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कृषि और समृद्धि का पर्व है मिथुन संक्रांति, जानें इस पर्व की मान्यताएं

मिथुन संक्रांति पर्व को बहुत ही महत्वपूर्ण माना जाता है। आइए जानते हैं, इस पर्व से जुड़ी खास मान्यताएं।

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सांकेतिक चित्र(Photo Credit: Creative Image)

मिथुन संक्रांति, जिसे 'राजा परब' या 'अंबाबूची मेला' के नाम से भी जाना जाता है, भारतीय संस्कृति में विशेष रूप से ओडिशा और आसपास के क्षेत्रों में मनाया जाने वाला एक महत्वपूर्ण त्योहार है। यह दिन सूर्य के मिथुन राशि में प्रवेश का प्रतीक है, जो वर्षा ऋतु के आगमन और धरती के उपजाऊ होने का सूचक माना जाता है। यह पर्व मुख्य रूप से धरती माता और मानसून का स्वागत करने के लिए समर्पित है, क्योंकि इस समय से ही कृषि कार्य शुरू होते हैं।

मिथुन संक्रांति 2025 तिथि

वैदिक पंचांग के अनुसार, मिथुन संक्रांति पर्व 15 जून 2025, रविवार के दिन मनाया जाएगा। इस दिन पुण्य काल सुबह 06:53 बजे से दोपहर 02:19 बजे तक रहेगा और महापुण्य काल सुबह 09:12 बजे तक रहेगा।

 

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क्या है मिथुन संक्रांति का महत्व

मिथुन संक्रांति का महत्व प्रकृति के साथ मनुष्य के गहरे संबंध को दर्शाता है। यह दिन धरती माता को उनके पोषण और जीवनदायिनी शक्ति के लिए धन्यवाद देने का अवसर है। माना जाता है कि इस दौरान धरती माता मासिक धर्म से गुजरती हैं, जिससे वे कृषि के लिए और अधिक उपजाऊ बनती हैं। इसलिए, इस दिन धरती को आराम दिया जाता है और कोई भी कृषि कार्य नहीं किया जाता। यह त्योहार महिलाओं के सम्मान से भी जुड़ा है, क्योंकि उन्हें धरती माता का ही रूप माना जाता है। परिवार की समृद्धि और अच्छी फसल के लिए इस दिन विशेष पूजा-अर्चना की जाती है। यह समय नई शुरुआत, आशा और खुशियों का प्रतीक है।

पूजा के नियम और पालन

  • धरती को आराम: इस दिन धरती पर हल चलाना या किसी भी प्रकार का कृषि कार्य करना वर्जित होता है। ऐसा करके धरती माता को उनके मासिक धर्म के दौरान आराम दिया जाता है।
  • स्नान और स्वच्छता: प्रातः काल उठकर पवित्र स्नान करना और स्वच्छ वस्त्र धारण करना शुभ माना जाता है। इससे मन और शरीर दोनों शुद्ध होते हैं।
  • पूजन सामग्री: भगवान सूर्य देव, धरती माता और अन्य देवी-देवताओं की पूजा की जाती है। इसमें ताजे फूल, फल, धूप, दीप और विशेष रूप से तैयार किए गए पकवान (जैसे पीठा और मीठे व्यंजन) चढ़ाए जाते हैं।
  • पारंपरिक भोजन: इस दिन विशेष रूप से पारंपरिक मिठाइयां और पकवान बनाए जाते हैं, जैसे विभिन्न प्रकार के पीठे (चावल के आटे से बने व्यंजन)। परिवार के सभी सदस्य साथ बैठकर इनका आनंद लेते हैं।
  • महिलाओं का सम्मान: इस दिन विशेष रूप से घर की महिलाओं का सम्मान किया जाता है। उन्हें नए वस्त्र, उपहार दिए जाते हैं और उन्हें आराम करने का अवसर मिलता है। वे झूले का आनंद लेती हैं और पारंपरिक खेल खेलती हैं।
  • सादगी और संयम: पूरे दिन सादगी और संयम का पालन करना चाहिए। मांसाहारी भोजन से परहेज किया जाता है और मन को शांत रखने का प्रयास किया जाता है।
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