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दुनिया का एकमात्र मंदिर जहां पुत्र के साथ दर्शन देते हैं हनुमान जी

गुजरात के द्वारका में हनुमान जी का एकमात्र ऐसा मंदिर है, जहां हनुमान और उनके पुत्र मकरध्वज के दर्शन होते हैं।

Makardhwaj Hanuman Mandir Dwarka

हनुमान जी और उनके पुत्र की प्रतिमा। (Pic Credit- Wikimedia Commons)

भारत को मठ और मंदिरों का देश कहा जाता है। ऐसा इसलिए क्योंकि देश के विभिन्न हिस्सों में देवी-देवताओं के प्राचीन मंदिर स्थित हैं, जिनसे जुड़ी कई मान्यताएं प्रचलित हैं। इन्हीं में से एक देवता हैं भगवान श्री राम के परम भक्त हनुमान जी। बता दें कि शास्त्रों में हनुमान जी को चिरंजीवी कहा गया है और लगभग सभी मंदिरों में, विशेष रूप से भगवान राम को समर्पित देव स्थलों में हनुमान जी की उपासना की जाती है।

 

शास्त्रों में इस बात का भी वर्णन मिलता है कि हनुमान आजीवन ब्रह्मचारी रहे, लेकिन उनके पुत्र के होने का भी वर्णन मिलता है। इससे जुड़ी एक रोचक कथा भी ग्रंथों में वर्णित है। क्या आप जानते हैं कि द्वारका में एक मात्र ऐसा मंदिर है, जहां वह अपने पुत्र के साथ दर्शन होते हैं। आइए इस मंदिर के विषय में विस्तार से जानते हैं, और हनुमान जी के पुत्र की कथा को पढ़ते हैं।

हनुमान जी और उनके पुत्र का मंदिर

शास्त्रों में यह बताया गया है कि हनुमान जी के पुत्र का नाम मकरध्वज है। हनुमान जी और उनके पुत्र को समर्पित मंदिर का नाम मकरध्वज मंदिर है, जो गुजरात के द्वारका में  स्थित है। इस मंदिर में हनुमान जी और उनके पुत्र की प्रतिमा स्थापित है। मान्यता है कि हनुमान जी पहली बार अपने पुत्र से इसी स्थान पर मिले थे, जिस वजह इस देवस्थल का महत्व और अधिक बढ़ जाता है।

 क्या है हनुमान जी और मकरध्वज की पौराणिक कथा

पौराणिक कथा के अनुसार, एक बार हनुमान जी समुद्र में स्नान कर रहे थे। उसी समय उनके पसीने की बूंद समुद्र में गिरी और उसे एक मादा मगरमच्छ ने पी लिया। इससे मादा मगरमच्छ के गर्भ से मकरध्वज ने जन्म लिया। कहा जाता है कि जब भगवान राम ने अश्वमेध यज्ञ किया, तो उनका अश्व पाताल लोक में चला गया। पाताल लोक का राजा पाताल रावण था, जिसने अश्व को बंदी बना लिया। हनुमान जी भगवान राम का अश्व वापस लाने के लिए पाताल लोक पहुंचे।

 

पाताल लोक के द्वार पर मकरध्वज द्वारपाल के रूप में खड़े थे। जब हनुमान जी ने अंदर जाने की अनुमति मांगी, तो मकरध्वज ने उन्हें रोक दिया। मकरध्वज ने कहा कि वह पाताल रावण के प्रति अपनी निष्ठा निभाएंगे और उन्हें अंदर जाने नहीं देंगे। हनुमान जी को मकरध्वज की शक्ति और समर्पण पर गर्व हुआ। इसी दौरान मकरध्वज ने स्वयं को हनुमान जी का पुत्र बताया, जिसे सुनकर हनुमान जी आश्चर्यचकित हो गए। इसके बाद मकरध्वज ने अपने जन्म की कहानी सुनाई।

 

मकरध्वज और हनुमान जी के बीच भीषण युद्ध हुआ। मकरध्वज ने पूरी शक्ति से युद्ध किया, लेकिन अंततः हनुमान जी ने उन्हें पराजित कर दिया। युद्ध के बाद हनुमान जी ने मकरध्वज को गले लगाया और उनका कर्तव्य निभाने के लिए प्रशंसा की। मानयता है कि हनुमान जी के इस मंदिर में पूजा-पाठ करने से व्यक्ति की सभी मनोकामना पूर्ण हो जाती है और व सुख-समृद्धि की प्राप्ति होती है।

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