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Use Dipper at Night का कॉन्डम से क्या कनेक्शन है? समझिए

कई बातें ऐसी होती हैं जिन्हें हम हर दिन बोलते हैं और उनका एक मतलब भी समझते हैं लेकिन उनके पीछे एक और रोचक कहानी भी होती है। आइए ऐसी ही एक कहानी पढ़ते हैं।

dipper condoms

Dipper कॉन्डम, Photo Credit: Social Media

"धीरे चलोगे तो घर बार मिलेगा, तेज़ चलोगे तो हरिद्वार मिलेगा",
"दम है तो क्रॉस कर, नहीं तो बर्दाश्त कर"
"हमारी चलती है लोगों की जलती है"
"भगवान बचाए तीनों से, डॉक्टर पुलिस हसीनों से"
"हॉर्न प्लीज़" 
"OK TATA"
"जगह मिलने पर पास मिलेगा"  आदि-इत्यादि।

 

ये ऐसी लाइनें हैं जो ट्रक के पीछे आपको लिखी मिल जाएंगी। अमूमन इन सब का तो एक ही मतलब होता है जो आप देखते पढ़ते और समझते हैं लेकिन एक और लाइन है ‘Use Dipper at night’। इस लाइन का आप क्या मतलब निकालते हैं? आप कहेंगे कि यह तो सिंपल सा सुझाव है कि रात में लो-बीम का इस्तेमाल करिए। आपकी बात सही भी है लेकिन पूरी नहीं, क्योंकि इस लाइन का मकसद सिर्फ सड़क की दुर्घटना से बचाना ही नहीं था। मकसद था लोगों को कॉन्‍डम के इस्तेमाल के लिए प्रेरित करना।

 

शायद ही आपको पता हो पर Use Dipper at night!  में Dipper  कॉन्डम के लिए जाना गया क्योंकि इसी नाम से टाटा ने कॉन्डम्स बनाए। जो खासतौर पर ट्रक ड्राइवर्स के लिए थे। इसके अलावा Horn Please, OK TATA, यहां तक कि Bollywood Movie 'पति-पत्नी और वो' में जो 'वो' है उस नाम से भी कॉन्डम लांच किए गए। पर ऐसा क्यों हुआ? किस खास मकसद से ये सब किया गया? आइए सब समझते हैं।

 

समाज में आज भी कॉन्डम का नाम लेने या उसे खरीदने को लेकर एक टैबू है। लोग दुकान पर इसका नाम लेने पर भी कतराते हैं। ब्रांड का नाम लेकर भी मांगे तो भी चार बार अलग-बगल झांकते हैं।  फिर इशारों-इशारों में इसे वो, छतरी, टोपी, प्रोटेक्शन आदी-इत्यादि नाम से पुकारते हैं।।। दुकानदार भी उतने ही प्राइवेसी से इसे लिफाफे में बांध कर आपको धीरे से चिपका देता है। मानो आप किसी अवैध आइटम की तस्करी ले रहे हो। ये समाज का एक टैबू है। इसी टैबू को तोड़ने के लिए समय-समय पर कई तरह के मुहिम चलाए गए। मसलन पब्लिक प्लेसेस पर कॉन्डम के एटीएम जैसे बॉक्सेस लगे। सरकारी अस्पतालों और स्वास्थ्य केंद्रों  में गुप्त दान के जैसे इनकी गुप्त प्राप्ति का भी जुगाड़ बनाया गया। कैंपों में फ्री में बांटे गए, वगैरह-वगैरह। मकसद एक था कि लोग इसे ज्यादा-से ज्यादा  इस्तेमाल करें। 

80 और 90 के दशक में जागरूकता अभियान

 

इस्तेमाल, सिर्फ जनसंख्या विस्फोट को रोकना के लिए नहीं बल्कि, सेक्स से जुड़ी बीमारियों को भी रोकने के लिए।  भारत में HIV/AIDS से लड़ाई 1985 में शुरू हुई। उस समय सरकार ने यह पता लगाने के लिए जांच शुरू की कि यह वायरस किन इलाकों और किन लोगों में फैल रहा है। शुरू में (1985-1991) HIV के मामले खोजने, खून चढ़ाने से पहले उसकी जांच करने और लोगों को इस बीमारी के बारे में जागरूक करने पर ध्यान दिया गया। 

 

