logo

ट्रेंडिंग:

'भूत बंगला' या 'किस्मत का दरवाजा'? राजेश खन्ना के बंगले की पूरी कहानी

एक समय पर जिस घर को 'भूत बंगला' कहा जाता था, एक समय पर उसे लकी माना जाने लगा। काफी समय तक राजेश खन्ना इसमें रहे और बॉलीवुड के सुपरस्टार बने। पढ़िए इसकी पूरी कहानी।

Rajesh Khanna

राजेश खन्ना के बंगले की पूरी कहानी, Photo Credit: Khabargaon

सन् 1960, कहानी मुंबई की है, जो तब बॉम्बे था। देश को आजाद हुए 13-14 साल ही बीते थे, बॉम्बे अभी एंटरटेनमेंट या बिजनेस का हब नहीं बना था लेकिन लोग फिल्म इंडस्ट्री में जाकर मशहूर होने के सपने देखना शुरू कर चुके थे। सिनेमा में शोहरत और स्टारडम नापने के कई तरीके होते हैं, उनमें से एक तरीका यह भी है कि किस ऐक्टर के घर के बाहर कितनी भीड़ है। एक आलीशान घर कौन नहीं चाहता?

 

1960 के दशक के शुरुआती बरसों में ऐसे ही एक ऐक्टर ने एक घर खरीदा, घर क्या बंगला खरीदा; अरब सागर के समंदर को निहारता बॉम्बे के कार्टर रोड पर खड़ा एक आलीशान बंगला, ऐक्टर बंगले में शिफ्ट हुए और उनकी जैसे किस्मत ही बदल गई, मगर जितनी जल्दी किस्मत बदली उतनी तेज़ी से बिगड़ भी गई। बंगला बेचना पड़ा, अब इस बंगले में एक नया ऐक्टर आया; उसे भी इस आलीशान घर में आने के बाद पहले बेतहाशा शोहरत मिली लेकिन वह शोहरत इतनी जल्दी नाकामी में बदल गई कि एक रात को उस ऐक्टर ने अपने बंगले की छत पर खड़े होकर शराब के नशे में खुदा को आवाज दी और कहा, “ऐ परवरदिगार, हम गरीबों का इतना सख्त इम्तिहान न ले कि हम तेरे वजूद को इनकार का दें।”

 

हिन्दी सिनेमा के पहले सुपरस्टार राजेश खन्ना को यह कहने की जरूरत क्यों पड़ी? जिस घर में उन्होंने अपनी ज़िंदगी के बेहतरीन से लेकर बदतरीन साल देखे, जिस घर में राजेश खन्ना से आखिरी सांसें ली उसे भूत बांग्ला क्यों कहा गया? राजेश खन्ना से पहले राजेन्द्र कुमार और भारत भूषण जिस घर में रहे वह था किसका? यह कहानी मुंबई के एक ऐसे घर की है जिसके बारे में हिन्दी फिल्म इंडस्ट्री में, गॉसिप मैगजीन में, सबसे ज्यादा बातें होती थीं, यह कहानी उस घर की है जहां देश के पहले सुपरस्टार का दरबार लगता था, इस घर के नाम में आशीर्वाद तो था पर क्या उसने कभी किसी को आशीर्वाद दिया भी? इन सब सवालों के जवाब आपको मिलेंगे बॉम्बे के बांद्रा के कार्टर रोड पर बने एक बंगले की इस कहानी में।

कहां से शुरू हुई कहानी?

 

कहानी शुरू करते हैं भारत भूषण से, बैजू बावरा और मिर्जा ग़ालिब वाले भारत भूषण, भूषण ने एक एंग्लो इंडियन परिवार से एक घर खरीदा, बांद्रा के कार्ट रोड पर समंदर को निहारता 2 मंजिल का यह बंगला भारत भूषण के लिए लकी साबित नहीं हुआ, नतीजा यह हुआ कि उन्हें पैसों की कमी और कर्ज की वजह से यह घर बेचना पड़ा। यहीं से सुगबुगाहट शुरू हुई, आसपास के लोग बातें करने लगे; दबी आवाज में कहने लगे कि यह घर भारत भूषण का करियर खा गया। अंधविश्वास से भरी ये बातें इतनी ज्यादा होने लगीं कि बॉम्बे की प्राइम लोकेशन, समंदर के सामने होने के बावजूद इस घर को कोई लेने को तैयार नहीं था।

 

 

