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नदियों के लिए बने राष्ट्रीय नदी प्राधिकरण, इस मांग का मकसद क्या?

महाकुंभ नगर में गंगा समग्र के राष्ट्रीय कार्यकर्ता संगम में राष्ट्रीय नदी प्राधिकरण बनाने का पास हुआ प्रस्ताव

Mahakumbh 2025

गंगा समग्र संस्थान की टीम। (Photo Credit: Khabargaon)

देश भर में फैली नदियों को बेहतर बनाने की दिशा में 'गंगा समग्र संस्थान' ने गंगा की निर्मलता, उसके प्रवाह को निर्बाध और जीवंत बनाने की मांग रखी है। हर हाल में न्यूनतम जल की उपलब्धता सुनिश्चित करने का प्रस्ताव भी पारित किया गया। साथ ही इसकी निगरानी और नियंत्रण के लिए राष्ट्रीय नदी प्राधिकरण बनाने की जरूरत बताई गई। महाकुंभ नगर के सेक्टर 8 में आयोजित गंगा समग्र का राष्ट्रीय कार्यकर्ता संगम में यह निर्णय लिया गया।

गंगा समग्र के राष्ट्रीय मंत्री अवधेश कुमार ने आम सभा में प्रस्ताव प्रस्तुत किया जिसे ध्वनि मत से पास किया गया। प्रस्ताव में गंगा जल को सिर्फ उपयोगी मान कर उसका अविवेकपूर्ण दोहन करने पर चिंता जताई गई। प्रस्ताव में कहा गया कि नदी के रास्ते रोककर उसका प्रवाह रोकना अवैज्ञानिक है। इससे नदी की परिस्थितिकी खत्म हो रही है। नदी की परिस्थितिकी खत्म होने का मतलब है नदी के प्राण खत्म होना। आज नदी की सबसे बड़ी चुनौती है उसकी मलिनता लेकिन निर्मलता के लिए बाकी प्रयासों से ज्यादा महत्वपूर्ण है उसकी अविरलता।

गंगा समग्र के राष्ट्रीय मंत्री अवधेश कुमार ने कहा, 'अविरलता के बिना किसी भी नदी के जीवन को बचाना सम्भव नहीं है। नदी सिर्फ पानी नहीं, अपितु समग्र जीवंत प्रणाली होती है। जैव विविधता, मिट्टी-रेत और जल, ये मिल कर ही किसी पानी की गुणवत्ता निर्धारित करते हैं। प्रवाह को स्वयं को साफ कर लेने का सामर्थ्य भी यही देते हैं। इसलिए नदी में कम से कम इतना पानी हो कि हम कह सकें कि नदी में जान है। बिजली, सिंचाई, पेयजल और आबादियों को बाढ़ से बचाने के नाम पर नदियों के रास्तों और किनारों पर अनेक अवरोध खड़े कर दिए गए हैं। इन कारणों से नदी में उचित न्यूनतम प्रवाह, जिसे पर्यावरणीय प्रवाह या ई-फ्लो कहते हैं, नहीं बचा है।'

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नदियों में रहने वाले जीवों का जीवन संकट में
गंगा समग्र के राष्ट्रीय मंत्री अवधेश कुमार ने कहा, 'पर्यावरणीय प्रवाह के अभाव में नदी के स्वास्थ्य के लिए आवश्यक जलीय जीवों जैसे मछलियां, घड़ियाल, डॉलफिन आदि के साथ ही जलीय वनस्पति के जीवन खत्म हो रहे हैं। वर्ष 2018 में पर्यावरणीय प्रवाह (ई-फ्लो) के लिए देवप्रयाग से हरिद्वार तक अलग-अलग महीनों में 20 से 30 फीसदी तक पानी छोड़ने का प्रावधान हुआ लेकिन य़ह मात्रा न पर्याप्त है और न ही तार्किक। इसे बढ़ाने की जरूरत है। इसमें सबसे बड़ी रुकावट जल विद्युत परियोजनाएं हैं। क्योंकि इनका पक्ष है कि अगर हम इतना जल छोड़ेंगे तो विद्युत संयंत्र बंद हो जाएंगे।'

अवधेश कुमार ने कहा, 'हमें यह समझना होगा कि नदियां हमारी बिजली, सिंचाई और पेयजल की आपूर्ति भर के लिए नहीं, अपितु इस पर बाकी जीव-जंतुओं का भी अधिकार है। ई-फ्लो के लिए भूमिगत जल दोहन को भी नियन्त्रित करना पड़ेगा और वर्षा जल संभरण के लिए कड़े नियम बनाने होंगे। ताजा परिस्थितियों में सिर्फ ग्लेशियर के पानी से ई-फ्लो को बनाए रखना सम्भव नहीं है। इसलिए नदी का पर्यावरणीय प्रवाह या ई-फ्लो तय करते समय 3 बातों का ध्यान रखना आवश्यक है।'

