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त्रिसंध्या या त्रिकाल संध्या क्या है और इसे कैसे किया जाता है?

हिंदू धर्म में पूजा करने की बहुत सी विधियां प्रचलित हैं, इन्हीं में से पूजन की एक विधि को त्रिसंध्या या त्रिकाल संध्या के नाम से जानते हैं।

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प्रतीकात्मक तस्वीर: Photo Credit: AI

हिंदू धर्म में त्रिसंध्या या त्रिकाल संध्या का महत्व सदियों से माना जाता रहा है। धार्मिक और आध्यात्मिक दृष्टि से त्रिकाल संध्या के पालन से मन, वचन और कर्म की शुद्धि होती है। शास्त्रों में उल्लेख है कि इसे नियमित रूप से करने पर पाप नष्ट होते हैं और जीवन में सफलता, समृद्धि और अच्छे स्वास्थ्य की प्राप्ति होती है। आधुनिक जीवन की व्यस्तता के बावजूद भी इस प्राचीन परंपरा को अपनाना व्यक्ति के मानसिक और भावनात्मक स्वास्थ्य के लिए लाभकारी माना गया है।

 

इस संध्या विधि में सुबह की पूजा सूर्योदय से पहले या सूर्योदय के समय होती है। इस समय सूर्यदेव को जल अर्पित करने के साथ-साथ मंत्र जप करके दिन की शुरुआत शुभ और सकारात्मक ऊर्जा से की जाती है। मध्याह्न (दोपहर) संध्या दिन के मध्य में व्यक्ति को अपने कर्मों और विचारों का मूल्यांकन करने का अवसर देती है। यह समय ध्यान छोटे मंत्र जाप और भगवान को स्मरण के लिए अच्छा  माना गया है। वहीं संध्याकाल (शाम के समय) संध्या सूर्यास्त के समय होती है, जो दिनभर के कर्मों के लिए धन्यवाद अर्पित करने और आत्मा की शांति प्राप्त करने का अवसर देती है।

 

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त्रिसंध्या करने का महत्व

  • इसे धार्मिक और आध्यात्मिक अनुशासन का प्रतीक माना जाता है।
  • मान्यता है कि त्रिकाल संध्या से व्यक्ति में धैर्य, संयम और विवेक आता है।
  • इसे करने से सकारात्मक ऊर्जा और भगवान की कृपा आकर्षित होती है।
  • शास्त्रों में कहा गया है कि त्रिकाल संध्या करने से पाप नष्ट होते हैं और पुण्य बढ़ता है।

त्रिकाल संध्या करने की विधि

स्थान: साफ और शुद्ध जगह चुनें, घर का पूजा स्थल।

 

पूजा सामग्री:

  • जल (गंगाजल या साफ पानी)
  • दीपक और धूप
  • तुलसी के पत्ते, फूल, अक्षत
  • अगर संभव हो तो संकल्प और मंत्रों की किताबें

शुद्धिकरण

  • स्नान करके साफ कपड़े पहने
  • हाथ और मुँह धोकर पूजा स्थल पर बैठें।

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मंत्र जाप और प्रार्थना

  • त्रिकाल संध्या में मुख्य रूप से सूर्योदय और सूर्यास्त के समय सूर्यदेव को जल अर्पित किया जाता है।
  • सूर्य मंत्र (सूर्य नमस्कार या गायत्री मंत्र) जप सकते हैं।

उदाहरण:
'ॐ भूर्भुवः स्वः तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो नः प्रचोदयात्'

 

जल अर्पण: हाथ में जल लेकर सूर्य की ओर तीन बार अर्पित करें।

 

दीप और धूप: दीपक जलाएं और धूप से भगवान का ध्यान करें।

त्रिकाल संध्या का प्रतीक और लाभ

प्रतीक: त्रिकाल संध्या से यह शिक्षा मिलती है कि मनुष्य को दिनभर अपने विचार, शब्द और कर्मों का ध्यान रखना चाहिए।

 

लाभ:

  • मानसिक शांति और ताजगी
  • दिनभर के पाप और तनाव का नाश
  • आत्मा और शरीर का संतुलन
  • भगवान की कृपा और जीवन में सफलता
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