पौराणिक धर्म-ग्रंथों में कई दिव्य नगरों का वर्णन का वर्णन मिलता है, जिनमें श्री राम की अयोध्या, भगवान शिव की काशी, गांधार जैसे नगर शामिल हैं। इन्हीं में से एक भगवान कृष्ण द्वारा बनाई निर्मित द्वारका नागरी का भी कई बार पौराणिक कथाओं में वर्णन मिलता है।
भगवान श्रीकृष्ण ने द्वारका नगरी का निर्माण तब किया जब उन्होंने कंस के वध के बाद, यदुवंशियों की रक्षा का विचार आया। ऐसे में श्री कृष्ण ने समुद्र के किनारे एक सुरक्षित और रणनीतिक रूप से मजबूत नगरी बसाने का निर्णय किया। समुद्र के देवता वरुण ने श्रीकृष्ण को समुद्र की भूमि दान में दी और विश्वकर्मा ने इस चमत्कारी नगरी का निर्माण किया। यह नगरी द्वारका कहलायी और यह सप्तपुरी (भारत की सात पवित्र नगरियों) में से एक मानी जाती है।
द्वारका कैसी थी?
धार्मिक ग्रंथ विशेषकर महाभारत, हरिवंश पुराण, और भागवत पुराण में द्वारका का बहुत ही सुंदर और भव्य वर्णन किया गया है। यह नगरी समुद्र के बीच बनी थी और चारों ओर से जल से घिरी थी। इसमें सैकड़ों महल, राजप्रासाद, बगीचे, सरोवर और मंदिर थे। महलों में सोना, चांदी, मणियों और कीमती पत्थरों का उपयोग हुआ था।
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द्वारका की सड़कों पर सुगंधित जल छिड़का जाता था, वहां के लोग शिक्षित, धर्मपरायण और सुखी थे। वहां सुरक्षा इतनी कड़ी थी कि कोई बाहरी हमला आसानी से नहीं हो सकता था।
द्वारका का विनाश कैसे हुआ?
भगवान श्रीकृष्ण के देह त्याग के कुछ समय बाद ही द्वारका का पतन शुरू हो गया। इसके पीछे कई पौराणिक घटनाएं और श्राप जुड़े हैं। पौराणिक कथा के अनुसार, महाभारत युद्ध के बाद यदुवंश में अहंकार और कलह ने प्रवेश कर लिया। एक प्रमुख घटना जो द्वारका के पतन की वजह बनी, वह यह थी कि एक बार यदुवंश के युवराज साम्ब (कृष्ण के पुत्र) ने ऋषियों के साथ मजाक करते हुए उन्हें एक नकली गर्भ दिखाकर पूछा कि यह बच्चा पुत्र होगा या पुत्री। ऋषियों ने यह अपमान सहन नहीं किया और श्राप दे दिया – 'यह बच्चा तुम्हारे कुल का विनाश करेगा।'
बाद में साम्ब के पेट से एक लोहे की मूसल (गदा) निकली, जिसे देखकर सभी डर गए। श्रीकृष्ण ने इसे चूर्ण करवाकर समुद्र में फिंकवा दिया लेकिन वह लोहे की मिट्टी समुद्र किनारे की घास में मिल गई।
कुछ समय बाद द्वारका में उत्सव के दौरान यदुवंशी राजकुमारों में मदिरा पीकर झगड़ा हुआ। उसी समुद्रतट की घास को हथियार की तरह इस्तेमाल करते हुए वे एक-दूसरे को मारने लगे। देखते ही देखते पूरा यदुवंश एक-दूसरे को मारते हुए समाप्त हो गया।
इस विनाश का वर्णन भागवत पुराण के 11वें स्कंध में मिलता है, जिसे 'यदुवंश का प्रलय कहा गया है। इस कथा के अनुसार, जब श्रीकृष्ण को यह सब ज्ञात हुआ, तो वे गहरे ध्यान में वन की ओर चले गए। वहीं एक शिकारी ने उन्हें सोते हुए देखकर हिरण समझ लिया और तीर चला दिया। यह तीर श्रीकृष्ण के शरीर को लग गया और उन्होंने वहीं पृथ्वी पर अपना अंतिम समय बिताया।
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द्वारका का जलसमाधि में समा जाना
श्रीकृष्ण के देह त्याग के बाद द्वारका नगरी धीरे-धीरे समुद्र में समाने लगी। कहा जाता है कि सात दिन तक लगातार समुद्र की लहरों ने पूरी नगरी को निगल लिया और अंत में वह जलमग्न हो गई।
महाभारत के मौसाल पर्व में इसका स्पष्ट वर्णन है कि 'जो द्वारका एक समय सोने जैसी चमकती थी, वह अब सिर्फ समुद्री लहरों में खो गई है।' आज भी गुजरात में 'द्वारका' नामक नगर है, जिसे 'श्रीकृष्ण की नगरी' माना जाता है।