हिन्दू धर्म में किसी भी मांगलिक कार्य को करने के लिए शुभ समय और मुहूर्त का ध्यान रखा जाता है। पंचांग में ऐसे कई दिन चिन्हित किए गए हैं, जिन्हें मांगलिक कार्यों के लिए बहुत उत्तम माना जाता है। वहीं कुछ ऐसे भी समय बताए हैं, जो पूजा-पाठ के लिए बिलकुल उपत्युक्त नहीं हैं। इन्हीं में से एक समय है खरमास। वैदिक पंचांग के अनुसार, 15 दिसंबर से खरमास शुरू हो चुका है और इसका अंत 14 जनवरी तक होगा।
क्या है खरमास का अर्थ?
ज्योतिष शास्त्र के अनुसार, खरमास वह महीना है, जब सूर्य धनु या मीन राशि में प्रवेश करते हैं। इस अवधि में सूर्य की गति धीमी हो जाती है, जिससे इसे अशुभ समय माना जाता है। 'खरमास' शब्द में 'खर' का अर्थ 'गधा' है, जो आलस्य और मंद गति का प्रतीक है। इसे 'मलमास' भी कहा जाता है। यह मास लगभग 30 दिनों का होता है क्योंकि सूर्य एक राशि से दूसरी में जाने के लिए एक महीने का समय लेते हैं और हर साल दिसंबर-जनवरी और मार्च-अप्रैल के बीच पड़ता है।
खरमास में नहीं होते हैं मांगलिक कार्य
खरमास का धार्मिक और सांस्कृतिक दृष्टि से विशेष महत्व है। इस दौरान शुभ कार्य, जैसे विवाह, गृह प्रवेश, या अन्य मांगलिक आयोजन वर्जित माने जाते हैं। ऐसा माना जाता है कि इस अवधि में सूर्य देव की शक्ति क्षीण होती है और यह समय साधना और भगवान की आराधना के लिए बहुत ही उपयुक्त माना जाता है।
खरमास में क्या करना चाइए और क्या नहीं?
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, खरमास में शुभ कार्यों की मनाही ऐसा इसलिए क्योंकि इस दौरान शुभ ग्रहों का प्रभाव भी कमजोर हो जाता है। हालांकि, इस अवधि में व्रत, दान और भगवान विष्णु की पूजा करते हैं। साथ ही गायों को चारा देना, गरीबों को अन्न दान करना, और धार्मिक ग्रंथों का अध्ययन करना भी शुभ माना जाता है। इसके साथ इस मास में प्रत्येक दिन सूर्य देव की उपासना करने से विशेष लाभ प्राप्त होता है, जिसका अपना विशेष महत्व है। मान्यता है कि ऐसा करने व्यक्ति की सभी मनोकामना पूर्ण होती है।
Disclaimer- यहां दी गई सभी जानकारियां सामाजिक और धार्मिक आस्थाओं पर आधारित हैं। Khabargaon इसकी पुष्टि नहीं करता।