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युवा आबादी वाला भारत हो रहा बूढ़ा! 10 साल में कैसे बदल जाएगी तस्वीर? समझिए

भारत में अगले दस सालों में जनसंख्या का स्वरूप बदलने वाला है, जिसे आज डिवीडेंड माना जाता है वही कल को जिम्मेदारी हो जाएगी। ऐसे में इकॉनमी का स्वरूप बदलेगा।

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प्रतीकात्मक तस्वीर । Photo Crdit: AI Generated

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भारत को अक्सर 'यंगेस्ट नेशन' कहा जाता है यानी कि एक ऐसा देश जिसकी औसत उम्र 29 साल है और जिसकी युवा आबादी को आने वाले दशकों में आर्थिक ग्रोथ का इंजन माना गया। लेकिन यह तस्वीर धीरे-धीरे बदल रही है। 2035 के बाद भारत में जनसंख्या संरचना का रुख तेजी से बुजुर्ग आबादी की ओर झुकने लगेगा। यूनाइटेड नेशन वर्ल्ड पॉपुलेशन प्रॉस्पेक्ट और भारत की नेशनल पॉपुलेशन कमीशन दोनों संकेत दे चुके हैं कि 2040 तक भारत में 60 साल से ज्यादा उम्र की आबादी कुल जनसंख्या का लगभग 19–20% हो जाएगी, जो आज के मुकाबले लगभग दोगुनी है।

 

इसका मतलब भारत पहली बार एक 'एजिंग इकोनॉमी' बनने की राह पर है। यह बदलाव भारत की खपत, श्रम बाजार, स्वास्थ्य प्रणाली, सेवाओं की मांग, पेंशन संरचना, रियल एस्टेट और राज्य के वित्तीय बोझ, हर चीज पर गहरा असर डालेगा।

 

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डिविडेंड से जिम्मेदारी तक

1990–2030 के बीच भारत ने 'डेमोग्राफिक डिविडेंड' की स्थिति में है यानी कि कामकाजी उम्र की आबादी (15–59 वर्ष) सबसे बड़ी है। इसी डेमोक्रेटिक डिवीडेंड के कारण खपत बढ़ी, सेवाओं में उछाल आया, स्टार्टअप क्रांति हुई, और एक मजबूत श्रम शक्ति बनी। लेकिन 2035 के बाद यह लाभ धीरे-धीरे कम होने लगेगा। 2050 तक भारत में कामकाजी आबादी का अनुपात गिरने लगेगा, क्योंकि जन्म दर लगातार कम हो रही है (TFR अब 2.0 के आसपास आ गई है)। इससे देश एक नए चरण में प्रवेश करेगा जो कि है- डेमोग्राफिक रिस्पॉन्सिबिलिटी की, जहां बुजुर्गों की देखभाल, सामाजिक सुरक्षा और स्वास्थ्य इंफ्रास्ट्रक्चर पर बोझ बढ़ेगा।

स्वास्थ्य व देखभाल की मांग

बुजुर्ग आबादी बढ़ने का सबसे सीधा प्रभाव स्वास्थ्य सेक्टर में दिखेगा। भारत में 60+ लोगों में 68% को कम से कम एक गभीर बीमारी है, जैसे- डायबिटीज़, ब्लड प्रेशर, आर्थराइटिस या हार्ट डिज़ीज़। 2040 तक इस मांग में 2.5 गुना वृद्धि अनुमानित है। लॉन्ग-टर्म केयर इंडस्ट्री जैसे असिस्टेड लिविंग होम्स, जीरियाट्रिक हॉस्पिटल्स, होम-बेस्ड हेल्थकेयर, और टेली-केयर भारत में अभी बहुत शुरुआती चरण में है, लेकिन यह अगले 15–20 वर्षों में 40–50 बिलियन डॉलर की इंडस्ट्री बन सकती है। स्वास्थ्य बीमा कंपनियों के लिए भी नए उत्पादों का एक बड़ा बाजार तैयार होगा।

