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नंदीघोष: भगवान जगन्नाथ का भव्य रथ, निर्माण से मान्यताओं तक सब जानें

ओडिशा के पुरी में आयोजित होने वाली रथ यात्रा का हिंदू धर्म में खास स्थान है। आइए जानते हैं इस रथ यात्रा से जुड़ी खास बातें।

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रथ यात्रा में सबसे आखिर में चलता भगवान जगन्नाथ का रथ।(Photo Credit: PTI File Photo)

हिंदू धर्म में जगन्नाथ रथ यात्रा को बड़े पर्व के रूप में मनाया जाता है। रथ यात्रा में भगवान जगन्नाथ, बहन सुभद्रा और बलभद्र जी के अलग-अलग विशाल रथ मंदिर से गुंडीचा मंदिर तक जाते हैं, जिसे उनकी मौसी का घर कहा जाता है। भगवान जगन्नाथ जी की रथ यात्रा भारत के सबसे बड़े और प्रसिद्ध धार्मिक आयोजनों में से एक है। इस यात्रा में भगवान जगन्नाथ, उनके भाई बलभद्र और बहन सुभद्रा अपने-अपने विशाल रथों पर सवार होकर श्रीमंदिर से गुंडिचा मंदिर की ओर प्रस्थान करते हैं। इनमें सबसे बड़ा और भव्य रथ भगवान जगन्नाथ का होता है, जिसे 'नंदीघोष' कहा जाता है। आइए सरल भाषा में विस्तार से जानते हैं नंदीघोष रथ के बारे में-

नंदीघोष रथ

भगवान जगन्नाथ जी का रथ 'नंदीघोष' कहलाता है, जिसे ओडिया में 'गरुड़ध्वज' या 'कपिध्वज' भी कहा जाता है। यह तीनों रथों में सबसे ऊंचा और सबसे भव्य होता है। इसका निर्माण हर साल विशेष लकड़ी और पारंपरिक तकनीकों से किया जाता है।

रथ का आकार

  • ऊंचाई: लगभग 45 फीट (13.7 मीटर)
  • चौड़ाई: लगभग 34 फीट
  • लंबाई: रथ का ढांचा और उसका आगे-पीछे का भाग मिलाकर कुल लंबाई लगभग 42 फीट तक होती है।

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इस रथ का निर्माण बिना किसी लोहे की कील के होता है। केवल लकड़ी और रस्सों का इस्तेमाल किया जाता है। इसके साथ नंदीघोष रथ में कुल 16 विशाल पहिए होते हैं। ये पहिए लकड़ी से बनाए जाते हैं और प्रत्येक पहिए का व्यास लगभग 6 फीट होता है।

 

कपड़े का रंग

नंदीघोष रथ को लाल और पीले रंग के कपड़े से सजाया जाता है। कपड़ों पर पारंपरिक डिजाइन, फूल-पत्तियों और धार्मिक प्रतीकों की छपाई होती है। रथ के चारों ओर भव्य सजावट की जाती है जिसमें लकड़ी की नक्काशी, झंडे, पताका, घंटियां और फूल शामिल होते हैं।

रथ के सारथी और ध्वज

भगवान जगन्नाथ के रथ के सारथी का नाम दरुक है और रथ का ध्वज ‘त्रैलोक्यमोहिनी’ कहलाता है। ध्वज को रथ के ऊपर लहराया जाता है, जो विजय, शक्ति और धर्म का प्रतीक होता है। इसके साथ भक्त भगवान जगन्नाथ के रथ को खींचने के लिए जिस रस्सी का उपयोग करते हैं, उसका नाम है ‘शंखचूड़ा नागिनी’। यह रस्सी बहुत ही मजबूत होती है और भक्त इसे खींचने को पुण्य का कार्य मानते हैं।

रथ पर सवार अन्य देवता और सेवक

रथ में भगवान जगन्नाथ जी के साथ उनके मुख्य सेवक भी होते हैं। इनके साथ मदनमोहन, रामकृष्ण और हनुमान जी की छोटी प्रतिमाएं भी रहती हैं। साथ ही 9 स्तंभाकार मूर्तियां होती हैं जिन्हें ‘नवग्रह’ कहते हैं। ‘नंदी’ का अर्थ है आनंद और ‘घोष’ का अर्थ है ध्वनि या घोषणा। इस तरह ‘नंदीघोष’ का मतलब है ‘आनंद की घोषणा करने वाला।’ यह रथ संसार में धर्म, भक्ति और प्रेम के संदेश को फैलाने का प्रतीक है।

 

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रथ का निर्माण और परंपरा

हर साल अक्षय तृतीया से रथ निर्माण की शुरुआत होती है। इसे विशेष रथ शिल्पकार बनाते हैं जिन्हें ‘महारण’ कहा जाता है। रथ निर्माण पूरी तरह पारंपरिक विधि से होता है, जिसमें साल, फटी और देवदारु की लकड़ी का उपयोग किया जाता है। रथ यात्रा में भगवान जगन्नाथ अपने नंदीघोष रथ पर सवार होकर गुंडिचा मंदिर (जो उनकी मौसी का घर माना जाता है) जाते हैं। रथ यात्रा में भगवान जगन्नाथ का रथ सबसे अंत में चलता है और यह यात्रा भक्ति, सेवा और प्रेम का सबसे बड़ा प्रतीक मानी जाती है। लाखों श्रद्धालु इस रथ को खींचने आते हैं और इसे स्वयं भगवान को सेवा देने का अवसर मानते हैं।

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