हिंदू धर्म में देवी-देवताओं की पूजा के साथ-साथ प्रकृति की उपासना का भी विशेष महत्व है। धार्मिक आयोजनों में फल, पुष्प और शाक अर्थात सब्जियों का इस्तेमाल विशेष रूप से किया जाता है। बात दें कि देवी शाकंभरी को प्रकृति की देवी के रूप में पूजा जाता है और पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, उन्हें मां दुर्गा का एक महत्वपूर्ण रूप माना गया है।
वैदिक पंचांग के अनुसार, पाऊस मास के पूर्णिमा तिथि के दिन शाकंभरी जयंती मनाई जाएगी, जो शाकंभरी नवरात्रि का अंतिम होता है। बता दें कि इस वर्ष शाकंभरी जयंती 13 जनवरी 2025, सोमवार के दिन मनाई जाएगी। यह दिन इसलिए भी खास होता है क्योंकि इस दिन पौष पूर्णिमा व्रत का भी पालन किया जाता है।
कौन हैं देवी शाकंभरी?
शाकंभरी दो शब्दों से बना संस्कृत का एक शब्द है, जिसमें ‘शाक’ का अर्थ सब्जी है और ‘अंभरी’ यानी पोषण करने वाली है। वह प्रकृति की देवी हैं और पृथ्वी पर जीवन के पोषण का प्रतीक मानी जाती हैं। उनकी उपासना विशेष रूप से नवरात्रि और पौष पूर्णिमा के समय की जाती है। आइए जानते हैं देवी शांकंभरी की कथा और उनकी उपासना का महत्व।
देवी शाकंभरी की कथा
पौराणिक कथाओं के अनुसार, पृथ्वी पर एक समय ऐसा आया जब भयंकर अकाल पड़ गया। सूखा इतना भीषण था कि जल का एक भी स्रोत समाप्त हो गया और जीव-जंतुओं का जीवन खतरे में पड़ गया। चारों ओर हाहाकार मच गया। तब देवताओं और ऋषि-मुनियों ने मां दुर्गा का आह्वान किया। मां दुर्गा ने शाकंभरी देवी के रूप में अवतार लिया।
पौराणिक कथा के अनुसार, देवी शाकंभरी ने अपनी तीसरी आंख से वर्षा की और पृथ्वी हरी-भरी हो गई। उन्होंने मनुष्यों और जीव-जंतुओं के लिए फल, सब्जियां और अनाज प्रदान किए, जिससे जीवन फिर से सामान्य हो सका। उनका यह रूप करुणा, दया और पालन-पोषण का प्रतीक है। देवी शाकंभरी ने इस कठिन समय में न केवल जीवन को बचाया बल्कि यह संदेश भी दिया कि प्रकृति ही जीवन का आधार है।
देवी की एक और कथा में बताया गया है कि उन्होंने महिषासुर जैसे कई असुरों का वध कर धर्म और सत्य की रक्षा की। उनकी शक्ति से देवताओं को नया साहस मिला और पृथ्वी पर शांति स्थापित हुई।
देवी शाकंभरी की उपासना का महत्व
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, देवी शाकंभरी की उपासना करने से जीवन में समृद्धि, शांति और संतुलन आती है। उनकी आराधना विशेष रूप से उन क्षेत्रों में की जाती है, जहां कृषि मुख्य आजीविका है। मान्यता है कि उनकी कृपा से जलवायु की स्थिति अनुकूल रहती है और खेतों में भरपूर फसल होती है।
देवी शाकंभरी की उपासना के दौरान भोग में हरी सब्जियां, फल और अनाज अर्पित किए जाते हैं। यह प्रकृति की देवी और कृषि के प्रति सम्मान का एक प्रतीक है। शाकंभरी जयंती के दिन भक्त उनकी प्रतिमा के समक्ष दीप जलाकर, फूल चढ़ाकर और भजन-कीर्तन करते हैं। माना जाता है कि ऐसा करने से अन्न, धन और समृद्धि की प्राप्ति होती है।
Disclaimer- यहां दी गई सभी जानकारी सामाजिक और धार्मिक आस्थाओं पर आधारित हैं। Khabargaon इसकी पुष्टि नहीं करता।