मध्य प्रदेश-उत्तर प्रदेश के बार्डर पर स्थित चित्रकूट क्षेत्र में सती अनुसुइया मंदिर अपने पवित्र इतिहास और शांत वातावरण के लिए जाना जाता है। यह स्थान पुरातन काल से ही धार्मिक श्रद्धा का केंद्र रहा है। यहां पर स्थित देवी की पातिव्रता, तपस्या और देवों से जुड़ी कई पौराणिक कथाएं मिलती हैं। स्थानीय मान्यता के अनुसार यही वह आश्रम था जहां अनुसुइया-आत्रि का जीवन और उनकी तपस्या आधारित पौराणिक घटनाएं हुई थीं।
पौराणिक कथा में कहा जाता है कि महान तपस्विनी अनुसुइया की पवित्रता की परीक्षा लेने के लिए त्रिदेव (ब्रह्मा-विष्णु-महेश) गए थे। दैवीय परीक्षा में अनुसुइया ने अपनी पवित्रता और सद्गुण बनाए रखते हुए देवताओं को छोटे-छोटे बालकों के रूप में भोजन कराया था। कथा के अनुसार, बाद में सब कुछ पहले जैसा कर दिया था। इस कथा के वजह से अनुसुइया को ‘सती’ और ‘पातिव्रता’ के आदर्श के रूप में पूजनीय माना जाता है। रामायण में भी चित्रकूट यात्रा के दौरान राम-सीता-लक्ष्मण के अनुसुइया से संवाद का वर्णन मिलता है।
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मान्यता और पौराणिक कथा
सती अनुसुइया पौराणिक हिन्दू धर्मग्रंथों में पातिव्रता स्त्री की मिसाल मानी जाती हैं। सती अनसुइया से जुड़ी एक कथा के अनुसार, ब्रह्मा, विष्णु, महेश की पत्नियों को जलन हुई कि अनुसुइया की पवित्रता और भक्ति सुनने लायक है। उन्होंने तीनों देवों से कहा कि वे अनुसुइया के पास जाएं और उनसे ऐसा अनुरोध करें जो उनके 'स्त्रीत्व / पातिव्रता / शुद्धता' की परीक्षा ले सके। प्रचलित कथा के अनुसार, तीनों देवता अनसुइया के आश्रम में पहुंचते हैं और अनुरोध करते हैं कि अनुसुइया उन्हें नग्न अवस्था में भोजन दें (जिससे उनकी पवित्रता पर प्रश्न उठे)। अनुसुइया ने अपनी पवित्रता बनाए रखने के लिए तीनों देवताओं को छोटे बच्चों में बदल दिया, फिर उन्हीं देवताओं को भोजन कराया। बाद में देवियों ने अपने पतियों को वैसे ही वापस मांगा और अनुसुइया की शुद्धता की स्वीकृति हुई।
एक अन्य प्रसिद्ध कथा है कि चित्रकूट क्षेत्र में कई साल तक वर्षा नहीं हुई थी, फसलें सूख गई थीं। लोग कष्ट झेल रहे थे। अनुसुइया ने कठोर तपस्या की और हृदय व भक्ति से प्रार्थना की। उनकी तपस्या के फलस्वरूप नदी मंदाकिनी प्रकट हुई, जिससे वहां का जीवन वापस लौट आया।
इसके अलावा रामायण में वर्णन है कि राम, सीता और लक्ष्मण वनवास के समय इस आश्रम में आए और देवी सीता को अनुसुइया जी ने सत्य और पातिव्रता के महत्व की शिक्षा दी थी।
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मंदिर से जुड़ी विशेषताएं
- आश्रम प्राकृतिक सुंदरता से परिपूर्ण है। यह मंदिर जंगलों और मंदाकिनी नदी के किनारे स्थित है।
- यहां अत्रि मुनि, अनुसुइया और उनके तीन पुत्रों (दत्तात्रेय, दुर्वासा, चंद्र / सोम / चन्द्रमा आदि) की प्रतिमाएं स्थित हैं।
- आश्रम में मूर्तियों और कलात्मक शिल्पों के जरिए पौराणिक कथाएं उजागर की गई हैं, जैसे कि देवताओं के बच्चों में बदलने की घटना, सीता-राम की यात्रा, आदि घटानाओं का चित्रण किया गया है।
मंदिर तक पहुंचने का रास्ता
- आश्रम चित्रकूट शहर से लगभग 15-20 किलोमीटर दूर है।
- नजदीकी रेलवे स्टेशन: सबसे नजदीकी रेलवे स्टेशन है चित्रकूट धाम (कारवी / Karwi)। वहां से टैक्सी या निजी गाड़ियों से आश्रम पहुंचा जा सकता है।
- नजदीकी एयरपोर्ट: इस स्थान पर कोई स्थानीय एयरपोर्ट नहीं है। नजदीकी हवाई अड्डा प्रयागराज (Allahabad / Prayagraj) है, जिसकी दूरी लगभग 126 किलोमीटर है। वहां से सड़क के रास्ते आगे की यात्रा करनी होगी।
- सड़क मार्ग से: विभिन्न बडे़ राज्यमार्गों और बसों के जरिए यहां पहुंचा जा सकता है। निजी वाहन, टैक्सी या स्थानीय सड़कों से आश्रम जाना आसान है।