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सौभाग्य और सुख का प्रतीक है मंगला गौरी व्रत, जानिए सभी जरूरी तिथि

हिंदू धर्म में मंगला गौरी व्रत को महिलाओं के सौभाग्य और सुख का प्रतीक माना जाता है। आइए जानते हैं इस व्रत से जुड़ी कुछ खास बातें।

Image of Bhagwan Shiv and Parvati

हिन्दू धर्म में मंगला गौरी व्रत का विशेष स्थान है।(Photo Credit: AI Image)

मंगला गौरी व्रत हिन्दू धर्म में विशेष रूप से विवाहित स्त्रियों द्वारा किया जाने वाला एक शुभ और पवित्र व्रत है। यह व्रत श्रावण मास की हर मंगलवार को किया जाता है। विशेषकर नवविवाहित महिलाएं इस व्रत को पहले पांच सालों तक करती हैं, जिससे उन्हें सौभाग्यवती जीवन और पति की दीर्घायु प्राप्त हो।

 

मंगला गौरी व्रत मां पार्वती को समर्पित होता है, जिन्हें सौभाग्य, समृद्धि और गृहस्थ सुख की देवी माना जाता है। वैदिक पंचांग के अनुसार, 11 जुलाई से श्रावण महीना शुरू हो रहा है। और मंगला गौरी व्रत 15 जुलाई, 22 जुलाई, 29 जुलाई और 5 अगस्त के दिन रखा जाएगा।

 

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मंगला गौरी व्रत का महत्व

मां मंगला गौरी यानी माता पार्वती को शक्ति, धैर्य और समर्पण की प्रतीक माना जाता है। ऐसी मान्यता है कि जो महिलाएं श्रद्धा और नियमपूर्वक इस व्रत को करती हैं, उन्हें वैवाहिक जीवन में सुख, प्रेम और संतुलन मिलता है। यह व्रत पति की दीर्घायु, परिवार की सुख-शांति और संतान की भलाई के लिए भी किया जाता है।

मंगला गौरी व्रत की पौराणिक कथा

प्राचीन समय की कथा के अनुसार, एक बार एक ब्राह्मण परिवार की पुत्री विधवा हो गई। उसका विवाह कम उम्र में हुआ था और विवाह के तुरंत बाद ही उसका पति मर गया। दुखी होकर वह माता गौरी की पूजा करने लगी और हर मंगलवार को मंगला गौरी व्रत रखकर उनसे सौभाग्य की प्रार्थना करती रही।

 

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मां पार्वती उसकी भक्ति से प्रसन्न हुईं और वरदान दिया कि अगले जन्म में उसे एक उत्तम पति मिलेगा। अगले जन्म में वह राजकुमारी बनी और उसका विवाह एक महान राजा से हुआ, जो दीर्घायु और धर्मात्मा था। तब से यह व्रत सौभाग्य प्राप्ति का प्रतीक बन गया।

 

कहा जाता है कि यह व्रत स्त्रियों को आत्मबल और धैर्य प्रदान करता है। मान्यता यह भी है कि परिवार में सुख-शांति बनाए रखने के लिए स्त्री की भूमिका को इसमें विशेष महत्व दिया गया है। यह न केवल धार्मिक दृष्टि से बल्कि भावनात्मक जुड़ाव का भी अवसर होता है। महिलाएं इस दिन एकसाथ मिलकर पूजा करती हैं और भजन गाती हैं।

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