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सर्वपितृ अमावस्या: पितरों का विसर्जन कैसे किया जाता है?

हिंदू धर्म में पितृपक्ष मास को पितरों के लिए विशेष महत्वपूर्ण माना गया है। आइए जानते है पितृपक्ष के अंतिम दिन यानी कि सर्वपितृ अमावस्या के दिन कैसे पितरों का तर्पण और पूजन करते हैं।

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प्रतीकात्मक तस्वीर: Photo credit: AI

हिंदू पंचांग के अनुसार पितृपक्ष का अंतिम दिन सर्वपितृ अमावस्या कहलाता है। यह दिन उन लोगों के लिए विशेष महत्व रखता है जिन्हें अपने पूर्वजों की श्राद्ध तिथि पता नहीं होती। मान्यता है कि इस दिन किया गया तर्पण और पिंडदान सभी पितरों को तृप्त करता है और उनका आशीर्वाद प्राप्त होता है। श्रद्धालु इस मौके पर स्नान, दान और ब्राह्मण भोजन के साथ पितरों का विसर्जन करते हैं। धार्मिक मान्यता है कि सर्वपितृ अमावस्या पर किया गया श्राद्ध पितरों को मोक्ष दिलाता है और घर-परिवार में सुख-समृद्धि लाता है। वैदिक पंचांग के अनुसार, साल 2025 में सर्वपितृ अमावस्या 21 सितम्बर को मनाई जाएगी है।

 

देशभर के गंगा घाटों और पवित्र नदियों के तटों पर इस दिन सुबह से ही श्रद्धालु स्नान, तर्पण और पिंडदान की परंपरा निभाते हैं। इस दिन कुश, तिल, चावल और जल अर्पित करके पितरों को याद किया जाता है। घरों में ब्राह्मणों को भोजन कराया जाता है और गरीबों को अन्न-वस्त्र का दान देकर पुण्य प्राप्त किया जाता है। मान्यता यह भी है कि सर्वपितृ अमावस्या को किया गया श्राद्ध और दान केवल पितरों को ही तृप्त नहीं करता, बल्कि घर-परिवार में शांति, समृद्धि और सौभाग्य भी लाता है। इस दिन पितरों का विसर्जन करके उन्हें मोक्ष की कामना के साथ विदा किया जाता है।

 

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सर्वपितृ अमावस्या के दिन कैसे करे पितृ विसर्जन?

  • सर्वपितृ अमावस्या के दिन सुबह स्नान करके पवित्र (साफ) जल में तिल और कुश डालकर तर्पण किया जाता है।
  • लोग गंगा, यमुना, नर्मदा या किसी भी पवित्र नदी में स्नान करके तर्पण करना शुभ मानते हैं।
  • पिंडदान करते समय जौ, तिल, चावल और जल का इस्तेमाल किया जाता है।
  • पिंडदान के बाद जल में तिल और कुश डालकर पितरों का विसर्जन किया जाता है। 
  • विसर्जन का अर्थ है पितरों को विदा करना और उनकी आत्मा की शांति की कामना करना।

 

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सर्वपितृ अमावस्या की पूजा विधि

  • सुबह जल्दी उठकर स्नान कर पवित्र वस्त्र धारण करें।
  • घर के आंगन या मंदिर में पूर्वजों की फोटो या प्रतीक रूप में स्थान बनाएं।
  • वहां जल, दूध, काला तिल, पुष्प और दीपक चढ़ाएं।
  • तर्पण करते समय अपने पितरों का नाम और गोत्र लेकर अर्पण करें।
  • पिंडदान (चावल के आटे, तिल और जौ से बने गोल आकार) अर्पित करें।
  • ब्राह्मणों को भोजन कराएं और दान-दक्षिणा दें।
  • किसी गरीब, गौशाला या जरूरतमंद को अन्न और वस्त्र का दान करें।

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