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महाकुंभ के ये अनुष्ठान के बिना अधूरी है पवित्र डुबकी, जानिए महत्व

13 जनवरी से शुरू होने वाले कुंभ मेले में पूजा-पाठ का विशेष महत्व है और इस दौरान कुछ जरूरी अनुष्ठान किए जाते हैं। आइए जानते हैं महाकुंभ के 5 प्रमुख अनुष्ठान।

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प्रयागराज में महाकुंभ की सांकेतिक चित्र। (Pic Credit: kumbh.gov.in)

12 वर्षों के प्रतीक्षा के बाद प्रयागराज में 13 जनवरी 2025 से महाकुंभ शुरू होने जा रहा है। आस्था के इस महा समागम में करोड़ों की संख्या में श्रद्धालु देश-विदेश से संगम के तट पर पवित्र स्नान के लिए आते हैं। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, महाकुंभ मेले में पवित्र स्नान करने से व्यक्ति के जन्मों-जन्मांतर के सभी पाप नष्ट हो जाते हैं और मोक्ष का द्वार खुल जाता है। 

 

उत्तर प्रदेश के प्रयागराज में 13 जनवरी से शुरू होने वाले महाकुंभ मेले की तैयारियां, लगभग पूरी हो चुकी हैं। वहीं कई साधु-संतों का संगम के तट पर आगमन भी शुरू हो चुका है। बता दें कि महाकुंभ पवित्र स्नान के साथ-साथ कुछ अनुष्ठान भी होते हैं, जिनके बिना पवित्र डुबकी को अधूरा माना जाता है। आइए जानते हैं महाकुंभ के कुछ महत्वपूर्ण अनुष्ठान।

महाकुंभ में होने वाले प्रमुख अनुष्ठान

संगम आरती: आरती हिंदू धर्म में आरती का विशेष महत्व है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, देवी-देवताओं की आरती के बिना पूजा अधूरी मानी जाती है। महाकुंभ में संगम आरती का विशेष महत्व है। इस दौरान 5 से 7 बटुक पुरोहित मंत्रोच्चारण के साथ आरती करते हैं। साथ ही पवित्र स्नान करने आए श्रद्धालु भी इस आरती में भाग लेते हैं। मान्यता है कि स्वयं आरती करने से या इसका हिस्सा बनने से देवताओं का आशीर्वाद प्राप्त होता है।

 

कल्पवास: महाकुंभ में कल्पवास का भी विशेष महत्व है। यह एक प्राचीन भारतीय धार्मिक परंपरा है, जो विशेष रूप से प्रयागराज में संगम के तट पर आयोजित कुंभ मेले के दौरान प्रचलित है। इसमें श्रद्धालु एक महीने तक संयमित जीवनशैली अपनाकर तप, ध्यान, साधना और धार्मिक क्रियाओं में लीन रहते हैं। यह परंपरा संतानंद ऋषि और अन्य प्राचीन धर्मग्रंथों से प्रेरित है, जिनमें आत्मशुद्धि और मोक्ष प्राप्ति के लिए कल्पवास को महत्वपूर्ण बताया गया है।ब्रह्म पुराण और पद्म पुराण के अनुसार, कल्पवास पौष एकादशी से माघी एकादशी तक रहता है। इसमें व्रत, पूजा, भजन आदि पर विशेष ध्यान दिया जाता है।

 

दीपदान: महाकुंभ में दीपदान एक अत्यंत महत्वपूर्ण और पवित्र अनुष्ठान है। यह न केवल धार्मिक आस्था का प्रतीक है, बल्कि आध्यात्मिक शुद्धि और मोक्ष प्राप्ति की भावना से भी जुड़ा हुआ है। मान्यता है कि गंगा, यमुना और सरस्वती के संगम में दीप प्रवाहित करने से व्यक्ति के पाप नष्ट होते हैं। इसके साथ यह अनुष्ठान आत्मा की शुद्धि और मोक्ष की ओर बढ़ने का प्रतीक है। दीपदान को पितरों को सम्मान देने और शांति प्रदान करने का माध्यम भी माना जाता है।

 

पवित्र स्नान: महाकुंभ में सबसे महत्वपूर्ण अनुष्ठान है पवित्र स्नान, जिसके लिए देश-विदेश से लाखों की संख्या में साधु-संत और श्रद्धालु संगम के तट पर आते हैं। स्कंद पुराण, गरुड़ पुराण और पद्म पुराण जैसे महापुराणों में पवित्र स्नान का महत्व बताया गया है। धार्मिक मान्यता है कि कुंभ में संगम में स्नान करने से जीवन में किए गए सभी पाप नष्ट हो जाते हैं। इसके साथ पवित्र स्नान करने से व्यक्ति शारीरिक, मानसिक और आध्यात्मिक रूप से शुद्ध हो जाता है।

 

प्रयागराज पंचकोसी परिक्रमा: महाकुंभ में प्रयागराज पंचकोसी परिक्रमा का भी अपना एक विशेष महत्व है। इस परिक्रमा में तीर्थराज प्रयागराज के पांच पवित्र स्थानों के दर्शन होते हैं, जिनमें- संगम, अक्षयवट, लेटे हुए हनुमान जी, भारद्वाज आश्रम, कौशाम्बी तीर्थ शामिल हैं। प्रयागराज पंचकोसी परिक्रमा लगभग 15 कोस (45 किलोमीटर) लंबी होती है। परिक्रमा के दौरान तीर्थयात्री पवित्र स्थानों की यात्रा करके अपने पापों का प्रायश्चित करते हैं और पूजा-पाठ करते हैं।

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