सनातन धर्म में महाकुंभ मेले का अपना एक विशेष महत्व है। कुंभ मेला 12 वर्षों के अंतराल पर आयोजित होता है और इसमें लाखों की संख्या में श्रद्धालु पवित्र नदी में डुबकी लगाने के लिए एकत्रित होते हैं। शास्त्रों में भी कुंभ मेले के आयोजन को अत्यंत महत्व दिया गया है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, कुंभ मेले में पवित्र नदी में स्नान करने से व्यक्ति के सभी पाप और कष्ट दूर हो जाते हैं तथा जीवन में सुख-समृद्धि की प्राप्ति होती है।
वैदिक पंचांग के अनुसार, 13 जनवरी 2025 से तीर्थराज प्रयागराज में कुंभ मेले का आयोजन होने जा रहा है। यह आयोजन इतना विशाल है कि अनुमान लगाया जा रहा है कि इसमें 40 से 45 करोड़ श्रद्धालु हिस्सा लेंगे। हालांकि, कुंभ मेले में पवित्र स्नान के साथ-साथ प्रयागराज के तीर्थ स्थलों के दर्शन का भी अपना एक विशेष महत्व है।
प्रयागराज में विभिन्न तीर्थ स्थल हैं, जिनसे कई धार्मिक मान्यताएं जुड़ी हुई हैं। ऐसा कहा जाता है कि जो लोग कुंभ में स्नान के लिए आते हैं, उन्हें इन तीर्थ स्थलों के दर्शन अवश्य करना चाहिए। इससे कुंभ में आने का फल पूर्ण रूप से प्राप्त होता है। आइए जानते हैं इन्हीं तीर्थ स्थलों के नाम और उनका महत्व।
पातालपुरी मंदिर
प्रयागराज के पातालपुरी मंदिर का अपना एक धार्मिक और ऐतिहासिक महत्व है। यह मंदिर संगम क्षेत्र के निकट अक्षयवट के पास स्थित है। ऐसा कहा जाता है कि यह स्थान भगवान विष्णु, शिव और अन्य देवताओं की उपस्थिति के कारण अत्यंत पवित्र है।
पातालपुरी मंदिर को पौराणिक कथाओं में ‘पाताल लोक’ का वर्णन किया गया है। मान्यता है कि यह मंदिर धरती के नीचे पाताल तक जाता है और इस तीर्थस्थान का भगवान राम के समय से संबंध है। लोक मान्यताओं के अनुसार, जब भगवान राम वनवास के दौरान प्रयागराज आए थे, तब उन्होंने इस स्थान पर पूजा-अर्चना की थी।
मंदिर के भीतर स्थित अक्षयवट का वृक्ष अपना एक विशेष महत्व है। इस वृक्ष को अमरता और अनंत काल का प्रतीक माना जाता है। मान्यता है कि इसी वट वृक्ष के नीचे ब्रह्मा जी ने सृष्टि की रचना की थी। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, अक्षयवट के दर्शन और पातालपुरी मंदिर में पूजा करने से पापों का नाश होता है और मोक्ष की प्राप्ति होती है।
नागवासुकी मंदिर
प्रयागराज में गंगा नदी के किनारे स्थित नागवासुकी मंदिर का भी अपना एक ऐतिहासिक और पौराणिक महत्व है। यह मंदिर नाग देवता वासुकी को समर्पित है, जिन्हें वेद-पुराणों में शेषनाग के भाई के भाई के रूप में वर्णित किया गया है। ऐसा कहा जाता है कि इस स्थान पर पौराणिक काल में नाग पूजा-अर्चना करते थे।
पौराणिक कथा के अनुसार, वासुकी नाग ने समुद्र मंथन के समय भगवान विष्णु और देवताओं की सहायता की थी। जब वासुकी ने मंथन के दौरान अमृत की प्राप्ति के लिए खुद को रस्सी के रूप में प्रस्तुत किया, तो उनके त्याग और बलिदान के कारण उन्हें देवताओं से कई आशीर्वाद प्राप्त हुए। इसी कारण से वासुकी नाग की पूजा का विशेष महत्व है।
नागवासुकी मंदिर का उल्लेख ‘मत्स्य पुराण’ और ‘स्कंद पुराण’ में विस्तार से किया गया है। मान्यता है कि जो भी भक्त यहां पूर्ण श्रद्धा भाव से नाग वासुकी की पूजा करता है, उन्हें काल सर्प दोष, सांपों के भय इत्यादि समस्याओं से मुक्ति मिलती है और उनके जीवन में समृद्धि आती है।
सरस्वती कूप
प्रयागराज में स्थित सरस्वती कूप का उल्लेख पौराणिक धर्म-ग्रंथों और धार्मिक कथाओं में विशेष रूप से मिलता है। इसे वह स्थान माना जाता है जहां से अदृश्य सरस्वती नदी, गंगा और यमुना नदियों के साथ संगम करती हैं। यह कूप माता सरस्वती को समर्पित है, जिन्हें ज्ञान, विद्या और वाणी की देवी कहा गया है।
पौराणिक कथा के अनुसार, जब ब्रह्मा जी ने सृष्टि की रचना की, तो उन्होंने ज्ञान की देवी सरस्वती को प्रकट किया। मान्यता है कि सरस्वती नदी, जो त्रिवेणी संगम में अदृश्य रूप से प्रवाहित होती है, इसी कूप से निकलती है। इस कूप को ‘ज्ञान की धारा’ भी कहा जाता है, जो व्यक्ति को ज्ञान की ओर अग्रसर करती है।
सरस्वती कूप को तीर्थराज प्रयाग का एक महत्वपूर्ण स्थल माना जाता है। यहां दर्शन करने आए भक्तों का विश्वास है कि इस कूप के दर्शन और इसके जल का स्पर्श करने से पापों का नाश होता है और मोक्ष की प्राप्ति होती है। कुंभ मेले के दौरान, लाखों श्रद्धालु यहां आते हैं और इन तीर्थस्थलों के दर्शन करते हैं।
Disclaimer- यहां दी गई सभी जानकारियां सामाजिक और धार्मिक आस्थाओं पर आधारित हैं। Khabargaon इसकी पुष्टि नहीं करता।