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शस्त्र और शास्त्र के संगम निर्मल अखाड़े की इतनी चर्चा क्यों? समझिए वजह

निर्मल अखाड़े के संतों को नशे से दूर रहने की ट्रेनिंग दी जाती है। उन्हें शास्त्र और शस्त्र दोनों का ज्ञान रखना होता है। संगम में इस अखाड़े की खूब चर्चा हो रही है।

Sakshi Maharaj

महाकुंभ में साक्षी महाराज। (Photo Credit: Facebook)

महाकुंभ 2025 में जन आस्था से जुड़े हुए अखाड़ों की ऐतिहासिकता, परम्परा, रीति रिवाज और और अमृत स्नान को लेकर पूरा विश्व उत्सुक रहता है। अखाड़े में नागा साधू और सन्यासियों दर्शन की उत्सुकता भक्तों को पंडालों की ओर खींच लाती है। लोग इन साधू-संतों का आशीर्वाद लेने भी दूर-दराज के इलाकों से आते हैं।

नागा साधुओं के मदमस्त नृत्य, नशा भंगिमा , शोभायात्रा, अमृत स्नान की झांकी लोगों की मन मस्तिष्क में बैठ जाती है। अगर बात अखाड़े की होती है तो लोग नागा-साधू सन्यासियों का ही जिक्र करते हैं। कम लोगों को पता है कि कुछ अखाड़े नशे से दूर होते हैं, वहां हर तरह का नशा प्रतिबंधित होता है।

कई अखाड़े ऐसे भी हैं, जहां नागा साधु सन्यासी या सन्यासी नहीं होते हैं। वहां ना ही किसी तरह का नशा होता है। इतना ही नहीं इस अखाड़े में जो महंत, संत, महात्मा और सनातनी होते हैं, वह काफी शिक्षित और पढ़े लिखे होते हैं। वे वेदों और सनातन धर्म के प्रखर विद्वान होते हैं।

क्या है निर्मल अखाड़े की खासियत?
सिक्ख संप्रदाय से जुड़ा एक अखाड़ा है, जिसे पंचायती अखाड़ा निर्मल के तौर पर जाना जाता है। श्री पंचायती अखाड़ा निर्मल का प्रमुख केंद्र हरिद्वार के कनखल में है। बीजेपी सांसद साक्षी महाराज जी इस अखाड़े के साधु हैं। इस अखाड़े के महामंडलेश्वर साक्षी महाराज ही हैं। श्री पंचायती अखाड़ा निर्मल में वर्तमान में 6 महामंडलेश्वर हैं।

स्वामी ज्ञानेश्वर जी महाराज, जयराम हरि जी महाराज भक्ता नंद हरि जी महाराज ,जनार्दन हरी जी महाराज और दिव्यानंद गिरि भी इसी अखाड़े के महामंडलेश्वर हैं। श्री पंचायती निर्माण अखाड़ा के सचिव देवेंद्र शास्त्री जी महराज ने बताया कि शीघ्र ही दो और महामंडलेश्वर बनेंगे जिनकी नाम की घोषणा होने वाली है।


सनातन धर्म की रक्षा के लिए हमेशा रहते हैं तैयार

संगम की रेती पर गृहस्थ और अखाड़ों के संतों का संगम सदियों से होता है। अखाड़े के संत भले ही कथावाचक ना हो लेकिन सनातन धर्म की रक्षा के लिए वह सदा तैयार रहे। धर्म की रक्षा के लिए करीब 850 ई पूर्व आदि शंकराचार्य ने अखाड़े की स्थापना किया। 


कैसे अस्तित्व में आए अखाड़े?
आदिगुरु शंकराचार्य ने सबसे पहले आवाहन अखाड़ा स्थापित किया, जिसका विस्तार होते हुए शैव संप्रदाय की कुल सात अखाड़े बने। इन अखाड़ों के संत भगवान शिव की पूजा करते थे। फिर भगवान विष्णु की पूजा करने वाले वैष्णव अखाड़े भी अस्तित्व में आ गए, जिन्हें बैरागी अखाड़ा कहा गया।

बैरागी अखाड़े की नींव कैसे पड़ी?
बालानंदाचार्य ने तीन बैरागी अनि अखाड़े की स्थापना की। इसी प्रकार से उदासीन परंपरा के दो अखाड़े और सिख परंपरा के एक अखाड़े की भी स्थापना हुई। यह अखाड़ा, अपने पंचायती शब्द से चर्चा में आया। पंचायती अखाड़ा निर्मल की स्थापना 1862 में पटियाला में हुई थी। सिखों और सनातनीयों के इस अखाड़े में गुरु नानक देव के समय सबचल रही परंपराएं ही आगे बढ़ रही हैं। क्योंकि वर्ष 1564 में पटियाला में गुरु नानक देव की कृपा से निर्मल संप्रदाय की स्थापना हुई थी।

कैसे निर्मल अखाड़े के बदल गए नियम?

श्री पंचायती अखाड़ा निर्मल पहले अन्य अखाड़ों के साथ ही स्नान करता था और भिक्षा आदि भी अन्य अखाड़ो के यहां पर ही ग्रहण करता था। लेकिन कुछ समय बाद यह आवश्यकता महसूस की गई कि एक अलग अखाड़ा स्थापित होना चाहिए। निर्मल अखाड़ा सिक्ख सम्प्रद्राय का अखाड़ा है मगर सब कुछ वैदिक रीति से होता है। निर्मल अखाड़े में नागा नहीं बनाये जाते हैं।

यहां पर अधिकतर शिक्षित संत महात्मा होते हैं। जिस तरह सनातन धर्म में वेदों को भगवान माना जाता है, उसी तरह गुरु ग्रन्थ साहब को भगवान माना जाता है। गुरु ग्रन्थ साहब ही इस अखाड़े के ईष्ट देव हैं। निर्मल अखाड़े की खास बात है कि यहां के संत शास्त्रधारी हैं। शस्त्र रखने की परम्परा तो बहुत बाद में शुरू हुई। इस अखाड़े में पांच ककार भी माने जाते हैं। के ककार हैं, केश, कंघा, कृपाण, कड़ा, कछैरा।

पंचायती अखाड़ा निर्मल का काम क्या है?

पंचायती अखाड़ा निर्मल के सचिव देवेंद्र शास्त्री जी महाराज ने बताया कि अखाड़े की शाखाएं देश भर में फैली हुई है। इस अखाड़े में पंगत और संगत की एक समान भावना से काम किया जाता है । इस अखाड़े में स्थापना से लेकर अब तक प्रतिदिन गुरु ग्रंथ साहिब का पाठ किया जाता है।

कुंभ में अखाड़े से जुड़े साधुओं और अनुयायियों को ठहरने की व्यवस्था अखाड़े की ओर से की जाती है। अन्य अखाड़े की तरह श्रीपंचायती अखाड़ा निर्मल में भी अनवरत लंगर चलता है सेवा भावना से सेवक लगातार काम करते हैं।

अखाड़े के संत अनुयाई शास्त्र के साथ-साथ ही शस्त्र भी धारण करते हैं। जो विद्वान जन हैं वह शास्त्र, वेद, पुराण का अध्ययन करते हैं, वहीं निहंग शस्त्र धारण कर सुरक्षा की जिम्मेदारी संभालते हैं।

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