फिर आया साल 1957 और फिल्म बनी मदर इंडिया- इस फिल्म में रामू का रोल करने वाले राजेन्द्र कुमार को अब लोग जानने पहचानने लगे, बीआर चोपड़ा के साथ उन्होंने फिल्में साइन कर ली थी- उनके कानों तक पहुंची उसी घर की बात, जहां कभी भारत भूषण रहे थे। अंधविश्वास की बातें इतनी बढ़ गई थीं कि अब तक लोग इस घर को भूत बंगला कहने लगे थे। राजेन्द्र कुमार के पास एक ब्रोकर आया और बताया कि घर की कीमत 65 हजार रुपये है, राजेन्द्र कुमार को घर तो चाहिए ही था और ऐसी प्राइम लोकेशन पर 65 हजार की ठीक-ठाक कीमत पर घर मिल जाए तो कौन नहीं लेना चाहेगा, तो राजेन्द्र कुमार राजी हो गए।

 

अब बात आई पेमेंट करने की, राजेन्द्र कुमार पर लिखी किताब 'जुबली कुमार: द लाइफ एंड टाइम्स ऑफ अ सुपरस्टार' में सीमा सोनिक आलिमचंद लिखती हैं कि राजेन्द्र कुमार के पास घर की पेमेंट करने के लिए पैसे नहीं थे- उन्होंने ब्रोकर को 10 हजार रुपये तो तुरंत दे दिए और बाकी के 55 हजार के लिए बीआर चोपड़ा के पास गए। बीआर चोपड़ा ने राजेन्द्र कुमार को इस बात से कुछ दिन पहले ही 'कानून' और 'धूल का फूल' फिल्मों में साइन किया था लेकिन पेमेंट पर अभी बात नहीं हुई थी। राजेन्द्र कुमार गए और पैसे को लेकर सौदेबाजी शुरू हुई।
 
राजेन्द्र कुमार ने बीआर चोपड़ा को बताया कि उनके प्रोडक्शन कंट्रोलर सीवीके शास्त्री ने दोनों फिल्मों के लिए डेढ़ लाख रुपये ऑफर किए हैं, मगर मैं 2 लाख चाहता हूं। बीआर चोपड़ा ने कहा कि मैं तुम्हें 1 लाख 75 हजार दूंगा, डील डन हो गई। अब राजेन्द्रकुमार ने बीआर चोपड़ा से रीक्वेस्ट की कि आप 55 हजार रुपये मुझे अभी दे दीजिए, मुझे घर खरीदना है। बीआर चोपड़ा ने 55 हजार रुपये तुरंत हाथ में थमा दिए।

 

घर तो अपना हो गया मगर राजेन्द्र कुमार के मन में अभी वही बातें थीं कि यह घर भूत बंगला है, शापित है वगैरह वगैरह। उन्होंने अपने ब्रोकर से इसके बारे में पूछा, ब्रोकर ने कहानी यह सुनाई कि यहां एक आदमी रहता है जिसने कई सालों से घर का किराया नहीं दिया है। घर को कोई और न खरीदे और उसे निकालना न पड़े इसलिए वह तरह-तरह की कहानियां बनाता रहता है।

 

अंधविश्वास, राजेंद्र कुमार और कामयाबी

 

खैर, राजेन्द्र कुमार ने भी अंधविश्वास को किनारे किया और घर खरीद लिया, यहां से शुरू हुआ स्टारडम का वह दौर जिसमें राजेन्द्र कुमार की तमाम फिल्मों ने सिल्वर, गोल्डन और डायमंड जुबली पूरी की मतलब उनकी फिल्में सिनेमा हॉल में 25, 50 और 75 हफ्ते तक चलती रहीं। घराना, दिल एक मंदिर, मेरे महबूब, संगम, आई मिलन की बेला- कमर्शियल सक्सेस का ऐसा रिकॉर्ड हिन्दी सिनेमा में कोई हीरो पहली बार देख रहा था, घर से जुड़ी अंधविश्वास की सभी बातों को राजेन्द्र कुमार का करियर हर दिन खारिज कर रहा था। राजेन्द्र ने इस घर का नाम अपनी बेटी के नाम पर ‘डिम्पल’ रखा था।

 

कहानी आगे बढ़ती गई, राजेन्द्र कुमार अब इतने सक्सेसफुल हो चुके थे कि उन्होंने एक और बंगला खरीद लिया था। अब हुई इस कहानी में राजेश खन्ना की एंट्री और राजेश खन्ना की ही हम सबसे ज्यादा बात करेंगे क्योंकि वही इस घर में करीब 50 साल रहे थे।

राजेश खन्ना और आशीर्वाद

 

