भारतीय सनातन परंपरा में कुंभ मेले का अपना एक विशेष महत्व है। कुंभ मेले का आयोजन विश्व के सबसे बड़े धार्मिक आयोजनों में से एक माना जाता है। कुंभ मेला चार प्रमुख स्थान- हरिद्वार, प्रयागराज, उज्जैन और नासिक में आयोजित होता है। इस साल 13 जनवरी से उत्तर प्रदेश में स्थित प्रयागराज में आयोजित होगा, जिसे तीर्थराज भी कहा जाता है।
हालांकि, कुंभ मेले के विभिन्न प्रकारों में से दो प्रमुख आयोजन 'महाकुंभ' और 'सिंहस्थ कुंभ' हैं। दोनों अपने-अपने धार्मिक महत्व, समय चक्र और परंपराओं के कारण अलग पहचान रखते हैं।
महाकुंभ का महत्व
महाकुंभ मेला हर 12 वर्षों में केवल प्रयागराज (इलाहाबाद) में आयोजित होता है। यह आयोजन हिंदू धर्म के अनुसार सबसे पवित्र और शुभ अवसर माना जाता है, जहां लाखों श्रद्धालु संगम पर स्नान करते हैं। संगम वह स्थान है जहां गंगा, यमुना और अदृश्य सरस्वती नदियां मिलती हैं।
महाकुंभ को 'पूर्ण कुंभ' भी कहा जाता है और यह ज्योतिषीय गणनाओं पर आधारित होता है। यह तब आयोजित होता है जब सूर्य, चंद्रमा और बृहस्पति मकर राशि में होते हैं। मान्यता है कि इस पवित्र स्नान से सभी पापों से मुक्ति मिलती है और मोक्ष की प्राप्ति होती है।
महाकुंभ का विशेष महत्व इसलिए भी है, क्योंकि इस कुंभ में दुनियाभर से करोड़ों की संख्या में तीर्थयात्री, पर्यटक व साधु-संत एकत्रित होते हैं और इस आयोजन का हिस्सा बनते हैं।
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सिंहस्थ कुंभ की क्या है विशेषता?
सिंहस्थ कुंभ मेला केवल उज्जैन में आयोजित होता है और इसका आयोजन भी हर 12 साल में होता है। इसे सिंहस्थ इसलिए कहा जाता है क्योंकि यह तब आयोजित होता है जब बृहस्पति सिंह राशि में होता है।
उज्जैन में कुंभ मेले का मुख्य केंद्र 'शिप्रा नदी' है। श्रद्धालु इस नदी में स्नान करते हैं, जिसे मोक्षदायिनी माना जाता है। सिंहस्थ कुंभ का आयोजन महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग के पास होता है, जो भगवान शिव के द्वादश ज्योतिर्लिंगों में से एक है। इसलिए यह मेला शिव भक्तों के लिए विशेष महत्व रखता है।
महाकुंभ और सिंहस्थ कुंभ में मुख्य अंतर
- महाकुंभ केवल प्रयागराज में होता है, वहीं सिंहस्थ कुंभ केवल उज्जैन में आयोजित किया जाता है।
- महाकुंभ सूर्य, चंद्रमा और बृहस्पति के मकर राशि में आने पर होता है, जबकि सिंहस्थ कुंभ बृहस्पति के सिंह राशि में आने पर होता है।
- महाकुंभ का आयोजन गंगा, यमुना और सरस्वती के संगम तट पर होता है, वहीं सिंहस्थ कुंभ का आयोजन शिप्रा नदी के किनारे होता है।
- महाकुंभ सभी अखाड़ों और धर्मों के साधु-संतों की व्यापक उपस्थिति के कारण अधिक व्यापक माना जाता है। वहीं सिंहस्थ कुंभ का विशेष संबंध भगवान शिव और उज्जैन के महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग से है। हालांकि, दोनों में कई समानताएं हैं।
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महाकुंभ और सिंहस्थ कुंभ से जुड़ी दिलचस्प बातें
दोनों मेले समुद्र मंथन की पौराणिक कथा से जुड़े हुए हैं। माना जाता है कि अमृत कलश से चार स्थानों पर अमृत की बूंदें गिरी थीं- हरिद्वार, प्रयागराज, उज्जैन और नासिक। यही कारण है कि इन स्थानों पर कुंभ मेले का आयोजन होता है।
महाकुंभ दुनिया का सबसे बड़ा धार्मिक आयोजन माना जाता है। वर्ष 2013 में प्रयागराज में आयोजित महाकुंभ में करीब 12 करोड़ से अधिक श्रद्धालु पहुंचे थे। वहीं 2025 में आयोजित हो रहे महकुंभ में 40 करोड़ लोगों के आने की संभावना है।
सिंहस्थ कुंभ और महाकुंभ दोनों ही साधु-संतों और अखाड़ों का प्रमुख केंद्र होते हैं। यहां नागा साधु, जूना अखाड़ा, निरंजनी अखाड़ा, और अन्य धार्मिक समूह अपनी परंपराओं और आस्थाओं का प्रदर्शन करते हैं।
महाकुंभ को यूनेस्को ने भी 'मानवता की अमूर्त सांस्कृतिक विरासत' का दर्जा दिया है। दोनों मेलों में स्नान की विशेष तिथियां होती हैं, जिन्हें 'शाही स्नान' कहा जाता है। इन तिथियों पर लाखों श्रद्धालु स्नान के लिए एकत्रित होते हैं।
Disclaimer- यहां दी गई सभी जानकारी सामाजिक और धार्मिक आस्थाओं पर आधारित हैं। Khabargaon इसकी पुष्टि नहीं करता।