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कुंभ मेला और ग्रहों का है विशेष संबंध, जानिए पूरा गणित

हिंदू धर्म में कुंभ मेले का आयोजन ग्रहों के स्थिति पर निर्भर करता है। आइए जानते हैं क्या है इसका कारण और महत्व।

Image of Kumbh Mela

कुंभ मेले का चित्र। (PTI File Photo)

हिंदू धर्म में कुंभ मेले का विशेष महत्व है। देश के अलग-अलग समय पर चार स्थानों पर आयोजित होने वाले कुंभ मेले को सबसे बड़ा मेला कहा जाता है. ऐसा इसलिए क्योंकि इसमें देश-विदेश से लाखों की संख्या में श्रद्धालु पवित्र डुबकी के लिए हरिद्वार, प्रयागराज, उज्जैन और नासिक में एकत्रित होते हैं। इस आयोजन में विभिन्न अखाड़ों के साधु संत भी हिस्सा लेते हैं।

 

बता दें कि कुंभ मेले का ग्रहों और खगोलीय घटनाओं से गहरा संबंध है। यह मेला भारतीय ज्योतिष और खगोलशास्त्र की अद्भुत परंपरा का हिस्सा है, जो चंद्र और सौर कैलेंडर पर आधारित है। कुंभ मेले का आयोजन हर 12 साल में होता है और इसका समय ग्रहों की विशेष स्थिति पर निर्भर करता है।

किन ग्रहों पर निर्भर करता है कुंभ का आयोजन?

वर्ष 2025 में 13 जनवरी से प्रयागराज में कुंभ मेले का महा आयोजन होने जा रहा है। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार, कुंभ मेले का आयोजन उस समय होता है जब देव गुरु बृहस्पति और ग्रहों के राजा सूर्य एक निर्धारित राशि में स्थित होते हैं। इन खगोलीय घटनाओं को अत्यंत शुभ माना जाता है। मान्यता है कि इन ग्रहों की विशेष स्थिति से सृष्टि में सकारात्मक ऊर्जा का प्रवाह होता है, जो आध्यात्मिक उन्नति और शुद्धिकरण के लिए उपयुक्त समय प्रदान करती है।

 

मान्यता यह भी है कि इस अवधि में स्नान करने से व्यक्ति अपनी नकारात्मक ऊर्जा को त्यागकर सकारात्मकता का अनुभव करता है। कुंभ मेला इस बात का प्रमाण है कि भारतीय संस्कृति में खगोलीय घटनाओं को धार्मिक और आध्यात्मिक दृष्टि से कितनी गहराई से जोड़ा गया है।

कुंभ मेला कहां होगा इसका निर्णय कैसे तय किया जाता है?

हरिद्वार: जब सूर्य मेष राशि में और गुरु कुंभ राशि में होते हैं, तब हरिद्वार में कुंभ मेले का आयोजन होता है। इस खगोलीय संयोग को विशेष रूप से पवित्र माना जाता है।

 

प्रयागराज: यहां कुंभ का आयोजन तब होता है जब सूर्य मकर राशि में और गुरु मेष राशि में स्थित होते हैं। इसके अलावा, चंद्रमा भी मकर राशि में होता है। इस स्थिति को अमृतप्रदायक माना जाता है।

 

उज्जैन: उज्जैन में कुंभ तब आयोजित होता है जब सूर्य सिंह राशि में और गुरु सिंह राशि में होते हैं। इस स्थिति को धार्मिक और आध्यात्मिक दृष्टि से अत्यंत शुभ माना जाता है।

 

नासिक: नासिक में कुंभ मेला तब होता है जब सूर्य और गुरु दोनों सिंह राशि में होते हैं। इस खगोलीय घटना के समय को स्नान और धार्मिक अनुष्ठानों के लिए विशेष रूप से महत्वपूर्ण माना जाता है।

 

इन खगोलीय घटनाओं को वैदिक पंचांग और ज्योतिषीय गणनाओं के माध्यम से निर्धारित किया जाता है। यह प्रक्रिया अत्यंत जटिल है और इसमें सटीकता का ध्यान रखा जाता है। ग्रहों की इन विशेष स्थितियों को शुभ ऊर्जा और आत्मा के शुद्धिकरण के लिए आदर्श समय माना जाता है।

 

Disclaimer- यहां दी गई सभी जानकारियां सामाजिक और धार्मिक आस्थाओं पर आधारित हैं। Khabargaon इसकी पुष्टि नहीं करता।

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