13 जनवरी से शुरू होने जा रहे महाकुंभ से पहले आज यानी 13 दिसंबर, शुक्रवार के दिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी प्रयागराज दौरे पर हैं। इस दौरान पीएम ने त्रिवेणी तट पर गंगा पूजन करने के साथ ही संगम किनारे स्थित अक्षयवट, सरस्वती कूप और लेटे हनुमानजी के मंदिर में दर्शन और पूजन किया। इसके साथ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने हनुमान मंदिर कॉरिडोर, श्रृंगवेरपुर कॉरिडोर, भरद्वाज आश्रम कॉरिडोर सहित 55 करोड़ की परियोजनाओं का लोकार्पण किया। बता दें कि इन सभी स्थानों का अपना एक पौराणिक और ऐतिहासिक महत्व है। आइए जानते हैं-
प्रयागराज के तीर्थस्थलों का क्या है महत्व
अक्षयवट, भारद्वाज आश्रम, सरस्वती कूप और लेटे हनुमान मंदिर प्रयागराज के धार्मिक और पौराणिक महत्व से जुड़े महत्वपूर्ण स्थल हैं।
अक्षयवट का महत्व: धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, जब सृष्टि का विनाश हुआ था, तब भगवान विष्णु बाल स्वरूप में अक्षयवट वृक्ष के एक पत्ते पर विराजमान थे। यह वृक्ष न केवल हिंदू धर्म में, बल्कि जैन और बौद्ध धर्म में भी पवित्र माना जाता है। मान्यता यह भी है कि रामायण काल में भगवान राम ने वनवास के दौरान इस वृक्ष के नीचे विश्राम किया था। माता सीता ने इस वटवृक्ष को कभी भी क्षति न पहुंचने का वरदान दिया था। अक्षयवट को प्रयागराज के पांच प्रमुख तीर्थस्थलों में गिना जाता है और इसका तीर्थराज प्रयाग के धार्मिक महत्व में अहम योगदान है।
भारद्वाज आश्रम का पौराणिक महत्व: भारद्वाज ऋषि का आश्रम संगम से थोड़ी दूरी पर स्थित है। इसे सृष्टि का पहला गुरुकुल भी माना जाता है। रामायण में वर्णित है कि भगवान राम वनवास जाते समय और लंका विजय के बाद अयोध्या लौटते समय इस आश्रम में रुके थे और भारद्वाज ऋषि से आशीर्वाद लिया था। भारद्वाज ऋषि ने यहां विमान शास्त्र की रचना की थी और पुष्पक विमान का वर्णन इसी से जुड़ा है। वर्तमान में, भारद्वाज आश्रम को आधुनिक स्वरूप में विकसित करने के लिए करोड़ों की लागत से कॉरिडोर का निर्माण किया गया है, जिसका लोकार्पण प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा किया गया है।
सरस्वती कूप का पौराणिक महत्व: प्रयागराज को संगम क्षेत्र कहा जाता है, ऐसा इसलिए क्योंकि यहीं पर तीन नदियों- गंगा, यमुना और सरस्वती नदियों का संगम होता है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, कलियुग के प्रारंभ में सरस्वती नदी विलुप्त हो गई लेकिन उसका जल अभी भी गुप्त रूप से संगम में उपस्थित है। खास बात यह है कि यहां पर स्थित किले के अंदर सरस्वती कूप स्थापित है, जिसे सरस्वती नदी का स्रोत माना जाता है। इस कूप के जल में विशेष गुण माने गए हैं, और इसे संरक्षित रखने के लिए कांच से ढका गया है। श्रद्धालु कूप के दर्शन के लिए यहां आते हैं और इसे अत्यंत पवित्र मानते हैं।
लेटे हनुमान मंदिर का महत्व: प्रयागराज दर्शन में संगम के निकट स्थित हनुमान जी की लेटी हुई प्रतिमा का दर्शन का अपना एक विशेष महत्व है। इस स्थान को ‘बड़े हनुमान मंदिर’ या ‘लेटे हनुमान मंदिर’ के नाम से भी जाना जाता है। श्रद्धालुओं का मानना है कि यहां सच्चे मन से की गई हर प्रार्थना पूरी होती है। इस पवित्र स्थान से जुड़ी कई कथाएं और मान्यताएं प्रचलित हैं। कुंभ और माघ मेले के दौरान भक्त लाखों की संख्या लेटे हनुमान जी के दर्शन करने के लिए आते हैं। इस मंदिर की विशेषता इसलिए भी अधिक है क्योंकि संगम स्नान के बाद इस मंदिर में दर्शन को यात्रा का महत्वपूर्ण हिस्सा माना जाता है।
महाकुंभ में क्या है गंगा पूजन का महत्व?
महाकुंभ में गंगा पूजन का विशेष आध्यात्मिक महत्व है। सनातन धर्म में गंगा नदी को मोक्षदायिनी व पवित्र नदी माना जाता है और देवी के रूप में पूजा जाता है। हर 12 वर्ष में आयोजित होने वाले महाकुंभ को सबसे बड़ा पर्व है। इसलिए मान्यता है कि इस अवधि में दौरान गंगा पूजन करने से पुण्य की प्राप्ति होती है और पापों का नाश होता है। वहीं महाकुंभ में मुख्य आकर्षण का केंद्र संगम नदी के तट पर स्नान करना होता है। यह वही स्थान है जहां गंगा, यमुना और सरस्वती का संगम होता है, इसलिए प्रयागराज को तीर्थराज भी कहा जाता है।
Disclaimer- यहां दी गई सभी जानकारियां सामाजिक और धार्मिक आस्थाओं पर आधारित हैं। Khabargaon इसकी पुष्टि नहीं करता।