हिंदू धर्म में रक्षा सूत्र को बेहद अहम माना जाता है। यह सिर्फ एक साधारण धागा नहीं है, बल्कि इसमें श्रद्धा, आस्था और सुरक्षा की भावना छुपी होती है। जब किसी व्यक्ति की कलाई पर रक्षा सूत्र बांधा जाता है, तो उसे बुरी शक्तियों, नकारात्मकता और संकटों से बचाने की कामना की जाती है। यह परंपरा सदियों पुरानी है और इसे विभिन्न धार्मिक अनुष्ठानों, पूजा-पाठ, यज्ञ और पर्व-त्योहारों पर बांधा जाता है।
रक्षा सूत्र एक छोटा सा धागा होते हुए भी भारतीय संस्कृति में बहुत बड़ा स्थान रखता है। यह केवल परंपरा या रीति-रिवाज नहीं है। मान्यताओं के अनुसार, रक्षा सूत्र से जुड़ी पौराणिक कथा महाभारत काल में मिलती है। धार्मिक मान्यता के अनुसार, रक्षा सूत्र बांधने से व्यक्ति को मानसिक बल, आत्मिक शांति और सुरक्षा की भावना मिलती है।
रक्षा सूत्र की उत्पत्ति और पौराणिक कथा
रक्षा सूत्र की परंपरा की जड़ें प्राचीन काल की पौराणिक कथाओं में मिलती हैं। रक्षा सूत्र की एक प्रसिद्ध कथा महाभारत काल से जुड़ी है। मान्यता है कि जब भगवान कृष्ण ने द्रौपदी को चीरहरण से बचाया, तो उसकी शुरुआत एक रक्षा सूत्र से हुई थी। कथा के अनुसार, एक दिन श्रीकृष्ण के हाथ में चोट लग गई थी। द्रौपदी ने तुरंत अपनी साड़ी का एक टुकड़ा फाड़कर उनके हाथ पर बांध दिया। श्रीकृष्ण ने उस समय उन्हें रक्षा का वचन दिया और बाद में चीरहरण के समय उस वचन को निभाया।
एक और कथा वामन अवतार से संबंधित है। जब भगवान विष्णु ने वामन रूप में राजा बलि से तीन पग भूमि मांगी और फिर उसे पाताल भेज दिया। बलि ने भगवान विष्णु से अनुरोध किया कि वह उसके द्वारपाल बनें। वामन भगवान ने उसे स्वीकार किया और उसकी रक्षा के लिए यज्ञ के समय रक्षा सूत्र बांधा गया। तभी से यह परंपरा चली आ रही है।
रक्षा सूत्र का आध्यात्मिक महत्व
रक्षा सूत्र में केवल धार्मिक भावना ही नहीं, बल्कि आध्यात्मिक शक्ति भी मानी जाती है। मान्यता है कि जब कोई व्यक्ति किसी मंदिर, यज्ञ या पूजा के दौरान इसे अपनी कलाई पर बांधता है, तो वह ईश्वर की कृपा और आशीर्वाद को अपने साथ महसूस करता है। यह धागा नकारात्मक ऊर्जा से रक्षा करता है और सकारात्मक ऊर्जा को आकर्षित करता है।
मान्यताओं के अनुसार, शास्त्रों में यह विदित है कि पूजा-पाठ के दौरान हाथ में कलवा या रक्षासूत्र बांधने से 'त्रिदेव' और तीनों महादेवियों का आशीर्वाद प्राप्त होता है। त्रिदेव हैं- ब्रह्मा विष्णु और महेश, वहीं महादेवियां हैं- महालक्ष्मी, माता सरस्वती और मां काली। मान्यता है कि पूजा के दौरान कलावा बांधने से मनुष्य को बल, बुद्धि, विद्या और धन की प्राप्ति होती है।
पुरुषों की दाईं कलाई और महिलाओं की बाईं कलाई पर रक्षा सूत्र बांधने की परंपरा है। यह मान्यता है कि यह शरीर की उन नाड़ियों को प्रभावित करता है, जो मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य को संतुलित करती हैं।
रक्षा सूत्र बांधने की विधि
रक्षा सूत्र को किसी शुभ मुहूर्त या धार्मिक अनुष्ठान के समय बांधा जाता है। इसे बांधते समय शुद्ध भावनाओं, स्वच्छता और श्रद्धा का होना जरूरी है। पूजा करने वाले पंडित या घर का कोई बड़ा व्यक्ति इसे बांधता है। इसे बांधते समय रक्षा मंत्र बोला जाता है और व्यक्ति की लंबी उम्र, सफलता और सुरक्षा की कामना की जाती है।
रक्षा सूत्र बांधने का मंत्र
- मंत्र:
'ॐ येन बद्धो बलि राजा दानवेन्द्रो महाबल:।
तेन त्वाम् अनुबध्नामि रक्षे मा चल मा चल॥'
- अर्थ:
'जिस मंत्र से बलि जैसे महान दानवों को भी बांधा गया, उसी मंत्र से मैं तुम्हें बांधता हूं। हे रक्षा सूत्र, तुम स्थिर रहो, कभी न हटो।'
रक्षाबंधन पर रक्षा सूत्र का विशेष महत्व
रक्षा सूत्र की सबसे प्रसिद्ध परंपरा रक्षाबंधन पर्व पर देखने को मिलती है। इस दिन बहनें अपने भाइयों की कलाई पर राखी (रक्षा सूत्र) बांधती हैं और उनके सुख-संपत्ति की कामना करती हैं। बदले में भाई बहनों की रक्षा का वचन देते हैं। यह पर्व सिर्फ भाई-बहन के रिश्ते को नहीं दर्शाता, बल्कि समाज में स्नेह, विश्वास और सुरक्षा की भावना को भी मजबूत करता है।