1992 में नेशनल एड्स और एसटीडी कंट्रोल प्रोग्राम (NACP) शुरू हुआ। इससे HIV/AIDS से लड़ने के लिए एक सही और मजबूत योजना बनी। पिछले 35 सालों में इस प्रोग्राम के कुल 5 फेज़ अब तक लॉन्च हुए। मकसद है 2030 तक AIDS को सार्वजनिक स्वास्थ्य संकट (Public Health Threat) के रूप में खत्म करना। सरकार के इसी प्रोग्राम को लागू करने और उसपर निगरानी रखने के लिए 1992 एक संस्था बनी जिसका नाम है National AIDS Control Organization (NACO)।

 

यही NACO,  HIV/AIDS के बढ़ते मामलों को रोकने की योजना बना रहा था। इसी दौरान उन्हें समझ आया कि ट्रक ड्राइवरों और सेक्स वर्कर्स को जागरूक किए बिना इस बीमारी को रोका नहीं जा सकता। अब ऐसा क्यों, इसे भी समझ लीजिए।

 

National Library of Medicine में YN Singh और A N Malviya की एक रिपोर्ट है। इसमें बताया गया कि भारत के हाईवे पर चलने वाले ट्रक ड्राइवर अक्सर गांवों और छोटे कस्बों में वेश्याओं के साथ असुरक्षित यौन संबंध बनाते थे। यहां तक कि कुछ ट्रक ड्राइवर तो समलैंगिक यौन संबंध भी बनाते थे। इनके बीच HIV/AIDS की जागरूकता बेहद कम थी इसलिए कॉन्डम का इस्तेमाल भी बहुत कम करते थे।

 

यहां जो लोग नहीं जानते उन्हें बता दें कि देश के कई राष्ट्रीय राजमार्गों के आस-पास ऐसे कई कस्बे बसे हैं जहां परंपरागत तौर पर वेश्याओं का एक ग्रुप काम करता है। हाइवे पर जाने वाले ट्रक ड्राइवर इनके कस्टमर होते हैं। वे हाइवे पर ही ट्रक में अपनी सर्विस देते हैं।   

ट्रक ड्राइवर्स पर था खास ध्यान

 

रिपोर्ट के मुताबिक 78%  ड्राइवर अलग-अलग महिलाओं के साथ संबंध बनाते थे और केवल 28% ही कॉन्डम का इस्तेमाल करते थे। सैंपस सर्वे में 302 में 3 ड्राइवर्स HIV पॉजिटिव भी पाए गए। इसके अलावा NACO की एक रिपोर्ट में पाया गया कि हर 10 में से 1 ट्रक ड्राइवर STD से पीड़ित था। STD मतलब सेक्शुअली ट्रांसमिटेड डिजीज जो कि असुरक्षित यौन संबंध से फैलता है। अब क्योंकि ये ड्राइवर्स देश के अलग-अलग राज्यों में घूमते रहते हैं और खून बेचने जैसी गतिविधियों में भी पाए जाते हैं, साथ ही इनके अपने भी परिवार होते हैं तो ऐसे में इनसे HIV/AIDS के फैलने का खतरा और ज्यादा हो जाता है।

 

सरकार की तरफ से की जा रही कोशिशें गांव-मोहल्लों तक तो पहुंच रही थी। जैसा कि हमने बताया कि स्वास्थ्य केंद्रों पर निरोध मुफ्त में भी बांटे जा रहे थे लेकिन ट्रक ड्राइवरों और यौनकर्मियों के लिए कुछ खास करने की जरूरत थी।

 

भारत के 17वें Chief Election Commissioner, S Y Quraishi जो 1971 बैच के IAS अधिकारी है वह 2005 में NACO के प्रमुख थे। उसी साल कुरैशी ने सुझाव दिया कि ट्रक ड्राइवरों के लिए एक खास कंडोम ब्रांड बनाया जाए। उन्होंने देखा कि ज्यादातर ट्रक के पीछे लिखा होता है "Use Dipper at Night" जिसका मतलब होता है कि रात में डिपर लाइट का इस्तेमाल करें। यह भी देखा गया कि लोगों ने इस लाइन को सीरियसली फॉलो भी किया। तो इससे उन्हें आइडिया आया कि अगर कंडोम का नाम "Dipper" रखा जाए, तो यह ट्रक ड्राइवर्स भी इसे लाइट के जैसे ही जरूरी समझेंगे और इसका इस्तेमाल करेंगे।
 