राजेश खन्ना का सफर अभी शुरू ही हो रहा था, इस बीच उन्हें पता चला कि राजेन्द्र कुमार अपना बंगला बेचना चाहते हैं, राजेश खन्ना ने उनसे कहा कि यह घर मुझे बेच दीजिए, मुझपर भी इस घर की नेमत होगी और मैं भी आपकी तरह शोहरत कमाऊंगा। राजेन्द्र कुमार घर बेचने को राजी हो गए बस एक शर्त रखी कि घर का नाम डिंपल नहीं रहेगा क्योंकि वह उनकी बेटी का नाम है। सीमा सोनिक आलिंचन्द की किताब के अनुसार राजेन्द्र कुमार ने कहा था, “तुमको इस घर का नाम बदलना होगा, यह मेरी बेटी का नाम है। बाकी तुम्हारे नए घर के लिए तुम्हें मेरा आशीर्वाद है, दुआ करता हूं कि यह घर तुम्हारे लिए जबरदस्त सफलता और शोहरत लेकर आए।” 65 हजार में जो घर राजेन्द्र कुमार ने खरीदा था, उसे राजेश खन्ना को साढ़े 3 लाख रुपये में बेच दिया।

 

1970 में राजेश खन्ना ने इस घर को खरीदने का फैसला लिया था और इससे पहले 1969 में शुरू हुआ स्टारदम का ऐसा दौर जिसने राजेश खन्ना को हिन्दी सिनेमा का पहला सुपरस्टार बना दिया था। उनकी 17 फिल्में लगातार सुपरहिट हुई थीं। राजेश खन्ना की यही सक्सेस थी, जिसपर नजर न लगे ऐसा सोचना था उनके पिता चुन्नीलाल खन्ना का, लिहाजा जब घर का नाम डिम्पल से बदलना था, तब चुन्नीलाल खुराना ने इसे नाम दिया आशीर्वाद। 

 

'राजेश खन्ना: द अनटोल्डस्टोरी ऑफ इंडियाज फर्स्ट सुपरस्टार' में यासिर उस्मान लिखते हैं कि चुन्नीलाल खुराना का तर्क था कि राजेश खन्ना पर इस घर की वजह से हमेशा आशीर्वाद बना रहेगा। आशीर्वाद नाम की वजह से एक और चीज हुई, राजेश खन्ना का पता हो गया, राजेश खन्ना, आशीर्वाद, बॉम्बे। यह वह दौर था जब सुपर स्टार राजेश खन्ना के घर के बाहर हजारों की संख्या में लोग जमा होते थे, उन्हें खुशबू भरे खत आते थे, कभी-कभी तो ये खत खून से लिखे भी होते थे, ऐसा हो गया था कि हिन्दी सिनेमा एक रियासत थी और राजेश खन्ना उसके बादशाह, शाहरुख खान के मन्नत, सलमान खान के गैलक्सी और अमिताभ बच्चन के जलसा से पहले जिस घर के बाहर फैंस और मीडिया वालों की भीड़ रहती थी वह घर आशीर्वाद ही था।

 

यासिर उस्मान लिखते हैं कि राजेश खन्ना के स्टार्डम का दौर ऐसा था कि आशीर्वाद में हर रोज महफ़िल लगती थी, बड़े बड़े डायरेक्टर, प्रोड्यूसर उनके साथ बैठते थे। इनमें ऋषिकेश मुखर्जी, एसडी बर्मन, सलिल चतुर्वेदी, सलीम खान जैसे तमाम लोग होते थे। सलीम खान कहते हैं कि सलमान, शाहरुख इन सबसे पहले जो स्टार थे वह राजेश खन्ना थे, उन्होंने कहा था कि ऐसा स्टारडम किसी का नहीं था।

 

आशीर्वाद में हर शाम होने वाली महफिलों को 'खन्ना दरबार' कहा जाता था, यह ऐसा था जैसे राजेश खन्ना राजा थे और उनका दरबार था 'खन्ना दरबार'। शराब का दौर देर रात तक चलता था, हंसी-ठहाके गूंजते रहते थे। राजेश खन्ना की कुर्सी बाकी लोगों से थोड़ी ऊंची थी और इस दरबार में कौन बैठेगा और कब तक बैठेगा, इसका फैसला खुद राजेश खन्ना करते थे। अगर उन्हें किसी की बात पसंद नहीं आती तो वह खड़े होते और कहते थे कि “आपको अब इस दरबार से जाना होगा” अपने फैंस से मिलने राजेश खन्ना छत पर आते थे और अपने सिग्नेचर स्टाइल में हाथ हिलाया करते थे। लोग उनके दीवाने थे, हिन्दी सिनेमा का हर ऐक्टर राजेश खन्ना जैसा फ़ेम चाहता था।

