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जब कुंभ में शैव और वैष्णव संतों में हुई थी खूनी झड़प, क्या था कारण

महाकुंभ में अखाड़े आकर्षण का केंद्र होते हैं। क्या आप जानते हैं कि इन अखाड़ों के बीच संघर्ष भी हुआ करते थे। जानिए इसका कारण-

Image of Shahi Snan in Kumbh Mela

कुंभ मेला में शाही स्नान। (Pic Credit: Wikimedia Commons)

भारतीय संस्कृति में महाकुंभ मेले का अपना एक विशेष महत्व है। प्रयागराज, हरिद्वार, उज्जैन और नासिक में अलग-अलग समय पर होने वाले कुंभ मेले के आयोजन में देश-विदेश से भक्त लाखों की संख्या में पवित्र डुबकी लगाते हैं। बता दें कि 13 जनवरी 2025 से प्रयागराज में कुंभ मेले का आयोजन होने जा रहा है। इस महा आयोजन में देश के विभिन्न हिस्सों से प्रमुख 13 अखाड़ों के साधु-संत मुख्य आकर्षण का केंद्र होंगे और शाही स्नान करेंगे।

 

इन सभी अखाड़ों में शैव और वैष्णव परंपरा का पालन करने वाले साधु-संत अधिक होंगे। कुंभ की विशेषता यह है कि इन अखाड़ों के प्रमुख साधु-संत एकसाथ आकर विभिन्न धार्मिक विषयों पर चर्चा करते हैं और सबसे पहला स्नान- शाही स्नान, करते हैं। क्या आप जानते हैं कि कई वर्ष पूर्व तक शैव और वैष्णव संप्रदाय के साधु-संत एक दूसरे को देखना तक नहीं चाहते थे और इनके बीच कई बार हिंसक झड़प भी हो चुके हैं। आइए जानते हैं, ऐसे ही कुछ अखाड़ों के संघर्ष के बारे में।

अखाड़ों के बीच हुए संघर्ष का इतिहास

हरिद्वार में हुए कुंभ मेले में संघर्ष और हादसे कई बार चर्चा में आते हैं। इतिहासकारों की मानें तो वर्ष 1310 में आयोजित हुए महाकुंभ मेले में महानिर्वाणी अखाड़े और रामानंद अखाड़े में के बीच हुए किसी विवाद ने इतना तूल पकड़ लिया था, जिससे वह खूनी संघर्ष में बदल हुआ। इसके बाद मुगल आक्रांता तैमूर ने महाकुंभ के दौरान हिन्दुओं पर आक्रमण कर दिया था और हजारों की संख्या में श्रद्धालुओं का नरसंहार किया था।

 

कुछ ऐतिहासिक किताबों में यह भी लिखा गया है कि 1690 में नासिक में हुए कुंभ के दौरान शैव और वैष्णव संप्रदाय के बीच खूनी संघर्ष हुआ और अनुमान है कि इसमें करीब 60,000 साधु-संत मारे गए थे। इसके बाद वर्ष 1760 में हरिद्वार में हुए हरिद्वार कुंभ मेले में करीब 1,800 लोग मारे गए थे। इसके बाद 1796 में शैव और निर्मल संप्रदाय के सन्यासियों में संघर्ष हुआ था। अब प्रश्न ये उठता है कि इन संप्रदायो में खूनी संघर्ष क्यों होता था। इसे जानने के लिए पहले इन दोनों संप्रदायों का जान लेना बहुत आवश्यक है। 

क्या है शैव और वैष्णव संप्रदाय में अंतर

वैष्णव संप्रदाय- वैष्णव संप्रदाय के अनुयायी भगवान विष्णु और उनके अवतार जैसे श्रीराम, श्रीकृष्ण और भगवान नरसिंह की उपासना करते हैं। वैष्णव संप्रदाय के प्रमुख ग्रंथ भागवत पुराण, विष्णु पुराण, और महाभारत हैं। वैष्णव अनुयायी भक्ति योग को प्रधान मानते हैं, जिसमें प्रेम और समर्पण के साथ भगवान की सेवा की जाती है।

 

वैष्णव मंदिरों में तुलसी के पौधे की पूजा का विशेष महत्व है। इनमें अहिंसा, सादगी और नियमबद्ध जीवन शैली को अधिक महत्व दिया जाता है।

 

शैव संप्रदाय- शैव संप्रदाय भगवान शिव की उपासना करता है, जो सृष्टि के संहारक और पुनरुत्पादक माने जाते हैं। शिव को ‘महादेव’ और ‘आदियोगी’ भी कहा जाता है। शैव संप्रदाय के प्रमुख ग्रंथ शिव पुराण और लिंग पुराण हैं। शिवलिंग इनकी आराधना का मुख्य प्रतीक है।

 

शैव भक्त 'ॐ नमः शिवाय' मंत्र का जाप करते हैं। शैव संप्रदाय में तंत्र, योग, और ध्यान का भी महत्वपूर्ण स्थान है। शैव अनुयायी रुद्राक्ष धारण करते हैं और साधना में तप एवं त्याग को प्राथमिकता देते हैं।

क्यों होता था साधु-संतों में संघर्ष?

आध्यात्मिक मामलों से जुड़े जानकार बताते हैं कि शैव और वैष्णव संप्रदाय के बीच श्रेष्ठ होने के कारण मतांतर रहता है और यही कुंभ मेले में दिखाई देता है। बता दें कि महाकुंभ, कुंभ या अर्ध कुंभ में शाही स्नान सबसे पहले साधु-संतों द्वारा किया जाता है। हालांकि, संघर्ष का कारण यह रहता था कि जो संप्रदाय सबसे श्रेष्ठ है, वह सबसे पहले स्नान करेगा और यही विवाद खूनी रूप ले लेता था। 

 

बता दें कि शैव अखाड़ों की श्रेणी में जूना अखाड़ा, अग्नि अखाड़ा, आह्वान अखाड़ा, निरंजनी अखाड़ा और आनंद अखाड़ा शामिल हैं। इनमें सबसे प्राचीन और बड़ा जूना अखाड़ा है जो सबसे पहले राजसी या शाही स्नान करता है। वहीं वैष्णव अखाड़ों में निर्मोही अखाड़ा, निर्वाणी अखाड़ा और दिगंबर अखाड़ा का नाम आता है।

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