logo

ट्रेंडिंग:

Google, HCL जैसी कंपनी छोटे शहर में खोल रहीं ऑफिस, क्या हैं चुनौतियां?

TCS, Google, Infosys जैसी कंपनियां Tier-2 शहरों में GCC खोल रही हैं। जानिए क्या छोटे शहरों में मौजूद है जरूरी ढांचा और कैसे कंपनियां चुनौतियों से निपट रही हैं।

प्रतीकात्मक तस्वीर । Photo Credit: AI Generated

प्रतीकात्मक तस्वीर । Photo Credit: AI Generated

भारत की डिजिटल अर्थव्यवस्था का दायरा तेज़ी से फैल रहा है। पहले जहां बेंगलुरु, हैदराबाद, पुणे और नोएडा जैसे मेट्रो शहर तकनीकी विकास के केंद्र माने जाते थे, वहीं अब Tier-2 और Tier-3 शहर जैसे इंदौर, भुवनेश्वर, कोयंबटूर, नागपुर, जयपुर और विशाखापट्टनम तेजी से उभर रहे हैं। इसका बड़ा प्रमाण है देश और विदेश की बड़ी कंपनियों — जैसे TCS, Infosys, Wipro, HCL और यहां तक कि Google — का छोटे शहरों की ओर रुख करना और वहां Global Capability Centers (GCCs) की स्थापना करना। इन GCCs में कंपनियां अपने अंतरराष्ट्रीय संचालन जैसे रिसर्च, डेवलपमेंट, कस्टमर सपोर्ट, IT ऑपरेशंस और बिजनेस प्रोसेसिंग जैसे कार्य करती हैं। Deloitte की 2023 की रिपोर्ट के अनुसार, भारत में फिलहाल 1,580 से अधिक GCCs सक्रिय हैं, और अनुमान है कि 2030 तक इनमें से 50% से ज़्यादा Tier-2 और Tier-3 शहरों में होंगे।

 

लेकिन सवाल यह है कि — क्या इन छोटे शहरों में इतना आधारभूत ढांचा (Infrastructure) उपलब्ध है, जो इन कंपनियों की उच्च तकनीकी जरूरतों को पूरा कर सके? क्या वहां इंटरनेट, बिजली, ऑफिस स्पेस, टैलेंटेड वर्कफोर्स, ट्रांसपोर्ट और हेल्थकेयर जैसी बुनियादी सुविधाएं मौजूद हैं? इस लेख में खबरगांव इन्हीं बिंदुओं पर डेटा के साथ गहराई से विश्लेषण करेगा, और यह जानने की कोशिश करेगा कि कंपनियां कैसे इन चुनौतियों से निपटेंगी और सरकार का इस मामले में कितना सहयोग है।

 

यह भी पढ़ेंः कम खर्च, जॉब रिटेंशन; Google, Wipro, HCL छोटे शहरों में खोल रहीं ऑफिस

कौन-कौन सी कंपनियां आ चुकी हैं?

अब तक कई बड़ी IT और टेक कंपनियां भारत के टियर-2 शहरों में अपनी मजबूत उपस्थिति दर्ज करा चुकी हैं। इनमें सबसे प्रमुख नाम TCS का है, जिसने इंदौर, नागपुर और भुवनेश्वर जैसे शहरों में अपने डिलीवरी सेंटर और R&D यूनिट स्थापित किए हैं। वहीं, Infosys ने मैसूर, मोहाली और नवी मुंबई में अपनी ट्रेनिंग और ऑपरेशंस यूनिट तैयार की है, जिससे स्थानीय प्रतिभाओं को प्रशिक्षण और रोजगार के अवसर मिल रहे हैं।

 

Wipro ने भी इस दिशा में तेजी दिखाई है और कोयंबटूर, कोच्चि और मैसूर में ग्लोबल कैपेबिलिटी सेंटर (GCC) और BPO यूनिट्स की शुरुआत की है। इसी तरह, HCLTech ने लखनऊ, नोएडा (सेक्टर-126) और नागपुर जैसे शहरों में अपने डिलीवरी सेंटर्स स्थापित कर उत्तर भारत में अपने नेटवर्क को मज़बूती दी है।

