वर्ष 2025 महाकुंभ का अपना एक विशेष महत्व था। प्रयागराज में चल रहे महाकुंभ में अब 10 करोड़ लोग पवित्र गंगा, यमुना और अदृश्य हो चुके सरस्वती नदी में स्नान कर चुके हैं। महाकुंभ में बीते कुछ दिनों से किन्नर अखाड़ा चर्चा का विषय बना हुआ है। वर्ष 2015 में अस्तित्व में आए किन्नर अखाड़ा भी अब कुंभ मेले में आकर्षण का बड़ा केंद्र बन गया है।
किन्नर अखाड़ा एक ऐसा केंद्र बन गया है जहां हर वर्ग, जाति, धर्म और लैंगिक पहचान के लोग आकर एक समानता और आध्यात्मिकता का अनुभव कर सकते हैं। यह अखाड़ा, किन्नरों के लिए न सिर्फ अध्यात्म को अपनाने का केंद्र है, बल्कि यह आत्म-सम्मान का भी प्रतीक है। यह अखाड़ा डॉक्टर और इंजीनियरों के लिए भी आकर्षण का केंद्र बन रहा है।
अध्यात्म की ओर बढ़ रहे हैं युवा
बेंगलुरु के एक सॉफ्टवेयर इंजीनियर में इंजीनियर ने कहा 'विज्ञान और आध्यात्मिकता को अलग समझना दोनों के साथ अन्याय है। जहां विज्ञान हमें तर्क और प्रमाण देता है, वहीं विश्वास हमें मानसिक शक्ति और आत्म-नियंत्रण सिखाता है।”
किन्नर अखाड़े में आयोजित होने वाली साधनाएं, हवन और कालीन अघोर पूजाएं, इस संतुलन को पाने का माध्यम बन रही हैं। यहां डॉक्टर और इंजीनियर जैसे लोग, जो अक्सर तर्क और प्रमाण के रास्ते पर चलते हैं, जीवन के गहरे रहस्यों और आत्मज्ञान की खोज में आते हैं।
किन्नर अखाड़ा
किन्नर अखाड़ा, जिसकी स्थापना 2015 में हुई, किन्नरों के लिए एक सुरक्षित स्थान बन गया है। यह उन्हें न केवल समाज में स्वीकृति दिलाने का कार्य करता है, बल्कि एक ऐसा मंच भी प्रदान करता है जहां वे अपनी पहचान और अधिकारों के लिए आवाज उठा सकते हैं। सुप्रीम कोर्ट के 2014 के नालसा निर्णय और 2020 के ट्रांसजेंडर पर्सन्स (प्रोटेक्शन ऑफ राइट्स) एक्ट ने कानूनी रूप से किन्नरों को समान अधिकार दिए हैं, लेकिन सामाजिक स्तर पर अभी भी उन्हें स्वीकृति पाने के लिए संघर्ष करना पड़ता है।
किन्नर अखाड़े की गुरु, अवंतिका गिरी मीडिया से बात करए हुए कहती हैं, 'हम केवल इंसान हैं, न कि तीसरा लिंग। हम समाज की ऊंच-नीच को अस्वीकार करते हैं और एक लोकतांत्रिक सोच रखते हैं।” इसी सोच ने अखाड़े को उन युवाओं के लिए आकर्षण का केंद्र बनाया है जो पुराने, पुरुष-प्रधान अखाड़ों के कठोर नियमों और सीमाओं से असहमत हैं।
आधुनिक पेशेवरों का जुड़ाव
आज, डॉक्टर और इंजीनियर जैसे पेशेवर, जो विज्ञान और तकनीक की दुनिया में काम करते हैं, अब आध्यात्मिकता की ओर बढ़ रहे हैं। धर्म गुरुओं का कहना है कि यह उनके लिए यह सिर्फ एक धार्मिक यात्रा नहीं है, बल्कि आत्म-साक्षात्कार और मानसिक स्थिरता पाने का माध्यम है। किन्नर अखाड़ा उन्हें इस संतुलन को प्राप्त करने में मदद करता है। यहां, वे हवन में भाग लेते हैं, राख से खुद को लिप्त करते हैं और जीवन के गहरे पहलुओं पर चिंतन करते हैं।
अघोरी साधु और किन्नरों का संबंध
किन्नरों का अघोरी साधुओं के प्रति विशेष जुड़ाव है, क्योंकि अघोरी किसी भी चीज को ‘अच्छा’ या ‘बुरा’ जैसे द्वंद्व में नहीं बांधते। उनके लिए हर वस्तु, हर व्यक्ति, समान रूप से मूल्यवान है। यही कारण है कि किन्नर अपनी विशेष पूजा के लिए अघोरी साधुओं को आमंत्रित करते हैं।