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कोल-टू-केमिकल, 2070 तक कैसे पूरा करेगा भारत नेट जीरो टारगेट?

ऊर्जा के लिए सरकार अभी भी कोयले का काफी उपयोग करती है। ऐसे में कोल-टू-केमिकल के जरिए कितना फायदा होगा? क्या यह फायदा पहुंचाएगा या नुकसान?

Representational image । Photo Credit: AI Generated

प्रतीकात्मक तस्वीर । Photo Credit: AI Generated

जलवायु परिवर्तन आज के समय की सबसे गंभीर वैश्विक चुनौती बन चुका है। पेरिस समझौते के एक प्रमुख हस्ताक्षरकर्ता भारत ने वर्ष 2070 तक नेट ज़ीरो कार्बन उत्सर्जन का लक्ष्य तय किया है। इसके साथ ही, 2030 तक पैदा की जाने वाली कुल ऊर्जा में अक्षय ऊर्जा की हिस्सेदारी 50% करने की प्रतिबद्धता भी जताई है, लेकिन दूसरी ओर, भारत की कोयले पर बढ़ती निर्भरता इस लक्ष्य को लेकर गंभीर संदेह खड़ा करती है। कोयला न केवल भारत की 70% से अधिक बिजली उत्पादन का स्रोत है, बल्कि अब सरकार 'कोल टू केमिकल्स', 'कोल गैसीफिकेशन', और 'कोल माइनिंग विस्तार' जैसे नए कार्यक्रमों को बढ़ावा दे रही है। इससे भारत का ऊर्जा भविष्य और पर्यावरणीय संकट टकराव की स्थिति में आ गए हैं।

 

इस लेख में खबरगांव कोयले की खपत, उत्पादन, सरकार की नीतियों, जलवायु को लेकर सरकार की प्रतिबद्धताओं और मौजूदा आंकड़ों के आधार पर यह जानने की कोशिश करेगा कि क्या भारत वास्तव में कोयले पर निर्भरता और उसके उपयोग से बाहर निकलने की तैयारी कर रहा है, या फिर इसमें और गहराई तक फंसता जा रहा है।

 

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कोयले की मौजूदा स्थिति

भारत में कोयले के कुल 307 बिलियन मीट्रिक टन रिजर्व है। वित्तीय वर्ष 2020-21 में भारत ने 716 मीट्रिक टन कोयले का उत्पादन किया जो कि साल दर साल बढ़ता गया। 2021-22 में 778, 2022-23 में 893 और 2023-24 में 1012 मीट्रिक टन का उत्पादन किया गया।

 

मौजूदा समय में भारत दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा कोयला उत्पादक है और तीसरा सबसे बड़ा उपभोक्ता। कोयले से 2024 में लगभग 1140 बिलियन यूनिट (BU) बिजली बनी जो कुल उत्पादन का 74% था। 2025 तक कोयले से बिजली उत्पादन में 6% वृद्धि का अनुमान है। हालांकि, इतने उत्पादन के बावजूद भी भारत को विदेशों से कोयला आयात करना पड़ता है। साल 2023-24 में भारत ने 245 मिलियन टन कोयला आयात किया था जिसमें कि साल दर साल वृद्धि देखी जा रही है।

 

भारत खासतौर पर इंडोनेशिया, ऑस्ट्रेलिया और दक्षिण अफ्रीका से कोयले की आपूर्ति करता है। कई पावर प्लांट्स और स्टील उद्योग गुणवत्ता वाले कोकिंग कोल के लिए पूरी तरह आयात पर निर्भर हैं।

कोयले पर निर्भरता क्यों?