राजेश खन्ना के डाउनफॉल की कहानी

 

कहते हैं कि शोहरत की बुलंदी भी पल भर का तमाशा है, जिस डाल पर बैठे हो वह टूट भी सकती है। राजेश खन्ना के साथ भी कुछ ऐसा ही हुआ। 1973 में एक नए स्टार का जन्म हुआ, जिसका किरदार लिखने वाले वही सलीम खान थे जिन्होंने राजेश खन्ना को सबसे बड़ा स्टार कहा था। सलीम-जावेद की जोड़ी ने हिन्दी सिनेमा को एंग्री यंग मैन दिया। वह अमिताभ बच्चन जो राजेश खन्ना के साथ फिल्म आनंद में एक सपोर्टिंग ऐक्टर का रोल कर चुके थे, राजेश खन्ना ने शायद ही सोचा होगा कि उन्हीं अमिताभ बच्चन की शोहरत राजेश खन्ना के डाउनफॉल का कारण बनेगी।

 

देखते ही देखते राजेश खन्ना की जगह अमिताभ बच्चन ने ले ली और 1975-76 आते तक न सिर्फ राजेश खन्ना की फिल्में फ्लॉप होने लगी, उसके बाद ऐसा लगा जैसे उनसे जुड़ी हर एक चीज उनके डाउनफॉल की गवाही दे रही थी। राजेश खन्ना की पर्सनल लाइफ के बारे में तरह तरह की बातें हुई, उनके व्यवहार पर भी कई विवाद हुए जो कभी और का किस्सा है। जिस आशीर्वाद का नाम पहले डिम्पल था, उस आशीर्वाद की मालकिन भी डिम्पल कपाड़िया बनीं मगर 1973 में शुरू हुआ शादी का वह रिश्ता महज 9 साल में बिखर गया। डिम्पल ने आशीर्वाद छोड़ दिया था। खन्ना दरबार सूना था, जहां पहले बड़े बड़े डायरेक्टर आते थे वहां अब छोटे-मोटे प्रोडूसर या मौकापरास्त कैरेक्टर आर्टिस्ट आने लगे थे। राजेश खन्ना शराब के आदी हो चुके थे, वह एक बार बोतल को खोलते थे तो रुकते नहीं थे। पत्रकार अली पीटर जॉन से बात करते हुए राजेश खन्ना ने कहा भी था कि अगर ग़ालिब शराब पीकर मर सकता है तो मैं क्यों नहीं?

 

आशीर्वाद के पास जो भीड़ एक वक्त पर राजेश खन्ना को एक बार देखने के लिए आया करती थी, वह अब गायब थी, कार्टर रोड सूना पड़ा था। हिन्दी सिनेमा से जुड़ी मैगजीन्स में जिस आशीर्वाद के बारे में आर्टिकल लिखे जाते थे, उसी आशीर्वाद के बारे दबे सुरों में फिर वही बात होने लगी थी कि यह घर एक और ऐक्टर का करियर खा गया।

 

उन्होंने खुद एक इंटरव्यू में बताया था कि उनकी हालत ऐसी हो गई थी कि उन्होंने घर के सामने समंदर में जाकर मार जाने की भी सोची थी, वह समंदर की तरफ बढ़ ही रहे थे लेकिन खुद ही वापस आ गए। उस दिन उन्होंने खुद से कहा था, मैं नहीं मरूंगा किसी को ये कहने का मौका नहीं दूंगा कि राजेश खन्ना कायर था।

कैसे थे राजेश खन्ना के आखिरी दिन?

 

ऐसी ही एक रात थी जब राजेश खन्ना शराब के नशे में धुत होकर उसी आशीर्वाद की छत पर गए थे और रोते हुए आसमान में देख कर चिल्लाए थे, “ऐ परवरदिगार, हम गरीबों का इतना सख्त इम्तिहान न ले कि हम तेरे वजूद को इनकार कर दें।” फिल्मी करियर में डाउनफॉल और बेतहाशा मायूसी देखने के बाद राजेश खन्ना राजनीति में भी गए थे और कांग्रेस पार्टी से नई दिल्ली सीट से एक बार सांसद भी रहे, मगर राजनीति भी उन्हें रास नहीं आई। एक वक्त पर आशीर्वाद को इनकम टैक्स विभाग ने सीज कर लिया था, राजेश खन्ना इस दौरान बांद्रा लिंकिन रोड पर टाइटन के शोरूम के ऊपर अपने ऑफिस में रहने लगे थे। इसी दौरान अशोक त्यागी उनके पास एक फिल्म का ऑफर लेकर आए। 'रियासत', शायद दोनों को ही अंदाजा नहीं था कि यह राजेश खन्ना की आखिरी फिल्म साबित होगी। 

