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पिता-पुत्र होते हुए भी सूर्य देव और शनि क्यों हैं शत्रु, पढ़ें कथा

ज्योतिष शास्त्र में बताया गया है कि शनि और सूर्य ग्रह एक-दूसरे के शत्रु ग्रह कहे जाते हैं। हालांकि, इनका रिश्ता पिता-पुत्र का है। जानें क्यों है ऐसा-

Surya dev and Shani Dev Katha

ग्रहों के राजा सूर्य और न्याय देवता शनि देव। (Pic Credit: Creative Image)

हिन्दू धर्म में सूर्य देव को प्रत्यक्ष देवता के रूप में पूजा जाता है। सूर्य देव ऊर्जा और पराक्रम के स्वामी कहे जाते हैं और उनकी उपासना करने से व्यक्ति को आत्मविश्वास, ज्ञान और विभिन्न क्षेत्रों में सफलता की प्राप्ति होती है। वहीं शास्त्रों में शनि देव को न्याय देवता के रूप में वर्णित किया गया है। शनि देव व्यक्ति को कर्म के अनुसार, फल प्रदान करते हैं और उनकी उपासना करने से जीवन में आ रही समस्याओं से छूटकारा मिलता है। 

 

बता दें कि स्कन्द पुराण, पद्म पुराण, वायु पुराण जैसे प्रमुख धर्म-ग्रंथों में इस बात का उल्लेख किया गया है कि भगवान सूर्य शनि देव के पिता हैं। हालांकि, इन दोनों देवताओं के बीच संबंध अच्छे नहीं है, यह दोनों एक-दूसरे के शत्रु कहे जाते हैं। ज्योतिष शास्त्र में भी यह बताया गया है कि जब कुंडली में सूर्य या शनि एक साथ आते हैं या शनि की सूर्य पर दृष्टि पड़ती है तो इससे कई समस्याएं उत्पन्न हो जाती है। इस शत्रुता के पीछे कारण सूर्य देव और शनि देव की पौराणिक कथा में विस्तार से बताया गया है। आइए जानते हैं-

सूर्य देव और शनि देव क्यों हैं एक दूसरे के शत्रु

पौराणिक कथा के अनुसार, भगवान सूर्य का विवाह दक्ष की पुत्री संज्ञा से हुआ था। इनसे उन्हें तीन संतान प्राप्त हुए, जिन्हें मनु, यमराज और यमुना के नाम से जाना गया। सूर्य देव का तेज, सृष्टि में प्रकाश के लिए जाना जाता है और उनके ताप से ऊर्जा का संचार होता है।

 

सूर्य देव की ताप से संज्ञा परेशान थीं और इस समस्या के समाधान के लिए वह अपने पिता के पास गईं। दक्ष ने अपने पुत्री को वापस जाने का और अपने पति के साथ रहने का आदेश दिया। जब संज्ञा को पिता से सहयता नहीं मिली तो उन्होंने सूर्य देव से दूर रहने का विचार किया। इससे पहले संज्ञा ने अपने बच्चों की जिम्मेदारी सौंपने के लिए अपनी छाया रूप स्वर्णा का निर्माण किया, जिनपर सूर्य देव के तेज का प्रभाव नहीं पड़ता था।

 

स्वर्णा से भी तीन संतान हुए, जिनका नाम भद्रा, तपती और शनि था। शनि देव में अपनी माता के गुण आए थे, लेकिन सूर्य देव को यह आभास हुआ कि शनि उनके पुत्र नहीं हैं। जैसे ही शनि की दृष्टि सूर्य देव पर पड़ी तो उनके तेजवान शरीर का रंग काला पड़ गया। इससे समस्या के समाधान के लिए सूर्य देव भगवान शिव के पास पहुंचे और महादेव ने उन्हें पूरी घटनाक्रम बताई। सूर्य देव को अपनी गलती का आभास हुआ, लेकिन तब तक शनि देव के मन में अपने पिता के प्रति कड़वाहट पैदा हो गई थी। यही कारण है कि आज भी शनि देव को सूर्य देव का शत्रु कहा जाता है।

कुंडली में किस तरह पड़ता है शनि पर सूर्य का प्रभाव

ज्योतिष शास्त्र में भी शनि पर सूर्य के प्रभाव को विस्तार से बताया गया है। ज्योतिष शास्त्र में यह बताया गया है कि जब एक भाव में सूर्य और शनि की युति होती है तो इससे पितृ दोष या शत्रुता दोष का निर्माण होता है। यह व्यक्ति के जीवन में संघर्ष, अहंकार के टकराव, और मानसिक तनाव का कारण बन सकती है। इसके साथ इससे व्यक्ति को पिता के साथ संबंधों में कठिनाई भी हो सकती है, जैसे विचारों का मतभेद या भावनात्मक दूरी इत्यादि।

 

ज्योतिष शास्त्र के अनुसार, शनि जब सूर्य पर दृष्टि डालते हैं तो व्यक्ति के आत्मविश्वास और नेतृत्व क्षमता पर प्रभाव पड़ सकता है। जीवन में विलंब और संघर्ष बढ़ सकता है, लेकिन यह संघर्ष व्यक्ति को परिपक्व व व्यावहारिक बनाता है। वहीं, सूर्य जब शनि पर दृष्टि डालते हैं तो इससे नेतृत्व, और न्याय की भावना मजबूत होती है। साथ ही इससे व्यक्ति अपने कर्मों को गंभीरता से लेने लगता है और जीवन में अधिक अनुशासित बनता है।

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