भारत में 1.4 अरब से अधिक लोग रहते हैं और देश की ऊर्जा की ज़रूरतें लगातार बढ़ रही हैं। आज भी भारत की लगभग 75% बिजली कोयले से बनने वाले थर्मल पावर प्लांट्स से आती है। भारत के पास 378 अरब टन कोयला भंडार है, जो दुनिया में पांचवां सबसे बड़ा है। भारत के पास सीमित मात्रा में तेल और गैस है, इसलिए कोयला भारत की ऊर्जा सुरक्षा के लिए एक स्थानीय और सस्ता विकल्प बनकर सामने आता है।

ग्रीन एनर्जी की दिशा में प्रगति

कोयले की भारी निर्भरता के बावजूद भारत ग्रीन एनर्जी के क्षेत्र में भी तेज़ी से आगे बढ़ा है। 2014 की तुलना में भारत की नवीकरणीय ऊर्जा स्रोत (renewable energy capacity) लगभग 5 गुना बढ़ी है। वर्तमान में यह देश की कुल पावर जनरेशन क्षमता का 46% हिस्सा है, लेकिन असल में इस्तेमाल की जाने वाली बिजली में इसकी हिस्सेदारी अभी 20% से भी कम है।

 

भारत का लक्ष्य है कि 2030 तक 50% बिजली गैर-जीवाश्म ईंधनों (non-fossil sources) से आए। इसके लिए सौर ऊर्जा (solar power), पवन ऊर्जा (wind power), और ग्रीन हाइड्रोजन जैसे नए विकल्पों में भारी निवेश हो रहा है। हाल ही में भारत सरकार ने ग्रीन हाइड्रोजन मिशन लॉन्च किया है, जिससे स्टील, उर्वरक और तेल रिफाइनिंग क्षेत्रों में साफ ईंधन को बढ़ावा मिलेगा।

 

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कोल-टू-केमिकल

हालांकि, सरकार ने हाल ही में कोयले को गैसीफाई कर केमिकल बनाने की रणनीति पर तेज़ी से काम शुरू किया है। इस प्रक्रिया को 'कोल गैसीफिकेशन' कहा जाता है, जिसमें कोयले को भाप और ऑक्सीजन के साथ उच्च तापमान पर मिलाकर एक मिश्रण बनाया जाता है जिसे 'सिंथेसिस गैस' (syngas) कहा जाता है। यह मिश्रण मुख्य रूप से हाइड्रोजन और कार्बन मोनोऑक्साइड से बना होता है। सिनगैस का उपयोग कई महत्त्वपूर्ण रसायनों जैसे मेथनॉल, अमोनिया, हाइड्रोजन, ऑलिफ़िन्स आदि के निर्माण में किया जाता है।

कोल गैसीफिकेशन, मददगार या चुनौती?

भारत सरकार कोयले को पूरी तरह छोड़ने के बजाय उसे अलग रूप में इस्तेमाल करने की रणनीति पर काम कर रही है। यह है कोल गैसीफिकेशन। इसमें कोयले को भाप और ऑक्सीजन के साथ मिलाकर सिंथेसिस गैस (Syngas) बनाई जाती है, जिसमें हाइड्रोजन और कार्बन मोनोऑक्साइड होते हैं।

 

इस Syngas से अमोनिया, मिथेनॉल, हाइड्रोजन, और प्लास्टिक जैसे उत्पाद बनाए जाते हैं, जिनकी भारत में भारी मांग है। इसके पीछे सोच यह है कि इससे भारत को ईंधन और रसायनों के आयात पर निर्भर नहीं रहना पड़ेगा, देश में उपलब्ध कोयले का बुद्धिमतापूर्वक इस्तेमाल होगा, स्थानीय उद्योगों और रोज़गार को बढ़ावा मिलेगा, सरकार ने 2030 तक 100 मिलियन टन कोयले को गैसीफाई करने का लक्ष्य रखा है, जो कुल कोयला खपत का 10% है।

 

लेकिन कई पर्यावरण विशेषज्ञों का मानना है कि यह तकनीक भी CO₂ उत्सर्जन को कम करने में ज्यादा मददगार नहीं है। मिथेनॉल को अगर कोयले से बनाया जाए तो उसमें प्राकृतिक गैस से बने मिथेनॉल की तुलना में 5 गुना ज़्यादा कार्बन उत्सर्जन होता है।