 

LTIMindtree ने भी भुवनेश्वर और कोच्चि में अपने क्लाउड इनोवेशन हब शुरू किए हैं, जो तकनीकी इनोवेशन के लिए विशेष रूप से विकसित किए गए हैं। भविष्य की योजनाओं में, Google जैसे दिग्गज ने भी टियर-2 शहरों की ओर रुख किया है और भुवनेश्वर व कोयंबटूर में अपनी डिजिटल ऑपरेशंस यूनिट स्थापित करने की योजना बनाई है।

NASSCOM की 2024 की रिपोर्ट के अनुसार, भारत में ग्लोबल कैपेबिलिटी सेंटर्स (GCCs) अब टियर-2 शहरों में तेजी से बढ़ रहे हैं, जो यह दर्शाता है कि ये छोटे शहर अब सिर्फ बैक ऑफिस नहीं, बल्कि इनोवेशन और डिजिटल संचालन के केंद्र बनते जा रहे हैं।

क्या हैं चुनौतियां?

1. हालांकि, काफी कुछ सुधार हुआ है लेकिन छोटे शहरों में बिजली की आपूर्ति अक्सर अनियमित होती है, जो डेटा सेंटर्स और 24/7 संचालन के लिए आवश्यक स्थिर बिजली आपूर्ति को प्रभावित कर सकती है। इसके लिए कंपनियों को जेनरेटर इत्यादि के जरिए बिजली के वैकल्पिक स्रोत विकसित करने पड़ेंगे। भारत में अभी भी टियर-2 शहरों में औसतन 4-6 घंटे की बिजली कटौती रोजाना होती है।


2. जीसीसी के लिए हाई-स्पीड और विश्वसनीय इंटरनेट महत्वपूर्ण है। हालांकि, छोटे शहरों में 4जी/5जी कनेक्टिविटी और फाइबर ऑप्टिक नेटवर्क की पहुंच सीमित है। टेलीकॉम इंडिया की 2024 की रिपोर्ट के अनुसार, टियर-2 शहरों में औसत इंटरनेट स्पीड 20-30 एमबीपीएस है, जबकि जीसीसी को 100 एमबीपीएस से अधिक की आवश्यकता होती है। हालांकि, भारतनेट प्रोजेक्ट के माध्यम से देश के 6.5 लाख गांवों तक फाइबर इंटरनेट पहुंचाने की योजना है, जिससे टियर-2 शहरों की डिजिटल पावर को और बल मिल रहा है। इसके अलावा छोटे शहरों में हो रहे 5जी के तेजी से प्रसार की वजह से इस समस्या से निपटा जा सकेगा।


3. छोटे शहरों में सार्वजनिक परिवहन और सड़क नेटवर्क अक्सर अपर्याप्त होते हैं, जिससे कर्मचारियों की आवाजाही और उपकरणों की डिलीवरी में देरी हो सकती है। छोटे शहरों में मेट्रो इत्यादि हर जगह नहीं है जिससे संभावना होती है कि कर्मचारियों को आने-जाने में दिक्कत का सामना करना पड़े।


4. हालांकि छोटे शहरों में प्रतिभा पूल बढ़ रहा है, लेकिन अनुभवी पेशेवरों की कई बार कमी एक चुनौती के रूप में उभर कर आती है।


5. छोटे शहरों में कर्मचारियों के लिए संभवतः बेहतर आवास, स्कूल, और स्वास्थ्य सुविधाओं की कमी हो सकती है। इससे यह संभव हो सकता है कि हाई-टैलेंटेड लोग वहां जाकर न रहना चाहें, क्योंकि कई लोग परिवार के साथ बड़े शहरों में रहने को प्राथमिकता देते हैं।

कंपनियां कैसे निपटेंगी?

