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इंद्र देव की पूजा से होती पोंगल पर्व की शुरुआत, जानिए महत्व

दक्षिण भारत में पोंगल त्योहार का विशेष महत्व है। आइए जानते हैं इस तीन दिवसीय त्योहार का महत्व।

AI Image of Pongal Festival

सांकेतिक चित्र। (Photo Credit: Freepik)

पोंगल तमिलनाडु का प्रमुख उत्सव है, जो मुख्य रूप से प्रकृति, किसान और कृषि को समर्पित है। यह त्योहार मकर संक्रांति के दिन से शुरू होता है और तीन दिनों तक चलता है। बता दें कि 14 जनवरी से तीन दिवसीय पोंगल पर्व शुरू हो जाएगा। बता दें कि हर वर्ष जनवरी महीने के मध्य में यह पर्व फसल कटाई के समय मनाया जाता है। 

पोंगल शब्द तमिल भाषा से लिया गया है, जिसका अर्थ है ‘उबालना’ या ‘उफान’। यह त्योहार कृषि की समृद्धि, धन-धान्य और प्रकृति के प्रति आभार प्रकट करने का प्रतीक है। मान्यता है कि पोंगल के दौरान इंद्र देव, सूर्य देव और प्रकृति की उपासना करने से विशेष लाभ प्राप्त होता है और सुख-समृद्धि का आशीर्वाद मिलता है।

पोंगल का महत्व

पोंगल का मुख्य उद्देश्य प्रकृति और कृषि में सहायक तत्वों—जैसे सूर्य देव, भूमि, जल, और पशुधन—के प्रति आभार व्यक्त करना है। यह उत्सव ग्रामीण जीवन, सामुदायिक भावना और प्रकृति के साथ मानव के संबंध का उत्सव है। पोंगल किसानों के लिए नई फसल और संपन्नता का प्रतीक है। इसे तमिल संस्कृति का अभिन्न हिस्सा माना जाता है।

तीन दिन का महत्व

पोंगल तीन दिनों तक मनाया जाता है, और हर दिन का अपना विशेष महत्व है:

पहला दिन: भोगी पोंगल

भोगी पोंगल पोंगल उत्सव का पहला दिन है। इस दिन इंद्र देव कीउपासना की जाती है और किसान पुराने व अनुपयोगी वस्त्रों और सामान को जलाकर नए जीवन की शुरुआत करते हैं। इसे नकारात्मकता को त्यागने और सकारात्मक ऊर्जा अपनाने का प्रतीक माना जाता है। घरों को साफ किया जाता है और पारंपरिक 'कोलम' (रंगोली) बनाई जाती है।

दूसरा दिन: सूर्य पोंगल

सूर्य पोंगल मुख्य त्योहार का दिन है। इस दिन सूर्य देव की पूजा की जाती है, जो कृषि और जीवन के प्रमुख स्रोत हैं। नई फसल से तैयार चावल, दूध और गुड़ से पोंगल (एक विशेष पकवान) बनाया जाता है। इसे मिट्टी के बर्तन में पकाकर सूर्य देव को अर्पित किया जाता है। किसान अपनी समृद्ध फसल के लिए धन्यवाद देते हैं और अच्छी भविष्य की कामना करते हैं।

तीसरा दिन: मट्टू पोंगल

मट्टू पोंगल पशुधन को समर्पित है, विशेष रूप से गायों और बैलों को, जो खेती में अहम भूमिका निभाते हैं। इस दिन पशुओं को नहला-धुलाकर सजाया जाता है और उन्हें मालाएं पहनाई जाती हैं। उनके प्रति कृतज्ञता व्यक्त करते हुए उन्हें खास भोज्य पदार्थ खिलाए जाते हैं।

 

Disclaimer- यहां दी गई सभी जानकारी सामाजिक और धार्मिक आस्थाओं पर आधारित हैं। Khabargaon इसकी पुष्टि नहीं करता। 

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