 

अशोक त्यागी बताते हैं कि रियासत की शूटिंग के दौरान राजेश खन्ना त्यागी को अपनी गाड़ी में बिठाकर ड्राइव पर ले गए थे और गाड़ी रुकी आशीर्वाद के सामने। राजेश खन्ना ने त्यागी से कहा था कि एक वक्त पर इस घर के सामने हजारों लोगों की भीड़ मुझे देखने के लिए जमा रहती थी। त्यागी ने कहा था, 'काकाजी यह भीड़ फिर से वापस आएगी', राजेश खन्ना थोड़ा सा मुस्कुराए और कहा, ‘अपनी फिल्म जल्दी पूरी करो।'

 

2012 आते-आते राजेश खन्ना की तबीयत काफी बिगड़ने लगी थी, वह अक्सर बेहोश हो जाते थे। जून से लेकर जुलाई तक वह कई बार अस्पताल में भर्ती हुए। जून में उनकी मौत की अफवाह भी फैल गई थी। फिर आया 21 जून 2012, जब सारी अफवाहों  को विराम देते हुए आशीर्वाद की छत पर 69 साल के बूढ़े और कमजोर राजेश खन्ना आए। आशीर्वाद के सामने उनके चाहने वालों, मीडिया वालों की भीड़ थी, लोग राजेश खन्ना की एक झलक पाने के लिए बेताब थे। राजेश खन्ना ने अपना सिग्नेचर स्टाइल में हाथ हिलाया। जो भीड़ थी वह 1969 की याद दिला रही थी, सब कुछ था, आशीर्वाद के सामने लोग थे, अखबार टीवी के कैमरे थे राजेश खन्ना अकेले नहीं थे लेकिन शायद बहुत देर हो चुकी थी।

 

अगले ही दिन राजेश खन्ना की तबीयत फिर बिगड़ी और वह फिर लीलावती अस्पताल में भर्ती हुए। यह सिलसिला अगले एक महीने तक चला, 17 जुलाई को राजेश खन्ना ने अपने परिवार के लोगों से कहा- मुझे घर ले चलो, मुझे आशीर्वाद ले चलो। डिम्पल कपाड़िया, ट्विनकल खन्ना, अक्षय कुमार उन्हें आशीर्वाद में वापस ले आए।

 

18 जुलाई 2012 को राजेश खन्ना अपने बिस्तर पर लेते थे। उनके आसपास उनके परिवार के लोग और उनके करीबी दोस्त थे। एक झूठी दिलासा थी जो राजेश खन्ना को हर कोई दे रहा था, सब कह रहे थे सब ठीक हो जाएगा, आप अच्छे हो जाएंगे। राजेश खन्ना ने आंखें खोलीं और कहा, 'टाइम अप हो गया, पैक अप! और पैक अप हो गया था', राजेश खन्ना ने 18 जुलाई 2012 को उसी आशीर्वाद में आखिरी सांस ली जहां 1970 में जाने के बाद उन्होंने कहा था, “अब लग रहा है कि मैं घर आ गया।”

 

राजेश खन्ना की मौत के बाद आशीर्वाद को बिल्डर जिन्हें शेट्टी बिल्डर्स कहा जाता था, उनको बेच दिया गया। जिस घर को राजेन्द्र कुमार ने 65 हजार में, राजेश खन्ना ने साढ़े 3 लाख में खरीदा था वह 90 करीब 40 साल बाद 90 करोड़ का बेचा गया। आशीर्वाद में राजेश खन्ना के बाद कोई नहीं रहा। 2014 में उस घर को जमींदोज़ करके उसकी जगह पर एक बिल्डिंग खड़ी कर दी गई। यह थी उस घर की कहानी जिसपर तमाम आरोप लगे लेकिन इसी घर ने हिन्दी सिनेमा के महानतम ऐक्टर्स को आशीर्वाद देने में कोई कमी नहीं की।

 

Related Topic:#Bollywood

शेयर करें

संबंधित खबरें

Reporter

और पढ़ें

design

हमारे बारे में

श्रेणियाँ

Copyright ©️ TIF MULTIMEDIA PRIVATE LIMITED | All Rights Reserved | Developed By TIF Technologies

CONTACT US | PRIVACY POLICY | TERMS OF USE | Sitemap