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144 वर्षों में आयोजित होता है महाकुंभ मेला, जानें कुंभ के तीन प्रकार

कुंभ मेले के तीन प्रकार होते हैं, जिनका अपना एक विशेष महत्व। जानते हैं कुंभ मेले के अलग - अलग प्रकार और इनमें अंतर क्या है।

AI Image of Kumbh Mela

महाकुंभ का प्रतीकत्मक चित्र। (Pic Credit- AI)

हिंदू कुंभ मेले का विशेष महत्व है। कुंभ मेले को सांस्कृतिक और आध्यात्मिक दृष्टि से बहुत ही महत्वपूर्ण माना जाता है। प्राचीन काल से ही कुंभ मेले का आयोजन बड़े स्तर पर हो रहा है। साथ ही कुंभ मेले का उल्लेख पुराणों और महाकाव्यों में विस्तार से मिलता है। जिसमें  समुद्र मंथन की कथा का भी विशेष संबंध है। साथ ही यह भी बताया गया है कि तीन प्रकार के कुंभ का आयोजन होता है। जिनका अपना एक विशेष महत्व है। आइए जानते हैं

क्यों होता है कुंभ मेले का आयोजन?

पौराणिक कथा के अनुसार, समुद्र मंथन के दौरान देवताओं और असुरों ने अमृत की प्राप्ति के लिए मिलकर समुद्र का मंथन किया। इस मंथन में 14 रत्न निकले जिसमें अमृत कलश शामिल था। इस अमृत के लिए देवता और असुरों के बीच भीषण संघर्ष हुआ और इस संघर्ष में अमृत कलश से अमृत के कुछ बूंदें पृथ्वी के चार स्थानों पर- हरिद्वार, प्रयागराज, उज्जैन और नासिक पर गिरीं। ये स्थान पवित्र माने गए और इन्हीं पर कुंभ मेले का आयोजन होता है।

वर्तमान समय में कब शुरू हुआ था कुंभ मेला?

कुंभ मेला कब से शुरू हुआ, इसका कोई स्पष्ट प्रमाण नहीं है, लेकिन विविध धर्म-ग्रंथों में इसका उल्लेख मिलता है। वर्तमान समय में आदिगुरु शंकराचार्य को कुंभ मेले के आयोजन का श्रेय दिया जाता है। उन्होंने 8वीं शताब्दी में कुंभ मेले को संगठित रूप में शुरू किया। हालांकि, इसके पहले भी यह मेला एक धार्मिक आयोजन के रूप में मनाया जाता था, जहां साधु-संत, तपस्वी और श्रद्धालु पवित्र नदियों में स्नान करने आते थे।

ज्योतिष और ग्रहों से कुंभ का संबंध

कुंभ मेला उस समय आयोजित होता है जब बृहस्पति ग्रह विभिन्न राशियों में प्रवेश करते हैं। खगोलीय स्थिति के अनुसार, हर 12 वर्ष में इन चार स्थानों पर कुंभ मेले का आयोजन होता है। कुंभ मेला तब होता है जब बृहस्पति ग्रह मेष, वृषभ, कर्क या सिंह राशि में होता है। इसके अलावा, सूर्य भी कुंभ राशि में प्रवेश करता है, जो इस मेले की तिथियों को निर्धारित करता है। जब बृहस्पति और सूर्य दोनों विशेष राशियों में होते हैं, तब यह खगोलीय स्थिति कुंभ मेला आयोजित करने के लिए अनुकूल मानी जाती है।

कुंभ, अर्ध और महाकुंभ में क्या है अंतर?

कुंभ मेला हर 12 साल में चार स्थानों- प्रयागराज, हरिद्वार, उज्जैन और नासिक में आयोजित होता है। इसका आयोजन तब होता है जब बृहस्पति और सूर्य विशेष राशियों में आते हैं। अर्ध कुंभ मेला कुंभ के बीच में, अर्थात हर 6 साल बाद प्रयागराज और हरिद्वार में आयोजित होता है। इसे कुंभ मेले का छोटा संस्करण माना जाता है, लेकिन श्रद्धालुओं के लिए इसका महत्व समान है। 

 

महाकुंभ मेला हर 144 साल में केवल प्रयागराज में होता है, जो बीते वर्षों में, 1901, 1941 व  1989 में हुए थे और आगामी महाकुंभ 2033 में होगा। इसे कुंभ का सबसे बड़ा और दिव्य आयोजन माना जाता है। महाकुंभ में करोड़ों श्रद्धालु संगम पर पवित्र स्नान के लिए एकत्र होते हैं।

कुंभ मेलों की कुछ प्रमुख तिथियां

प्रयागराज में वर्ष 2013 में मेला महाकुंभ मेला आयोजित हुआ था। अगला कुंभ मेला वर्ष 2025 आयोजित होगा। हरिद्वार में 2010 में कुंभ मेला हुआ था। फिर 2021 कुंभ मेला आयोजित हुआ, हालांकि कोविड-19 के कारण इसकी स्थिति प्रभावित रही। उज्जैन में 2016 में सिंहस्थ कुंभ मेला हुआ। 2028 में अगला कुंभ मेला आयोजित होगा। वर्ष 2015 में नासिक में कुंभ मेला आयोजन हुआ था और 2027 में अगला कुंभ मेला आयोजित होगा।

 

Disclaimer- यहां दी गई सभी जानकारियां सामाजिक और धार्मिक आस्थाओं पर आधारित हैं। Khabargaon इसकी पुष्टि नहीं करता।

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