हर देश में कई साधु संतु नहीं जन्म लिया, जिनकी कई कथाएं प्रचलित हैं। इनमें से एक है तैलंग स्वामी, जिन्हें त्रैलंग स्वामी, तेलंगा स्वामी या गणपति सरस्वती के नाम से भी जाना जाता है। इन्हें भारत के महान योगियों और संतों में से एक माने जाते हैं। उनका जन्म 1607 में आंध्र प्रदेश के विजयनगर साम्राज्य के विजयनगर जिले के होलिया गांव में हुआ था। उनके बचपन का नाम शिवराम था। स्वामी जी के पिता का नाम वीर स्वामी और माता का नाम विद्यावती था। तैलंग स्वामी को बचपन से ही आध्यात्मिकता और योग में रुचि थी।
कहा जाता है कि उन्होंने अपने माता-पिता के देहांत के बाद सांसारिक जीवन त्याग दिया और गुरु भगवान विश्वेश्वरानंद के चरणों में दीक्षा ली। गुरु के निर्देशन में उन्होंने कठोर साधना और तपस्या का अभ्यास किया। इसके बाद वे वाराणसी आ गए, जहां उन्होंने गंगा किनारे कई वर्षों तक तप किया और अपनी साधना से आध्यात्मिक ऊंचाइयों को प्राप्त किया।
तैलंग स्वामी के चमत्कार
तैलंग स्वामी अपनी असाधारण शक्तियों और अद्वितीय जीवनशैली के लिए प्रसिद्ध थे। उन्हें "जीवित शिव" कहा जाता था, क्योंकि उनकी अलौकिक शक्तियां शिव के स्वरूप से जुड़ी मानी जाती थीं। उनके विषय में कई चमत्कारी कथाएं प्रचलित हैं। एक कथा के अनुसार, उन्होंने विषपान किया, लेकिन इसका कोई प्रभाव नहीं पड़ा।
एक और प्रसिद्ध चमत्कार यह है कि उन्होंने गंगा नदी के जल पर चलकर उसे पार किया। लोग देखते रह गए, लेकिन स्वामी जी सहज भाव से नदी पर चल रहे थे। उनकी यह क्षमता उनके गहरे ध्यान और साधना का परिणाम मानी जाती है।
तैलंग स्वामी के बारे में यह भी कहा जाता है कि वे योग के माध्यम से दीर्घायु प्राप्त करने में सक्षम थे। वे लगभग 300 वर्षों तक जीवित रहे और 1887 में वाराणसी में समाधि ली। उनकी शिक्षाओं और साधना पद्धति ने भारतीय योग और आध्यात्मिक परंपरा पर गहरा प्रभाव डाला।
तैलंग स्वामी को अद्वितीय तपस्वी माना जाता है, जिन्होंने योग और तपस्या के माध्यम से जीवन के उच्चतम सत्य को प्राप्त किया। उनके जीवन ने यह सिखाया कि आत्म-अनुशासन और साधना के माध्यम से आत्मज्ञान प्राप्त किया जा सकता है। वाराणसी में उनकी समाधि आज भी एक पवित्र स्थान के रूप में पूजी जाती है। उनका जीवन और शिक्षाएं भारतीय आध्यात्मिकता का अद्वितीय उदाहरण हैं।