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महाकुंभ में एक साथ आते हैं चार मठों के शंकराचार्य, जानिए महत्व

कुंभ मेले में लाखों की संख्या में साधु-संत संगम में पवित्र स्नान करते हैं। इसमें चार प्रमुख मठों के शंकराचार्य भी सम्मिलित होते हैं। जानिए इसका महत्व और इतिहास।

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महाकुंभ में स्नान करते संत। (PTI File Photo)

हिंदू धर्म में कुंभ मेले का अपना एक विशेष महत्व है। बता दें के चार स्थान- प्रयागराज, हरिद्वार, नासिक और उज्जैन में अलग-अलग समय पर कुंभ मेले का आयोजन होता है। वैदिक पंचांग के अनुसार, 13 जनवरी 2025 से कुंभ मेले का आयोजन होने जा रहा है। कुंभ मेले में देशभर के कोने-कोने से लाखों की संख्या में साधु-संत पवित्र संगम में डुबकी लगाने के लिए आते हैं। इन देश चारों कोनों में स्थित चार प्रमुख मठ भी शामिल होते हैं। इन मठों का धार्मिक, सांस्कृतिक और ऐतिहासिक महत्व अत्यंत विशेष है। चारों मठों की स्थापना भारतीय धर्म और संस्कृति के महान संत आदिगुरु शंकराचार्य ने आठवीं शताब्दी में की थी।

आदिगुरु शंकराचार्य और उनका उद्देश्य

आदिगुरु शंकराचार्य एक महान संत, दार्शनिक और धर्म सुधारक थे, जिन्होंने भारतीय संस्कृति और सनातन धर्म को एक नई दिशा दी। उनका जन्म 788 ईस्वी में केरल के कलडी में हुआ था। कलडी एक छोटा सा गांव है जो केरल के एर्नाकुलम जिले में स्थित है। उनका जन्म ऐसे समय में हुआ था जब धर्म और समाज में अंधविश्वास, कुरीतियों और पाखंड का बोलबाला था। उन्होंने अद्वैत वेदांत के सिद्धांत का प्रचार-प्रसार किया, जो यह बताता है कि आत्मा और परमात्मा एक ही हैं।

 

आदिगुरु ने भारत में चार प्रमुख मठों की स्थापना की, जिनका उद्देश्य भारतीय संस्कृति और धर्म की एकता को मजबूत करना था। उन्होंने उत्तर में ज्योतिर्मठ, दक्षिण में श्रृंगेरी मठ, पूर्व में पुरी का गोवर्धन मठ, और पश्चिम में द्वारिका मठ स्थापित किए। इन मठों का उद्देश्य वेदांत दर्शन को प्रचारित करना, वैदिक शिक्षा का संरक्षण करना और धर्म के मार्गदर्शन के लिए योग्य आचार्यों को तैयार करना था।

 

इन मठों के माध्यम से उन्होंने धर्म, शिक्षा और समाज सुधार का कार्य किया। उनका उद्देश्य भारतीय समाज को एकता के सूत्र में बांधना और धर्म को मानव कल्याण का माध्यम बनाना था। आज भी उनके मठ भारतीय संस्कृति और आध्यात्मिकता के प्रमुख केंद्र बने हुए हैं।

श्रृंगेरी मठ

श्रृंगेरी मठ, जिसे दक्षिणाम्नाय श्री शारदापीठ के नाम से भी जाना जाता है, भारत के कर्नाटक राज्य में तुंगा नदी के किनारे स्थित है। यह मठ भारतीय सनातन धर्म के चार प्रमुख मठों में से एक है, जिसकी स्थापना आठवीं शताब्दी में आदिगुरु शंकराचार्य द्वारा की गई थी। इस मठ की स्थापना का मुख्य उद्देश्य अद्वैत वेदांत दर्शन के प्रचार-प्रसार और समाज में धार्मिक और आध्यात्मिक जागरूकता लाना था।

 

श्रृंगेरी मठ का नाम श्रृंगी ऋषि के नाम पर पड़ा, जिनके तपस्या स्थल के पास यह मठ स्थापित किया गया। यह मठ अपनी अद्वितीय स्थापत्य शैली, प्राकृतिक सौंदर्य और शारदा देवी के मंदिर के लिए प्रसिद्ध है। वर्तमान समय में श्रृंगेरी मठ के  शंकराचार्य श्री भरती तीर्थ स्वामिगल हैं।

