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रामनगरिया मेला: संगम वाले कुंभ से कितना है अंतर? धार्मिक महत्व जानिए

फर्रुखाबाद मेले का अपना एक अपना एक विशेष महत्व है। आइए जानते हैं, कब से शुरू होता है ये मेला और इसे मिनी कुंभ क्यों कहा जाता है।

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सांकेतिक चित्र।(Photo Credit: Social Media)

उत्तर प्रदेश के प्रयागराज में 12 वर्षों के बाद महाकुंभ मेला आयोजित हो रहा है। महाकुंभ के दौरान करोड़ों की संख्या में श्रद्धालु पवित्र संगम में स्नान के लिए आते हैं। इसी तरह एक और मेला राज्य के फर्रुखाबाद जिले में गंगा तट पर हर साल आयोजित होता है, जिसे रामनगरिया मेला के नाम से जाना जाता है। 

 

रामनगरिया मेल में कुंभ की तरह ही पवित्र स्नान का विशेष महत्व है, जिस वजह से इसे मिनी कुंभ या छोटा कुंभ भी करते हैं। यह मेला एक ऐतिहासिक और पौराणिक दोनों महत्व रखने वाला धार्मिक आयोजन है। इस मेले में लाखों श्रद्धालु दूर-दूर से आते हैं, जिससे इसका धार्मिक और सामाजिक महत्व और भी बढ़ जाता है।

रामनगरिया मेले का इतिहास

रामनगरिया मेले का इतिहास त्रेता युग से जुड़ा हुआ है। ऐसा माना जाता है कि भगवान श्रीराम ने अपने वनवास काल में फर्रुखाबाद के गंगा तट पर कुछ समय बिताया था। इस क्षेत्र को उनकी पवित्र उपस्थिति का साक्षी माना जाता है। पौराणिक कथाओं के अनुसार, यहां श्रीराम ने अपने छोटे भाई लक्ष्मण और माता सीता के साथ गंगा स्नान किया और कुछ समय रहे।

रामनगरिया मेले में किया जाता है कल्पवास

रामनगरिया मेले में कुंभ की तरह ही गंगा स्नान का विशेष महत्व है। साथ ही इस दौरान कई श्रद्धालु कल्पवास कल्पवास करते हैं। कल्पवास के दौरान भक्त 1 माह के लिए गंगा के तट पर छोटे शिविर बनाकर रहते हैं और कठिन नियमों का पालन करते हैं। कल्पवास के नियमों में हर दिन पवित्र स्नान करना, झूठ न बोलना, क्रोध से दूर रहना, सूर्योदय से पहले उठना, एक समय भोजन करना और जमीन पर शयन करना जैसे नियम शामिल हैं।

 

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रामनगरिया मेले का महत्व

गंगा नदी को भारतीय संस्कृति में देवी का दर्जा दिया गया है और रामनगरिया मेला देवी गंगा के प्रति आस्था प्रकट करने का एक अच्छा अवसर होता है। श्रद्धालु गंगा स्नान करके अपने पापों से मुक्ति पाने की प्रार्थना हैं और साथ ही दान-पुण्य भी करते हैं। यहां रामायण और अन्य धार्मिक ग्रंथों का पाठ और प्रवचन आयोजित किए जाते हैं।

 

इस मेले में देश के विभिन्न हिस्सों में साधु-संत आते हैं और स्नान, ध्यान व तप करते हैं। यह मेला केवल धार्मिक नहीं, बल्कि सांस्कृतिक कार्यक्रमों का भी आयोजन स्थल है। यहां पारंपरिक नृत्य, संगीत, और लोककलाएं देखने को मिलती हैं। इसके अलावा, यह मेला लोगों को आपस में जोड़ने और सामाजिक एकता को मजबूत करने का माध्यम भी है।

रामनगरिया मेले का आयोजन और समय

रामनगरिया मेला माघ महीने (जनवरी-फरवरी) में गंगा के तट पर आयोजित होता है। यह मेला मकर संक्रांति के बाद शुरू होता है और करीब एक महीने तक चलता है। इस दौरान श्रद्धालु गंगा स्नान करते हैं, धार्मिक अनुष्ठानों में भाग लेते हैं, और मेले की रौनक का आनंद उठाते हैं।

रामनगरिया मेले के मुख्य आकर्षण

रामनगरिया मेले में श्रद्धालु सुबह-सुबह गंगा में डुबकी लगाते हैं जो यहां का सबसे बड़ा आकर्षण है। साथ ही देशभर के प्रसिद्ध संत और महात्मा प्रवचन देते हैं और रामायण, भागवत गीता और वेदों की शिक्षाओं का प्रचार करते हैं।

 

मेले के दौरान बड़ी संख्या में दुकानदार आते हैं और पारंपरिक सामान, हस्तशिल्प, मिठाई, खिलौने और अन्य वस्तुएं बेचते हैं। इसके साथ मेले में स्थानीय लोक नृत्य, संगीत, नाटक और प्रतियोगिताएं आयोजित की जाती हैं, जो लोगों को मनोरंजन और सांस्कृतिक जुड़ाव का अवसर प्रदान करती हैं।

 

Disclaimer- यहां दी गई सभी जानकारी सामाजिक और धार्मिक आस्थाओं पर आधारित हैं। Khabargaon इसकी पुष्टि नहीं करता।

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