इन चुनौतियों से निपटने के लिए कंपनियां कई रणनीतियों पर काम कर रही हैं। सबसे प्रमुख है Hub and Spoke मॉडल – इसमें कंपनी का मुख्यालय (Hub) बड़े मेट्रो शहरों में रहता है, जबकि ग्लोबल कैपेबिलिटी सेंटर्स (GCCs) छोटे शहरों में (Spoke) स्थापित किए जाते हैं। इससे एक ओर जहां निर्णय लेने की प्रक्रिया सेंट्रलाइज्ड रहती है, वहीं दूसरी ओर ऑपरेशन की लागत भी कम हो जाती है।

 

दूसरी रणनीति है हाइब्रिड वर्क मॉडल, जिसमें कर्मचारियों का एक हिस्सा ऑन-साइट कार्य करता है जबकि अन्य रिमोटली काम करते हैं। इससे ऑफिस स्पेस, ट्रैवल और इंफ्रास्ट्रक्चर पर दबाव कम पड़ता है, साथ ही प्रतिभा को लचीलापन (flexibility) भी मिलता है।

 

कई कंपनियां CSR (Corporate Social Responsibility) के तहत स्थानीय स्तर पर निवेश कर रही हैं। उदाहरण के तौर पर, HCL Foundation ने लखनऊ और उसके आसपास के क्षेत्रों में स्किल डेवेलपमेंट सेंटर्स स्थापित किए हैं ताकि स्थानीय टैलेंट को प्रशिक्षित किया जा सके और कंपनी की जरूरतों के अनुसार तैयार किया जा सके।

 

यह भी पढ़ेंः Opinionक्लासरूम में स्मार्टफोन और लैपटॉप, एक नई महामारी

 

सरकार भी इस बदलाव में अहम भूमिका निभा रही है। विभिन्न राज्य सरकारें विशेष नीति और रियायतों के माध्यम से GCCs को आमंत्रित कर रही हैं। जैसे-

  • ओडिशा सरकार की Make in Odisha नीति के तहत निवेशकों को टैक्स छूट दी जा रही है।

  • मध्य प्रदेश सरकार ने इंदौर में IT कंपनियों को रियायती दर पर ज़मीन उपलब्ध कराने की नीति बनाई है।

  • तमिलनाडु में कोयंबटूर और तिरुचिरापल्ली जैसे शहरों में नए IT Parks विकसित किए जा रहे हैं।

  • उत्तर प्रदेश सरकार मेरठ, गोरखपुर और वाराणसी में IT हब विकसित करने की योजनाओं पर कार्य कर रही है।

इसके साथ ही, केंद्र सरकार की Startup India, Digital India और PLI (Production Linked Incentive) जैसी योजनाएं इस पूरी दिशा में सहायक बन रही हैं। इन इनीशिएटिव से न सिर्फ कंपनियों को सपोर्ट मिल रहा है, बल्कि छोटे शहरों में डिजिटल इंफ्रास्ट्रक्चर, इंटरनेट कनेक्टिविटी, एयरपोर्ट, सड़कों और मानव संसाधनों में भी लगातार सुधार हो रहा है।

 

हालांकि, हेल्थकेयर, स्कूलिंग और पब्लिक ट्रांसपोर्ट जैसी सुविधाओं में अभी भी काफी सुधार की आवश्यकता है। लेकिन जिस गति से निजी और सरकारी निवेश हो रहा है, उससे संकेत मिलता है कि Tier-2 और Tier-3 शहर आने वाले समय में भारत के प्रमुख GCC हब बनकर उभरेंगे।

Related Topic:#Google

शेयर करें

संबंधित खबरें

Reporter

और पढ़ें

हमारे बारे में

श्रेणियाँ

Copyright ©️ TIF MULTIMEDIA PRIVATE LIMITED | All Rights Reserved | Developed By TIF Technologies

CONTACT US | PRIVACY POLICY | TERMS OF USE | Sitemap