द्वारिका मठ

द्वारिका मठ, जिसे पश्चिमाम्नाय शारदा पीठ के नाम से भी जाना जाता है, जो गुजरात राज्य में द्वारिका नगरी में स्थित है। यह मठ चार प्रमुख मठों में से एक है, जिसकी स्थापना आठवीं शताब्दी में ही गई थी। इस मठ की स्थापना का उद्देश्य भी अद्वैत वेदांत के सिद्धांतों का प्रचार-प्रसार और वैदिक संस्कृति का संरक्षण करना था।

 

द्वारिका मठ का धार्मिक और ऐतिहासिक महत्व अत्यधिक है, क्योंकि यह स्थान भगवान श्रीकृष्ण की नगरी द्वारिका से जुड़ा हुआ है। यह मठ समुद्र के किनारे स्थित है और इसकी स्थापना पश्चिम दिशा के धार्मिक और आध्यात्मिक केंद्र के रूप में की गई थी। यहां वेद, उपनिषद और धर्मशास्त्रों का गहन अध्ययन और शिक्षण होता है। मठ का प्रमुख देवता श्रीकृष्ण को माना गया है और यहां परंपरागत रूप से वेदांत और धर्म पर चर्चा और प्रवचन होते हैं। वर्तमान समय में इस मठ के शंकराचार्य सदानंद सरस्वती स्वामी हैं।

ज्योतिर्मठ

ज्योतिर्मठ, जिसे उत्तराम्नाय मठ के नाम से भी जाना जाता है, उत्तराखंड के बद्रीनाथ क्षेत्र के पास स्थित है। यह मठ भारतीय सनातन धर्म के चार प्रमुख मठों में से एक है, जिसकी स्थापना आठवीं शताब्दी में आदिगुरु शंकराचार्य द्वारा की गई थी। इस मठ का मुख्य उद्देश्य वेद, उपनिषद और सनातन धर्म के गूढ़ ज्ञान को संरक्षित करना और समाज में आध्यात्मिकता का प्रचार करना था। ज्योतिर्मठ को धर्म और दर्शन के अध्ययन के लिए एक प्रमुख केंद्र के रूप में विकसित किया गया था, जहां वेदांत दर्शन और भारतीय परंपराओं की शिक्षा दी जाती थी। 

 

वर्तमान समय में ज्योतिर्मठ के शंकराचार्य अविमुकेश्वरानंद सरस्वती हैं। वह वेदांत और आध्यात्मिकता के प्रचार-प्रसार में सक्रिय हैं। उनके नेतृत्व में मठ धर्म, शिक्षा और समाज सेवा के कार्यों में संलग्न है। मठ आज भी वेदों के अध्ययन और भारतीय संस्कृति के संरक्षण का एक प्रमुख केंद्र बना हुआ है।

गोवर्धन मठ

पुरी मठ, जिसे गोवर्धन मठ के नाम से भी जाना जाता है, भारत के उड़ीसा राज्य के पुरी में स्थित है। यह चार प्रमुख मठों में से एक है, जिसकी स्थापना आठवीं शताब्दी पुरी मठ का विशेष महत्व है क्योंकि यह भारत के चार धाम में से एक है। यह मठ पूर्व दिशा का प्रतिनिधित्व करता है और जगन्नाथ मंदिर के निकट स्थित है। इस मठ का प्रमुख देवता भगवान जगन्नाथ हैं, और इसे वैदिक शिक्षा, धार्मिक अध्ययन, और आध्यात्मिक अनुष्ठानों का प्रमुख केंद्र माना जाता है। गोवर्धन मठ के अंतर्गत वैदिक शिक्षा, यज्ञ और उपनिषदों के अध्ययन को बढ़ावा दिया जाता है। वर्तमान समय में इस मठ के शंकराचार्य निश्चलानंद सरस्वती स्वामी हैं।

कुंभ मेले में इन चार मठों का महत्व

कुंभ मेले में इन चारों मठों का एक साथ आना विशेष रूप से महत्वपूर्ण है क्योंकि यह एकता, समर्पण और धर्म की शक्ति का प्रतीक माना जाता है। इन मठों के प्रमुख, जिन्हें शंकराचार्य कहा जाता है, कुंभ मेले में श्रद्धालुओं को आध्यात्मिक मार्गदर्शन प्रदान करते हैं। कुंभ मेले में सभी 13 अखाड़ों के साथ-साथ ये चार मठ के शंकराचार्य भी विशेष आकर्षण केंद्र होते हैं, जिन्हें हिंदू धर्म के प्रतिनिधि के रूप में भी जाना जाता है।

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