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महर्षि भारद्वाज रचित 'विमान शास्त्र' और आधुनिक युग में इसका प्रभाव

भारतीय प्राचीन संस्कृति का ऋषि भारद्वाज द्वारा रचित विमान शास्त्र भी एक महत्वपूर्ण अंग है। जानिए इस ग्रंथ से जुड़ी खास बातें।

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प्राचीन विमान का सांकेतिक चित्र।(Photo Credit: AI Image)

भारत की प्राचीन वैदिक परंपरा में वेद, उपनिषद, पुराण और शास्त्र केवल आध्यात्मिक या धार्मिक ही नहीं, बल्कि वैज्ञानिक दृष्टिकोण से भी गहरे अर्थ रखते हैं। ऐसा ही एक महर्षि भारद्वाज द्वारा रचित 'विमान शास्त्र' ग्रंथ है, जिसे संस्कृत में 'वैमानिक शास्त्र' या 'विमानिका शास्त्र' कहा जाता है।

 

इस प्राचीन ग्रंथ में विमान निर्माण, संचालन, उनकी गति, दिशा, प्रकार और उनके उपयोग से संबंधित सिद्धांतों को प्रस्तुत करता है। महर्षि भारद्वाज प्राचीन भारत के महान वैज्ञानिक ऋषि माने जाते हैं और शास्त्रों के जानकार बताते हैं कि उन्होंने इस ग्रंथ में 500 ईसा पूर्व पहले विज्ञान, यंत्र विज्ञान और विमान विज्ञान का वर्णन किया है।

विमान शास्त्र क्या है?

‘विमान शास्त्र’ एक ऐसा ग्रंथ है जिसमें विमानों के निर्माण, प्रकार, ऊर्जा स्रोत, संचालन, युद्ध तकनीक और दिशा निर्धारित करने जैसे विषयों पर विस्तार से चर्चा की गई है। यह ग्रंथ 'यंत्र-सर्वस्व' नाम के एक बड़े ग्रंथ का हिस्सा माना जाता है, जो तकनीकी ज्ञान से जुड़ा हुआ है।

 

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इस ग्रंथ के अनुसार, प्राचीन भारत में ऐसे यंत्रों का ज्ञान था जिनके द्वारा आकाश मार्ग से एक स्थान से दूसरे स्थान तक यात्रा की जा सकती थी। इसमें वर्णित विमान न सिर्फ पृथ्वी पर, बल्कि अंतरिक्ष में भी संचालित हो सकते थे।

विमान शास्त्र में क्या-क्या बताया गया है?

महर्षि भारद्वाज ने विमान के मुख्य तीन प्रकार बताए थे, जो हैं-

  • मानुष यान (मानव द्वारा चलाए जाने वाले विमान)
  • दैव यान (दैवीय शक्ति या ऊर्जा से चलने वाले विमान)
  • राक्षस यान (कृत्रिम ऊर्जा से चलने वाले अत्याधुनिक विमान)

इन वर्गों के अंतर्गत 25 प्रकार के विमानों का विवरण दिया गया है, जिनमें शकुना विमान, सुंदर विमान, रुक्म विमान और त्रिपुर विमान जैसे नाम शामिल हैं।

विमान निर्माण सामग्री:

साथ ही इस ग्रंथ में विमान बनाने के लिए उपयोग की जाने वाली कई धातुओं और खास रसायनों का भी वर्णन मिलता है। जैसे- तमो लोह, पिंगल लोह, रक्त लोह। यह खास धातुएं विमान की शक्ति, गति और स्थायित्व के लिए उपयोग होती थीं।

 

कुछ वर्णन ‘गुरुत्वशक्ति नाशक पदार्थ’ और ‘गुप्त प्रकाशक तंत्र’ जैसे हैं जो विज्ञान के बहुत ऊंचे स्तर को दर्शाते हैं।

 

विमान संचालन और नियंत्रण प्रणाली:

महर्षि भारद्वाज ने विमान के संचालन में यंत्र-तंत्र, जैसे स्तंभन यंत्र, शक्तिस्तंभक यंत्र, दिशा-सूचक यंत्र का भी जिक्र किया है। इसके अनुसार विमान चालक (पायलट) को मौसम, गति, दिशा, प्रकाश और आपातकालीन स्थितियों की पूरी जानकारी होती थी।

उड्डयन ऊर्जा स्रोत:

विमानों को चलाने के लिए सौर ऊर्जा, विद्युत, द्रव ईंधन और कुछ विशेष गैसों के उपयोग का उल्लेख मिलता है। ग्रंथ में कुछ ऐसे रसायनों और प्रक्रियाओं का वर्णन है जिनसे धातु को अदृश्य बनाया जा सकता है या गुरुत्वाकर्षण को प्रभावित किया जा सकता है।

युद्ध में विमान का उपयोग:

विमान शास्त्र में विमानों को युद्ध में प्रयोग करने के लिए हथियार, जैसे अग्निबाण, धूमवाण, शब्दवेधक यंत्र आदि की भी जानकारी दी गई है। इससे यह समझा जा सकता है कि विमान सिर्फ यातायात का साधन नहीं, बल्कि रणनीतिक शक्ति भी थे।

सुरक्षा:

कुछ यंत्रों का वर्णन ऐसा है जो विमान को शत्रु की नजरों से छुपा सकते थे, जैसे- रूप परिवर्तक यंत्र, दृश्य अवरोधक यंत्र, आदि। यह विमान को अदृश्य या भ्रम में डालने वाला बना सकता था।

 

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आधुनिक युग में इसका प्रभाव और चर्चा

पुनराविष्कार और वैज्ञानिक दृष्टिकोण:

20वीं सदी में जब स्वतंत्र भारत में पुरानी पांडुलिपियों पर शोध होने लगा, तब विमान शास्त्र को फिर से चर्चा में लाया गया। 1918 में शिवकर बाबाजी तलपड़े द्वारा मुंबई के चौपाटी समुद्र तट पर एक छोटे विमान के उड़ान की कोशिश भी इसी शास्त्र की प्रेरणा से जुड़ी मानी जाती है।

भारतीय वैज्ञानिकों की रूचि:

1980 के दशक में भारतीय वैज्ञानिकों की एक टीम ने 'वैमानिक शास्त्र' का अध्ययन किया। कुछ विद्वानों का मत है कि इसमें वर्णित तकनीकें सैद्धांतिक और वैचारिक हैं, और व्यावहारिक रूप से उनके प्रमाण नहीं मिलते। जबकि कुछ लोगों का मानना है कि यह ग्रंथ उस समय की प्रयोगात्मक विज्ञान कल्पना (Proto-science fiction) जैसा है।

अंतरिक्ष और रक्षा अनुसंधान

हाल के वर्षों में DRDO और ISRO जैसे संस्थानों में भी प्राचीन ग्रंथों में छिपे विज्ञान की ओर ध्यान दिया गया है। वैज्ञानिक दृष्टि से देखा जाए तो वैमानिक शास्त्र कल्पनाशील है, पर इसके सिद्धांत आधुनिक एरोनॉटिक्स से मेल खाते हैं- जैसे उड़ान के लिए आवश्यक शक्ति, वायुरोध, दिशा नियंत्रण आदि। विमान शास्त्र को लेकर दुनिया भर के वैज्ञानिक और इतिहासकारों में बहस होती रही है। कुछ लोग इसे दर्शनीय कल्पना मानते हैं तो कुछ इसे गंभीर अध्ययन योग्य प्राचीन विज्ञान का उदाहरण मानते हैं।

 

Disclaimer- यहां दी गई सभी जानकारी विमान शास्त्र पर आधारित हैं।

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