ज्योतिष शास्त्र में सभी ग्रहों के कथा को विस्तार से बताया गया है। ये सभी ग्रह हैं- सूर्य, चंद्र, पृथ्वी, बुध, गुरु, शुक्र, शनि, राहु और केतु। इन ग्रहों से जुड़ी कथाओं का भी वर्णन किया गया है। यह सभी कथा पौराणिक और आध्यतमिक दृष्टि से बहुत ही महत्वपूर्ण माने जाते हैं। इन नवग्रहों में राहु और केतु को पाप ग्रह की श्रेणी में रखा गया। साथ ही यह भी बताया गया है कि ये ग्रह हर समय उल्टी चाल चलते हैं। राहु व केतु के इस चाल के पीछे एक पौराणिक कथा मिलती है। साथ ही ज्योतिष शास्त्र में यह भी बताया गया है कि राहु और केतु दो प्रमुख ग्रह सूर्य व चंद्र के शत्रु हैं। आइए जानते हैं क्या है कारण?
राहु और केतु की कथा
राहु और केतु की कथा का वर्णन स्कंद पुराण के अवंती खंड में किया गया है। इसमें बताया गया है कि उज्जैन में इन दोनों का जन्म हुआ था और यहीं मौजूद महाकाल वन में समुद्र मंथन से निकले अमृत का वितरण हुआ था। कथा के अनुसार, मोहिनी रूप में भगवान विष्णु ने सभी देवताओं को अमृत बांटा। जब अमृत का वितरण हो रहा था तो देवताओं के बीच स्वर्भानु नामक राक्षस भी रूप बदलकर आ गया। उसे ज्ञान था कि देवताओं के द्वारा राक्षसों को छला गया है।
स्वर्भानु के छल का ज्ञान ग्रहों के राजा सूर्य व चंद्र देव को हुआ और उन्होंने भगवान विष्णु को सूचित किया। तब तक स्वर्भानु ने विष ग्रहण कर लिया था। अमृत कंठ के नीचे जाने ही वाला था कि तभी श्री हरि ने अपने सुदर्शन चक्र से दैत्य का सिर धड़ से अलग कर दिया। अमृत के प्रभाव से राक्षस का सिर जीवित था। तब भगवान ब्रह्मा ने सिर को सर्प के शरीर से और धड़ को सांप के सिर से जोड़ दिया। बता दें कि सिर के भाग को राहु कहा जाता है और धड़ के भाग को केतु के नाम से जाना जाता है। तभी से राहु और केतु की सूर्य व चंद्र देव से शत्रुता बढ़ गई, जिसका प्रभाव आज भी कुंडली में दिखाई देता है। राहु और केतु ने देवताओं के साथ छल किया और अमृत प्राप्त करने का प्रयास किया, जो उनके ‘पाप’ के रूप में देखा गया। तभी से उन्हें पाप ग्रह के नाम से जाना जाने लगा।
Disclaimer- यहां दी गई सभी जानकारियां सामाजिक और धार्मिक आस्थाओं पर आधारित हैं। Khabargaon इसकी पुष्टि नहीं करता।