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कुंभ में शाही नहीं अब होगा राजसी स्नान, जानिए क्या है इसका महत्व

महाकुंभ आयोजन से पहले साधु-संतों से फैसला लिया है कि शाही स्नान को राजसी स्नान के नाम से जाना जाएगा। आइए जानते हैं इस पवित्र स्नान का महत्व।

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कुंभ में शाही स्नान करते साधु-संत। (Pic Credit- PTI File Photo)

हिन्दू धर्म में कुंभ मेला विशेष महत्व रखता है। बता दें कि कुंभ मेले के 3 प्रकार होते हैं जिनका आयोजन 6, 12 और 144 वर्षों के अंतराल पर होता है। प्रयागराज में 13 जनवरी से महाकुंभ का आयोजन होने जा रहा है। बता दे कि महाकुंभ में लाखों-करोड़ों की संख्या में श्रद्धालु देश-विदेश से संगम में स्नान के लिए आते हैं। बता दें कि इस बार होने जा रहे महाकुंभ में साधु-संतों ने यह फैसला किया है कि इस बार कुंभ आयोजन में ‘शाही’ स्नान नहीं 'राजसी स्नान' के नाम से जाना जाएगा।

 

महाकुंभ में शाही स्नान जिसे बदलकर राजसी स्नान कर दिया गया है, एक प्रमुख आकर्षण का केंद्र है। इसमें विभिन्न अखाड़ों के साधु-संत संगम में सबसे पहला स्नान करते हैं। यह स्नान आस्था और आध्यात्मिक शुद्धि का प्रतीक है। शाही स्नान का मुख्य उद्देश्य आत्मा की शुद्धि, पापों से मुक्ति और मोक्ष की प्राप्ति माना जाता है।

राजसी स्नान में भाग के लेते विभिन्न अखाड़े

शाही स्नान में साधुओं का जुलूस, जिसमें नागा साधु, अग्नि साधु और अन्य प्रमुख संप्रदाय शामिल होते हैं। शाही स्नान की मान्यता है कि यह शरीर और मन को पवित्र बनाता है तथा जीवन को सकारात्मक ऊर्जा से भर देता है। विभिन्न अखाड़े अपनी परंपराओं और रीतियों के अनुसार भाग लेते हैं। राजसी स्नान में मुख्य रूप से 13 प्रमुख अखाड़े भाग लेते हैं, जो तीन परंपराओं में बंटे हुए हैं। इसमें शैव परंपरा, वैष्णव परंपरा और उदासीन परंपरा शामिल है।

 

बता दें कि शैव अखाड़े में जूना अखाड़ा, अग्नि अखाड़ा, आह्वान अखाड़ा, निरंजनी अखाड़ा और आनंद अखाड़ा शामिल हैं। ये भगवान शिव और आदिगुरु शंकराचार्य के अनुयायी हैं व उनकी उपासना करते हैं। इनमें सबसे प्राचीन और बड़ा जूना अखाड़ा है जो सबसे पहले राजसी स्नान करता है। जूना अखाड़ा में ही नागा साधु हैं, जो कुंभ में विशेष आकर्षण केंद्र। राजसी स्नान से पहले बड़ी संख्या में नागा साधुओं जुलूस निकलकर संगम की ओर बढ़ते हैं। इसके बाद वैष्णव अखाड़ा है, इनमें निर्मोही अखाड़ा, निर्वाणी अखाड़ा और दिगंबर अखाड़ा आते हैं। ये भगवान विष्णु और उनके अवतारों की भक्ति में लीन रहते हैं। और अंत में उदासीन व निर्मल अखाडा जो संत गुरु नानक और अन्य संत परंपराओं से प्रेरित हैं।

महाकुंभ का महत्व?

महाकुंभ मेले के महत्व को वेद और पुराणों में विस्तार से बताया गया है। पौराणिक कथा के अनुसार, जब देवता और असुरों ने अमृत प्राप्ति के लिए समुद्र मंथन किया था, तब 14 रत्नों में से एक अमृत से भरा कुंभ (कलश) भी निकला। इस अमृत प्राप्ति के लिए देवताओं और असुरों के बीच संघर्ष हुआ, जिसमें भगवान विष्णु ने मोहिनी रूप धारण कर अमृत की रक्षा की। इस संघर्ष में अमृत की कुछ बूंदें पृथ्वी पर चार स्थानों पर गिरी जिनमें- हरिद्वार, प्रयागराज, उज्जैन, और नासिक शामिल हैं। मान्यता है कि जहां भी कुंभ मेले का आयोजन होता है, वहां का जल अमृत में बदल जाता है और इसलिए इन स्थानों पर शाही स्नान का आयोजन होता है।

राजसी स्नान का महत्व

शाही स्नान (अब राजसी स्नान) की परंपरा का पालन प्राचीन काल से किया जा रहा है। धार्मिक दृष्टि से अत्यंत पवित्र माना गया है, क्योंकि ऐसा माना जाता है कि इस दिन पवित्र नदियों में स्नान करने से सभी पापों का नाश होता है और मोक्ष की प्राप्ति होती है। बता दें कि मध्यकाल में शाही स्नान का महत्व और भी बढ़ा, जब विभिन्न अखाड़ों का गठन हुआ। ये अखाड़े धर्म और आध्यात्मिकता के प्रचारक माने जाते हैं। प्रत्येक कुंभ मेले में अखाड़े अपने अनुयायियों के साथ पहले स्नान करते हैं।

महाकुंभ 2025 शाही स्नान तिथि

वर्ष 2025 में होने जा रहे प्रयागराज महाकुंभ में 6 शाही होंगे। पहला शाही स्नान 13 जनवरी 2025 को पौष पूर्णिमा के दिन किया जाएगा और इसी दिन से महाकुंभ का शुभारंभ हो रहा है। इसके साथ दूसरा शाही स्नान 14 जनवरी को मकर संक्रांति के दिन, तीसरा 29 जनवरी को मौनी अमावस्या पर, चौथा 2 फरवरी को बसंत पंचमी पर्व पर, पांचवां 12 फरवरी को माघ पूर्णिमा के शुभ अवसर पर और अंतिम व छठा शाही स्नान  26 फरवरी को महाशिवरात्रि महापर्व के दिन किया जाएगा।

 

Disclaimer- यहां दी गई सभी जानकारियां सामाजिक और धार्मिक आस्थाओं पर आधारित हैं। Khabargaon इसकी पुष्टि नहीं करता।

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