ऊर्जा और पर्यावरण

भारत में साल 2023 में मेथनॉल का 90% आयात होता था। प्रो. सोनल थेंगाणे (IIT रुड़की) के मुताबिक, 'अगर हमारे पास खुद का कोयला है और तकनीक है, तो दूसरे देशों से गैस या रसायन खरीदना समझदारी नहीं है।'

भारत की आर्थिक स्थिति, गरीबी और बढ़ती जनसंख्या को देखते हुए यह तर्क समझ आता है कि देश को अपनी विकास की गति धीमी नहीं करनी चाहिए।

लेकिन सवाल यह है कि क्या इस रास्ते से हम सच में कार्बन न्यूट्रल बन सकते हैं?

अंतरराष्ट्रीय दबाव और भारत की स्थिति

भारत और चीन दोनों पर पश्चिमी देशों का दबाव रहा है कि वे कोयला इस्तेमाल बंद करें। लेकिन भारत का तर्क यह है कि उसके प्रति व्यक्ति उत्सर्जन अभी भी बहुत कम है। भारत के पर्यावरण मंत्री ने COP26 में कहा था, 'हम कैसे अपेक्षा कर सकते हैं कि विकासशील देश कोयले और सब्सिडी पर पाबंदी लगाएं जब उन्हें अब भी गरीबी हटाने की चुनौती है?'

श्रेयस शेंडे (जॉन्स हॉपकिन्स यूनिवर्सिटी) कहते हैं, 'अगर अमीर देश जलवायु वित्त नहीं देंगे, तो भारत जैसे देश केवल अपने संसाधनों पर निर्भर रहकर ही विकास करेंगे।'

समाधान क्या है?

भारत के नेट ज़ीरो लक्ष्य को हासिल करने के लिए सबसे पहले, कोयला गैसीफिकेशन जैसे भारी प्रदूषण फैलाने वाले प्रोसेस में कार्बन कैप्चर तकनीक को अनिवार्य बनाना ज़रूरी है ताकि उत्सर्जन को सीधे स्रोत पर रोका जा सके। इसके साथ ही, मेथनॉल और अमोनिया जैसे रासायनिक उत्पादों के निर्माण में रिन्यूएबल हाइड्रोजन के उपयोग को प्राथमिकता दी जाए, जिससे पारंपरिक जीवाश्म ईंधन पर निर्भरता घटे।

 

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ग्रामीण और अर्ध-शहरी क्षेत्रों में ऊर्जा उपयोग को अधिक कुशल बनाना भी एक जरूरी कदम है। इसके लिए एनर्जी-एफिशिएंट एसी, एलईडी बल्ब और स्मार्ट उपकरणों का इस्तेमाल बढ़ाना चाहिए। नीति निर्माण के स्तर पर यह स्पष्ट होना चाहिए कि कौन-कौन से प्रोजेक्ट्स वास्तव में नेट ज़ीरो लक्ष्य के अनुरूप हैं, जिससे नीति में पारदर्शिता बनी रहे।

कोल-टू-केमिकल, समझदारी या खतरा?

भारत को अगर नेट ज़ीरो 2070 तक हासिल करना है, तो केवल रिन्यूएबल एनर्जी बढ़ाना ही नहीं, बल्कि कोयले के इस्तेमाल को भी समझदारी से घटाना होगा। कोयला गैसीफिकेशन कुछ हद तक आत्मनिर्भरता बढ़ा सकता है, लेकिन अगर इसमें कार्बन कैप्चर तकनीक नहीं लगी, तो यह विकास की जगह विनाश का रास्ता बन सकता है। भारत को एक संतुलन बनाना होगा, जहां ऊर्जा सुरक्षा, आत्मनिर्भरता और जलवायु लक्ष्य, तीनों साथ चल सकें।

 

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