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एक हाथ ऊपर, सालों की साधना: क्या है नागा साधुओं की हठयोग तप का रहस्य?

महाकुंभ में साधु-संतों के साथ हठयोगियों के भी दर्शन होते हैं। जानिए क्या है इस तपस्या का रहस्य और महत्व।

Image of Naga Sadhu in Kumbh Mela

महाकुंभ में नागा साधु। (Photo Credit: PTI)

सनातन धर्म में अलग-अलग सिद्धियों की प्राप्ति के लिए ध्यान-साधना की जाती है। मान्यता है कि यह सिद्धियां भगवान का आशीर्वाद प्राप्त करने और मोक्ष की प्राप्ति में सहायक होते हैं। बता दें कि धर्म-ग्रंथों में योग-साधना के लिए कई तरीके बता गए हैं, जिसमें से एक हठयोग भी साधना का प्रमुख प्रतीक है। महाकुंभ के दौरान ऐसे कई साधुओं के दर्शन होते, जो हठयोग का पालन।

क्या है हठयोग?

हठयोग योग की एक प्राचीन विधा है, जो शरीर और मन को संतुलित करने की प्रक्रिया पर केंद्रित है। 'हठ' शब्द दो संस्कृत शब्दों, 'ह' यानी सूर्य और 'ठ' अर्थात चंद्र से मिलकर बना है, जो ऊर्जा और शीतलता का प्रतीक है। हठयोग का उद्देश्य इन दोनों ऊर्जाओं को संतुलित करना और साधक को शारीरिक, मानसिक व आध्यात्मिक स्तर पर सशक्त बनाना है।

 

हठयोग की उत्पत्ति 11वीं शताब्दी में मानी जाती है, और इसे गुरु मत्स्येंद्रनाथ और उनके शिष्य गुरु गोरखनाथ ने लोकप्रिय बनाया। हठयोग मुख्य रूप से शारीरिक योगासन, प्राणायाम (सांस लेने की तकनीक), ध्यान और शुद्धिकरण की क्रियाओं (षट्कर्म) पर आधारित है। यह साधना का एक मार्ग है, जिसमें व्यक्ति स्वयं के भीतर छिपी चेतना को जागृत करने का प्रयास करता है।

कितने प्रकार के होते हैं हठयोग?

  • आसन (शारीरिक मुद्राएं): हठयोग में 84 लाख आसनों का उल्लेख है, जिनमें से प्रमुख आसन जैसे पद्मासन, भुजंगासन, और ताड़ासन शरीर को स्वस्थ और लचीला बनाते हैं। इन योग मुद्राओं से शरीर स्वस्थ रहता है और कई प्रकार की बीमारियां दूर रहती हैं।
  • प्राणायाम (सांस नियंत्रण): प्राणायाम के माध्यम से सांस की गति को नियंत्रित किया जाता है, जिससे शारीरिक और मानसिक स्थिरता प्राप्त होती है। इसके प्रमुख प्रकार हैं अनुलोम-विलोम, कपालभाति और भस्त्रिका।
  • षट्कर्म (शुद्धिकरण प्रक्रियाएं): ये छह प्रक्रियाएं- नेति, धौति, बस्ति, त्राटक, नौली और कपालभाति शरीर और मन को विषाक्त पदार्थों से मुक्त करती हैं।
  • मुद्राएं, बंध और ध्यान: ये ऊर्जा को नियंत्रित करने और मानसिक शक्ति को बढ़ाने में सहायक होती हैं। वहीं ध्यान के माध्यम से मानसिक शांति और आत्मा का साक्षात्कार किया जाता है।

क्यों किया जाता है हठयोग?

प्राचीन काल से हठयोग को साधु-संतों द्वारा किया जा रहा है। योग की इस विधा से मन और मस्तिष्क शांत रहता है। इससे साधु-संतों को भगवान की साधना में विशेष लाभ मिलता था। हालांकि, समय के साथ आम लोगों में योग और हठयोग की मुद्राओं को अपनाने का चलन बढ़ा है। ऐसा इसलिए है क्योंकि यह न केवल आध्यात्मिक उन्नति के लिए बल्कि शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य सुधार के लिए भी लाभकारी है। 

 

कहा जाता है कि हठयोग करने से तनाव, चिंता, और अवसाद जैसी समस्याओं में राहत मिलती है। हठयोग के अभ्यास से शरीर की मांसपेशियों में लचीलापन, सहनशक्ति, और ऊर्जा का संचार होता है। साथ ही यह पाचन, रक्तचाप और हार्मोनल संतुलन को भी बेहतर बनाता है।

कौन होते हैं हठयोगी?

हठयोगी वे साधक होते हैं, जो हठयोग के मार्ग पर चलकर शारीरिक, मानसिक और आध्यात्मिक संतुलन प्राप्त करते हैं। वे अपने शरीर और मन पर पूरा नियंत्रण पाने के लिए कठोर अनुशासन और साधना का पालन करते हैं। हठयोगी सांस, मुद्रा और ध्यान के माध्यम से ऊर्जा का संचय करते हैं और इसे साधना के उच्च स्तर तक ले जाते हैं। उनका जीवन सरल, अनुशासित और ईश्वर के प्रति समर्पित होता है।

 

हठयोगी जीवन के भौतिक सुखों से दूर रहकर आत्मिक शांति की खोज में लिप्त रहते हैं। उनकी साधना में प्राणायाम, आसन, बंध और मुद्रा का गहन अभ्यास शामिल होता है। वे अपने मन को स्थिर रखते हुए सांसों पर ध्यान केंद्रित करते हैं, जिससे उन्हें ध्यान की गहरी अवस्था प्राप्त होती है।

महाकुंभ में हठयोगियों के दर्शन

13 जनवरी से होने जा रहे महाकुंभ में देश के कोने-कोने से साधु-संत आ रहे हैं। इन साधुओं में से कुछ हठयोगी भी हैं। ऐसे ही एक हठयोगी ऋषिकेश के आश्रम में रहने वाले नागा बाबा श्री संदीप पुरी महाराज हैं, जो वर्षों से खड़े रहकर तपस्या कर रहे हैं। पैरों में सूजन न आए, इसलिए वह नाममात्र का नमक लेते हैं और केवल फलाहार पर रहते हैं। उनकी यह तपस्या जनकल्याण और हरियाणा के हिसार स्थित बड़ाला गांव में पेयजल उपलब्ध कराने के लिए हैं। इनका संबंध जूना अखाड़ा से हैं।

 

इसके साथ आनंद अखाड़ा के नागा बाबा दिगंबर दिवाकर भारती पिछले तीन वर्षों से एक हाथ को हवा में उठाए अर्ध बाहु तपस्या कर रहे हैं। पांच वर्षों से वह फलाहार पर निर्भर हैं और उनका हठयोग ईश्वर साक्षात्कार व जनकल्याण के लिए है। उनका हाथ अब स्थायी रूप से ऊपर ही रहता है और साधना के दौरान सत्संग व धूना के पास समय बिताते हैं।

 

वहीं श्री शंभू पंचायती अटल अखाड़ा के नागा बाबा हरवंश गिरि नौ वर्षों से खड़े रहकर तपस्या कर रहे हैं। उनका हठयोग परमार्थ और सद्भावना के लिए है। खास बात यह है कि इतने वर्षों से उन्होंने अपने केश नहीं कटाए, जो अब जटाओं का रूप ले चुके हैं।

 

Disclaimer- यहां दी गई सभी जानकारी सामाजिक और धार्मिक आस्थाओं पर आधारित हैं। Khabargaon इसकी पुष्टि नहीं करता।

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