"Dipper"  के अलावा, दो और नाम भी सोचे गए –Horn Please और OK Tata। ये दोनों नाम भी भारतीय ट्रकों के पीछे आमतौर पर लिखे जाते हैं, इसलिए इन्हें भी अपनाने का विचार किया गया।

 

ड्राइवर्स के अलावा सेक्स वर्कर्स के लिए भी एक खास कॉन्डोम बनाया गया, जिसका नाम था "Woh"। यह नाम बॉलीवुड की फिल्म "पति, पत्नी और वो" से प्रेरित था, जिसमें "वो" एक एक्स्ट्रा-मैरिटल अफेयर का इंडिकेशन देता है। फिल्म में उसे विलेन के तौर पर देखा गया लेकिन इस मामले में "Woh" कोई विलेन नहीं, बल्कि एक दोस्त था, जो लोगों को HIV से बचा सकता था। जैसा कि हमने बताया की समाज में कॉन्डम एक टैबू है और लोग इसे खरीदने में इसका नाम लेने में हिचकिचाते हैं इसलिए ऐसे नाम रखे गए जिससे लोग इसे आसानी से मांग सके। 

NACO को रोकना पड़ा था अभियान

 

मुहिम अच्छी लगी तो इसपर काम भी शुरू किया गया। सरकार ने जीवन बीमा निगम (LIC) और नेशनल हाइवे अथॉरिटी ऑफ इंडिया (NHAI) से इस अभियान के लिए फंड जुटाया। Moods, USTAD और Rakshak जैसे ब्रांड्स के कॉन्डम बनाने वाली कंपनी Hindustan Latex Limited को इस अभियान के कंडोम्स को बनाने की ज़िम्मेदारी दी गई। फाइनेंसर की व्यवस्था हो गई, बनाने वाले की भी व्यवस्था हो गई। इसके बाद इसे ड्राइवर्स तक पहुंचाने की जिम्मेदारी Transport Corporation of India की एक सोशल सर्विस करने वाली फाउंडेशन को सौंपी गई लेकिन जैसे ही इन कंडोम ब्रांड्स के नाम की जानकारी सार्वजनिक हुई, एक प्राइवेट कंपनी ने "Dipper", "Horn Please" और "OK Tata" नाम के लिए ट्रेडमार्क रजिस्टर करवा लिया। इस कंपनी ने NACO और उनके प्रमुख एस. वाई. कुरैशी को लीगल नोटिस भी भेजा। इस वजह से NACO को यह अभियान रोकना पड़ा क्योंकि वह किसी कानूनी लड़ाई में पैसा नहीं लगाना चाहते थे।

 

इसके बाद 2016 में टाटा मोटर्स ने इस पूरे विवाद में एंट्री मारी। टाटा ने सारे लीगल बैटल को खत्म किया और Rediffusion Y&R के साथ मिलकर Dipper नाम से Condom  को लॉन्च किया। मकसद वही पुराना था। देश में HIV/AIDS से रोकथाम की मुहिम को बढ़ावा देना। Rediffusion Y&R देश की सबसे क्रिएटिव एड एजेंसियों में से एक है जिसने इन कॉन्डम्स की पैकेजींग को बेहद खास बना दिया था। इनपर कोई उत्तेजित करने वाली फोटो नहीं बल्कि ट्रक के पीछ बनने वाले ट्रक आर्ट को ही लगाया गया। ऐसा करने का पर्पस ये था कि इसे लेने और देने में किसी को भी कोई शर्म या झिझक ना हो। इस प्रोडक्ट और इसकी ब्रांडिंग ने लोगों को इतना लुभाया कि साल 2016 के Cannes Ad Fest में इसे Silver और Bronze Lion अवार्ड मिला।

 

Cannes Lions International Festival of Creativity जिसे आमतौर पर Cannes Ad Fest कहा जाता है। ये दुनिया का सबसे प्रतिष्ठित Ad और  Creativity का अवॉर्ड फेस्टिवल है। जो हर साल फ्रांस के Cannes शहर में आयोजित किया जाता है। इसमें विज्ञापन, ब्रांडिंग, मार्केटिंग, डिजिटल मीडिया और इनोवेशन के क्षेत्र में बेहतरीन काम को सम्मानित किया जाता है। 

 

 

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