श्रम शक्ति घटेगी, ऑटोमेशन बढ़ेगा

2035 के बाद भारत की सबसे बड़ी चुनौती होगी कुशल श्रमिकों की कमी। बुजुर्ग आबादी बढ़ने से श्रम बाज़ार में नई भर्ती कम होगी, खासकर मैन्युफैक्चरिंग, कॉन्स्ट्रक्शन, लॉजिस्टिक्स और एग्रीकल्चर जैसे सेक्टर्स में। इसका सीधा अर्थ है भारत को अपनी अर्थव्यवस्था को भविष्य के लिए तैयार करना होगा जिसमें ऑटोमेशन और रोबोटिक्स का तेजी से विस्तार हो, AI आधारित वर्कफोर्स ऑग्मेंटेशन हो, सीनियर वर्कर्स की रि-स्किलिंग और एक्सटेंडेट वर्क-लाइफ पॉलिसीज बनाई जाएं। जापान, दक्षिण कोरिया और यूरोप की तरह भारत में भी 65 वर्ष तक काम करने की नीति भविष्य में एक सामान्य आर्थिक आवश्यकता बन सकती है।

खपत के पैटर्न में बड़ा बदलाव

युवा आबादी कंजप्शन-ड्रिवेन ग्रोथ (खपत के कारण होने वाली ग्रोथ) को बढ़ाती है, जैसे- कपड़े, इलेक्ट्रॉनिक्स, वाहन, रियल एस्टेट, ट्रैवल आदि। हालांकि, बुजुर्ग आबादी हेल्थरेयर, इंश्योरेंस और वेलनेस, दवाइयों, डायग्नोस्टिक पर खर्च करते हैं।

 

2035 के बाद भारत में FMCG और मोबिलिटी की तुलना में हेल्थकेयर, वेलनेस, फार्मास्यूटिकल्स और डिजिटल सर्विसेज में मांग तेजी से बढ़ेगी। निवेशकों के लिए यह सबसे बड़ा सेक्टोरल शिफ्ट साबित होगा।

पेंशन सिस्टम पर दबाव

भारत की 90% वर्कफोर्स असंगठित क्षेत्र में काम करती है, जहां कोई औपचारिक पेंशन ढांचा नहीं है। 2035 के बाद बुजुर्गों की संख्या बढ़ने से सरकार पर सामाजिक सुरक्षा का बोझ बहुत बढ़ेगा, जिसकी वजह से पेंशन का खर्च तेजी से बढ़ेगा, हेल्थकेयर सब्सिडी बढ़ानी पड़ेगी। अगर भारत में अभी से पेंशन रिफॉर्म नहीं किया गया तो 2040 के बाद राजकोषीय दबाव गंभीर हो सकता है। इसी कारण सरकार को NPS के विस्तार, माइक्रो-पेंशन और इंश्योरेंस लिंक्ड सेविंग मॉडल को मजबूत करना होगा।

भारत के गांव पहले बूढ़े होंगे

चूंकि काम करने के लिए युवाओं का शहरी इलाकों में पलायन होगा, इसकी वजह से गांवों में तेजी से लोग उम्रदराज होंगे। 2035 के बाद ग्रामीण भारत में चिकित्सा सेवाएं, परिवहन, वृद्ध लोगों की देखभाल, सामाजिक सुरक्षा इत्यादि की भारी मांग बढ़ेगी। इससे ग्रामीण स्थानीय निकायों पर वित्तीय और प्रशासनिक दबाव बढ़ेगा। साथ ही कृषि उत्पादकता पर भी असर पड़ेगा क्योंकि श्रम शक्ति लगातार कम होगी।

 

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सप्लाई चेन पर होगा असर

2035 तक दुनिया भी तेजी से बूढ़ी हो रही होगी। चीन, जापान, कोरिया और यूरोप पहले ही एजिंग का सामना कर रहे हैं। भारत लंबे समय तक दुनिया के लिए यंग वर्कफोर्स का स्रोत रहा, खासकर IT और सर्विस सेक्टर में, लेकिन एजिंग के बाद भारत को ग्लोबल वैल्यू चेन में अपनी भूमिका बदलनी होगी। भारत को हाई-स्किल्ड टेक वर्कफोर्स को बनाए रखना होगा और डेटा, क्लाउड, एआई जैसे सेक्टर में वैल्यू क्रिएशन करना होगा।

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