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किसे कहा जाता है पंचक और क्यों माना जाता है इसे खतरनाक?

ज्योतिष शास्त्र में पांच के दिन के अशुभ मुहूर्त में पंचक का नाम से अधिक लिया जाता है और इसे सबसे खतरनाक भी माना जाता है। जानते हैं कारण-

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पंचक का पृथ्वी पर पड़ता है प्रभाव। (Pic Credit- Canva)

ज्योतिष शास्त्र में शुभ और अशुभ समय के विषय में विस्तार से बताया गया है। मान्यता है कि शुभ समय में भी कोई भी कार्य करने से व्यक्ति को देवी-देवताओं का आशीर्वाद मिलता है। वहीं अशुभ समय में नुकसान का सामना करना पड़ता है। बता दें कि महीने में 5 दिन ऐसे आते हैं, जिन्हें अशुभ मुहूर्त की श्रेणी में रखा गया है, जिसे ‘पंचक’ के नाम से जाना जाता है।

 

ज्योतिष शास्त्र के अनुसार, पंचक का निर्माण ग्रह और नक्षत्रों की स्थिति पर होता है। जब चंद्रमा कुंभ और मीन राशि में पांच नक्षत्र- धनिष्ठा, शतभिषा, पूर्वा भाद्रपद, उत्तरा भाद्रपद, और रेवती से होकर गुजरता है, तब इस अशुभ समय का निर्माण होता है। पंचक का अवधि लगभग 5 दिन की होती है और इसे शुभ और अशुभ कार्यों के लिए विशेष रूप से देखा जाता है।

पंचक का ज्योतिष पक्ष

ज्योतिष में पंचक को मिश्रित प्रभाव वाला समय माना जाता है। इस दौरान कुछ विशेष कार्यों को करने से बचने की सलाह दी जाती है, जिसमें घरेलू निर्माण या लकड़ी का काम करना शामिल है, इससे घर में समस्याएं उत्पन्न होती हैं। इसके साथ ज्योतिष विद्वान सलाह देते हैं कि पंचक की अवधि में विशेषरूप से दक्षिण दिशा में यात्रा नहीं करनी चाहिए, इसे अशुभ माना जाता है।

 

ज्योतिष विद्वान यह भी बताते हैं कि यदि पंचक के दौरान किसी का निधन होता है, तो विशेष अनुष्ठान करने की सलाह दी जाती है ताकि परिवार पर कोई नकारात्मक प्रभाव न पड़े।  हालांकि, पंचक के दौरान नियमित और दैनिक कार्य, पूजा-पाठ, दान-पुण्य, और स्नान-ध्यान जैसे कर्म किए जा सकते हैं। बता दें कि पंचक को पांच प्रकार होते हैं, जो चंद्रमा के गोचर और नक्षत्रों की स्थिति के आधार पर अलग-अलग प्रभाव डालते हैं। ये हैं:

  • राज पंचक: इसमें धनिष्ठा नक्षत्र के अंतिम चरण से चंद्रमा का गोचर होता है। इसे राजसी कार्यों और महत्वाकांक्षी योजनाओं के लिए अच्छा माना जाता है।
  • रोग पंचक: चंद्रमा के शतभिषा नक्षत्र में आने इस पंचक का निर्माण होता है। इस समय स्वास्थ्य समस्याएं बढ़ सकती हैं, और शारीरिक व मानसिक कष्ट हो सकता है।
  • चोर पंचक: जब चंद्र पूर्वा भाद्रपद नक्षत्र में स्थित रहता है तो इस समय यह पंचक बनता है। इसे चोरी, नुकसान या धोखाधड़ी का संकेत देने वाला माना जाता है।
  • अग्नि पंचक: उत्तरा भाद्रपद नक्षत्र में चंद्रमा के आने से यह पंचक बनता है। इसमें आग से दुर्घटना या हानि की संभावना होती है।
  • मृत्युपंचक: चंद्रमा के रेवती नक्षत्र में इस पंचक का निर्माण होता है। इसे सबसे अशुभ माना जाता है, क्योंकि यह मृत्यु या गंभीर कष्ट का प्रतीक है।

पंचक का आध्यात्मिक पक्ष

आध्यात्मिक दृष्टि से पंचक बहुत ही महत्वपूर्ण रहता है। बता दें कि पंचक के पांच दिनों को आत्मचिंतन, ध्यान, और साधना के लिए उपयुक्त माना जाता है। चंद्रमा का कुंभ और मीन राशि में गोचर मनोभाव और आध्यात्मिक चेतना को सक्रिय करता है। यह समय अपने भीतर की जीवन में आ रही समस्याओं को समझने, मन को स्थिर करने, और भगवान की आराधना में लगाने का है। इसलिए पंचक को सिर्फ अशुभ नहीं कहा जा सकता है। इसे सुधार और अध्यात्म के मन लगाने का एक अवसर भी समझा जा सकता है। हालांकि, इस अवधि में उचित नियमों का पालन जरूर करना चाहिए।

 

Disclaimer- यहां दी गई सभी जानकारियां सामाजिक और धार्मिक आस्थाओं पर आधारित हैं। Khabargaon इसकी पुष्टि नहीं करता।

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