांकि, साल के अंत में दिसंबर 2022 में यह घटकर 37,57,884 रह गई।

 

2023 में दर्शनार्थियों की संख्या में संतुलन देखने को मिला। अगस्त 2023 विशेष रूप से ऐतिहासिक रहा, जब 95,62,206 श्रद्धालुओं ने बाबा विश्वनाथ का आशीर्वाद लिया। हालांकि, मई और जून 2023 में संख्या क्रमशः 31,55,476 और 36,46,346 रही, जो अन्य महीनों की तुलना में स्थिर मानी गई।

 

2024 में श्रद्धालुओं की संख्या में फिर वृद्धि हुई। मार्च 2024 सबसे खास महीना साबित हुआ, जब 95,63,432 भक्तों ने बाबा का दर्शन किया। अप्रैल और मई में यह संख्या 49,88,040 और 61,87,954 रही। हालांकि, दिसंबर 2024 में यह घटकर 18,91,538 रह गई, जिसका कारण ठंड और अन्य परिस्थितियां मानी जा सकती हैं। यह आंकड़े न केवल काशी विश्वनाथ मंदिर की बढ़ती लोकप्रियता को दर्शाते हैं, बल्कि आस्था और आध्यात्मिक आकर्षण का प्रमाण भी हैं।

 

Disclaimer- यहां दी गई सभी जानकारियां सामाजिक और धार्मिक आस्थाओं पर आधारित हैं। Khabargaon इसकी पुष्टि नहीं करता।

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