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कभी भगदड़ तो कभी साधुओं में झड़प, पढ़ें कुंभ मेलों का इतिहास

कुंभ मेले के इतिहास में कुछ ऐसी विवादास्पद घटनाएं भी हुई हैं, जिन्होंने लोगों का ध्यान अपनी ओर खींचा है। आइए पढ़ते हैं कुंभ मेले में कब-कब आई चुनौतियां।

Image of Kumbh Mela

कुंभ मेले का दृश्य।(Photo Credit: PTI File Photo)

हिंदू धर्म में होने वाले धार्मिक आयोजनों में कुंभ मेला सबसे बड़ा और पवित्र धार्मिक आयोजन है। देश के चार स्थानों पर होने वाले इस संगम में देश-विदेश से लाखों श्रद्धालु और साधु-संत हिस्सा लेते हैं। भारतीय सनातन संस्कृति में यह आयोजन धार्मिक और आध्यात्मिकता का प्रतीक है। लेकिन इतने विशाल स्तर पर आयोजित होने के कारण यह आयोजन कई बार अव्यवस्थाओं और अप्रत्याशित घटनाओं का गवाह भी बना है। कुंभ मेले में भगदड़, साधुओं में झड़प, और अन्य विवादास्पद घटनाएं भी इसका हिस्सा रही हैं, जो मेले के संचालन और प्रबंधन के लिए बड़ी चुनौती साबित हुई हैं। आइए जानते हैं बीते समय में हुई कुछ ऐसी ही घटनाएं।

भगदड़ की घटनाएं

कुंभ मेले में बड़ी संख्या में श्रद्धालु पवित्र संगम में स्नान करने के लिए उमड़ते हैं। इस दौरान कई बार भगदड़ की घटनाएं भी हुई हैं, जिनमें अनेक लोगों की जान चली गई। इतिहासकारों के अनुसार, वर्ष 1820 में आयोजित हुए कुंभ में मची भगदड़ में 430 लोगों की मृत्यु हुई थी, यह कुंभ में हुई श्रद्धालुओं की मृत्यु का सबसे बड़ा आंकड़ा है। ऐसी ही घटना 1954 प्रयागराज में आयोजित हुए प्रयागराज कुंभ मेले में घटी थी। उस समय कुंभ में सुरक्षा प्रबंधों की कमी और ज्यादा भीड़ के कारण भगदड़ मच गई, जिसमें सैकड़ों लोगों की मृत्यु हो गई थी। इस घटना ने प्रशासन और मेले के आयोजकों के लिए सुरक्षा प्रबंधों को लेकर गंभीर सवाल खड़े किए।

 

इसके बाद 2013 का कुंभ मेला भी इसी तरह की एक भयावह घटना के लिए याद किया जाता है। इलाहाबाद रेलवे स्टेशन पर श्रद्धालुओं की भारी भीड़ के कारण भगदड़ मच गई थी, जिसमें 36 से अधिक लोगों की मौत हो गई और सैकड़ों लोग घायल हो गए। इस घटना ने रेलवे और प्रशासनिक व्यवस्था की खामियों को उजागर किया था।

साधुओं में झड़पें और विवाद

कुंभ मेले में विभिन्न अखाड़ों और साधु-संतों का जमावड़ा होता है। इनमें से प्रत्येक अखाड़ा अपनी परंपराओं और मान्यताओं का पालन करता है। कभी-कभी इन अखाड़ों के बीच मतभेद इतने बढ़ जाते हैं कि झड़प तक की स्थिति बन जाती है। 1989 के कुंभ मेले के दौरान, नागा साधुओं के दो गुटों के बीच विवाद इतना बढ़ गया कि उनके बीच हथियारबंद झड़प हो गई। इस झड़प ने मेले के शांतिपूर्ण वातावरण को बुरी तरह प्रभावित किया और पुलिस को हस्तक्षेप करना पड़ा।

 

2001 के कुंभ मेले में भी साधुओं के बीच एक अखाड़े की प्रधानता को लेकर विवाद हो गया था। नागा साधुओं के दो गुटों ने स्नान के लिए प्राथमिकता को लेकर विरोध जताया, जिसके कारण काफी देर तक तनावपूर्ण माहौल बना रहा। हालांकि, पुलिस और प्रशासन ने इसे सुलझाने में सफलता पाई।

प्राकृतिक और प्रशासनिक चुनौतियां 

कुंभ मेला प्राकृतिक आपदाओं का भी सामना कर चुका है। 2019 के प्रयागराज कुंभ मेले के दौरान भारी बारिश के कारण मेले के कई क्षेत्र जलमग्न हो गए थे, जिससे श्रद्धालुओं और साधुओं को भारी परेशानी का सामना करना पड़ा। इसके अलावा, गंगा और यमुना नदी में पानी का बढ़ता स्तर कई बार कुंभ के आयोजन के लिए खतरा बनता है।

प्रशासनिक दृष्टिकोण से भी कुंभ मेले का प्रबंधन एक बड़ी चुनौती होती है। लाखों की संख्या में श्रद्धालुओं की भीड़, साधुओं और अखाड़ों की प्राथमिकताएं, और पवित्र स्नान की व्यवस्था को सुचारू रूप से संचालित करना प्रशासन के लिए एक कठिन कार्य है।

2025 महाकुंभ के लिए ये तैयारी

13 जनवरी से उत्तर प्रदेश के प्रयागराज में महाकुंभ मेले का आयोजन होने जा रहा है। प्रशासन ने अनुमान लगाया है कि इस साल कुंभ में हिस्सा लेने के लिए 45 करोड़ से अधिक श्रद्धालु और साधु संत आएंगे। ऐसे में सुरक्षा व्यवस्था को लेकर सरकार और प्रशासन की व्यापक तैयारियां लगभर पूरी हो चुकी हैं। इसके लिए सबसे पहले, महाकुंभ के दौरान पूरे क्षेत्र में 650 सीसीटीवी के साथ पहली बार 100 एफआर कैमरे भी लगाए जा रहे हैं। ताकि हर कोने पर नजर रखी जा सके। इन कैमरों से कुंभ के दौरान चल रही गतिविधियों पर एक कंट्रोल रूम से विशेषज्ञों की टीम नजर रखेगी। सुरक्षा बलों की तैनाती में भी भारी इजाफा किया जाएगा। इसमें 50,000 पुलिसकर्मी, पीएसी और अर्धसैनिक बल के जवानों की तैनाती होगी। साथ ही, प्रशिक्षित 200 एनएसजी कमांडो और इसके साथ बम निरोधक दस्ते भी तैनात किए जाएंगे। भगदड़ न मचे इसके लिए घाटों तक पहुंचने के लिए निर्धारित मार्ग बनाए गए हैं, जिसका इस्तेमाल श्रद्धालु कुंभ के दौरान करेंगे।

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