क्यों है राष्ट्रीय नदी प्राधिकरण की जरूरत?
अवधेश कुमार ने कहा, 'पहली बात नदी में रहने वाले जीव-जंतुओं के लिए पर्याप्त जलस्तर और प्रवाह बना रहे। ऑक्सीजन का स्तर समेत पानी की गुणवत्ता संतुलित रहे। दूसरी वर्षा का औसत, जलग्रहण क्षेत्र की स्थिति और भूगर्भीय संरचना को ध्यान में रखा जाए। गर्मी और मॉनसून के दौरान न्यूनतम प्रवाह में बदलाव को तार्किक रखा जाए। और तीसरी बात न्यूनतम प्रवाह तय करते समय सिंचाई, उद्योग, घरेलू उपयोग, सांस्कृतिक और धार्मिक आवश्यकताओं आदि के लिए जल की जरूरत को भी ध्यान में रखा जाए। इन्हीं मुद्दों के साथ गंगा समग्र केंद्र सरकार से यह अनुरोध करता है कि उक्त बातों को व्यापक और सम्यक अध्ययन करके इसके क्रियान्वयन के लिए राष्ट्रीय नदी प्राधिकरण ( नेशनल रिवर ट्रिब्यूनल ) एनआरटी का गठन किया जाए।'

'ऋषियों ने लिखा है प्रकृति का संविधान'

संगम के दौरान राष्ट्रीय अध्यक्ष अमरेंद्र सिंह ने कहा, 'प्रकृति की अपनी योजना है। ऋषियों ने इसका संविधान लिखा है। इसका पालन आवश्यक है। गंगा समग्र के कार्यकर्ताओं की मेहनत का फल है कि इस क्षेत्र में काम दिखने लगा है। जल सभी के लिए आवश्यक है। इसलिए सभी को इस चिंता में शामिल होना चाहिए। उन्होंने गंगा समग्र के कार्यकर्ताओं का आह्वान किया कि हर प्रांत में योजना बनाएं और लक्ष्य तय करें। लक्ष्य हासिल करने में अथक प्रयास करना होगा। तभी जल तीर्थों की शुचिता सुनिश्चित हो पाएगी।'

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महामंत्री डॉ आशीष गौतम ने कहा, 'किसी भी कार्य को सिद्ध करने के लिए संकल्प आवश्यक है। गंगा समग्र के कार्यकर्ता अनूठे हैं। 12 साल से संकल्प सिद्धि में लगे हैं। उन्होंने कहा कि किसी भी समस्या के प्रति मन दुखी होने लगे, संवेदना आए तो समझो समस्या के हल का प्रथम सोपान पूरा हुआ। दूसरा सोपान है उसके निराकरण का उपाय खोजा जाए। जब काम में लगेंगे तो व्यवधान आएंगे लेकिन काम में सतत लगे रहो। सफ़लता मिलेगी।'

गंगों के लिए संतों ने उठाई आवाज

राष्ट्रीय संगठन मंत्री रामाशीष ने कहा, 'हमारा संगठन, जनजागरण और रचनात्मक कार्य के आधार पर गंगा समग्र अपने लक्ष्य के संधान में लगा है। उन्होंने कहा कि कार्य के विस्तार के लिए समान विचारधारा के लोगों को जोड़े। भारत में नदियों को हमेशा मां का दर्जा दिया गया है, लेकिन विदेशी संस्कृति के अनुकरण के कारण नदियों के प्रति लोगों के श्रद्धा भाव में कमी आई है। श्रद्धा में कुछ विकृति भी दिखती है। इसके लिए समाज जागरण आवश्यक है। इसके साथ ही प्रत्यक्ष रचनात्मक कार्य के जरिए कार्य को आगे बढ़ाना चाहिए।'
 

रामाशीष ने अपने कार्यकर्ताओं से अपील की है कि छोटी धाराओं की अविरलता के लिए योजनाएं बनाएं। गंगा समेत सभी बड़ी नदियों के लिए छोटी धाराओं का स्वस्थ्य होना आवश्यक है। भूमिगत जल का अंधाधुंध दोहन इन धाराओं के लिए ठीक नहीं है। इसके शासन, प्रशासन पर दबाव बनाएं। समाज को जागृत करें। जल धाराओं का प्रवाह सतत करने में स्वार्थ और परमार्थ दोनों सिद्ध होते हैं। 

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