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बाकी दुनिया की तुलना में तेजी से गरम हो रहा यूरोप, साफ हवा भी है वजह

ग्लोबल वॉर्मिंग का असर तो पूरी दुनिया पर देखने को मिल रहा है लेकिन एक रिपोर्ट के मुताबिक यूरोप कहीं ज्यादा तेजी से गरम हो रहा है। क्या है वजह? पढ़ें पूरी रिपोर्ट।

representational image । Photo Credit: AI Generated

प्रतीकात्मक तस्वीर । Photo Credit: AI Generated

पूरी दुनिया जलवायु परिवर्तन की मार झेल रही है, लेकिन इस बीच यूरोप को लेकर एक चौंकाने वाला तथ्य सामने आया है। यह महाद्वीप बाकी दुनिया की तुलना में लगभग दोगुनी रफ्तार से गर्म हो रहा है। हाल ही में जारी 2024 यूरोपियन स्टेट ऑफ क्लाइमेट रिपोर्ट ने यह उजागर किया है कि यूरोप में औसत तापमान अब 2.4 डिग्री सेल्सियस तक बढ़ चुका है, जबकि वैश्विक औसत वृद्धि 1.3 डिग्री सेल्सियस के आसपास है। यह स्थिति न सिर्फ यूरोप के लिए, बल्कि पूरी पृथ्वी के भविष्य के लिए एक गंभीर चेतावनी है।

 

इस असामान्य गर्मी के पीछे कई कारण हैं जिन्होंने मिलकर यूरोप को एक ऐसे संकट की ओर धकेल दिया है, जहां हीटवेव अब सामान्य मौसम का हिस्सा बनती जा रही हैं। स्विट्जरलैंड के ग्लेशियर पिघल रहे हैं, भूमध्य सागर उबलने जैसा गर्म हो गया है, और शहरों में रात का तापमान भी अब काफी देखने को मिल रहा है। इस बढ़ते तापमान का असर न केवल मानव जीवन पर पड़ रहा है, बल्कि कृषि, जल आपूर्ति, ऊर्जा, जैव विविधता और आर्थिक स्थिरता पर भी गहरा प्रभाव डाल रहा है।

क्या कहते हैं आंकड़े?

दुनिया भर में सतह के औसत तापमान में प्री-इंडस्ट्रियल पीरियड (1850–1900) की तुलना में लगभग 1.3°C की बढ़ोतरी हुई है। साल 2024 में पहली बार दुनिया ने 1.5°C की सीमा पार की, जिसे जलवायु वैज्ञानिक 'खतरनाक सीमा' मानते हैं।

 

वहीं, यूरोप में औसत वार्षिक तापमान में 2.4°C की बढ़ोतरी दर्ज की गई है — यानी कि दुनिया में हुई बढ़ोत्तरी की तुलना में लगभग दोगुना। इस बदलाव का असर कई रूपों में देखने को मिल रहा है जैसे हीटवेव भीषण गर्मी की लहरों, भारी बारिश, बाढ़, हिमखंडों के पिघलने और बर्फ गिरने में गिरावट जैसी घटनाओं में साफ दिख रहा है।

 

2024 में पूर्वी यूरोप में साल भर औसत से अधिक गर्मी रही, जबकि दक्षिण-पूर्वी यूरोप — जैसे सर्बिया, क्रोएशिया, रोमानिया और बुल्गारिया — में इतिहास की सबसे लंबी और तीव्र गर्मी की लहर दर्ज की गई। इसके उलट, पश्चिमी यूरोप में बादल और बारिश अधिक रही, जिससे एक तरह की पूर्वी और पश्चिमी यूरोप में अलग अलग जलवायु की परिस्थितियां देखने को मिलीं।

 

2024 में ही 'कोल्ड स्ट्रेस डेज़' यानी असहनीय सर्दी वाले दिन भी इतिहास में सबसे कम थे। दक्षिण-पूर्वी यूरोप में अब तक की सबसे लंबी और भीषण हीटवेव आई, जहाँ 40°C से ऊपर तापमान लगातार 10 दिनों से अधिक बना रहा।

यूरोप बनाम बाकी दुनिया:

महाद्वीप

तापमान वृद्धि (1850 से अब तक)

यूरोप

2.4°C

ग्लोबल औसत

1.3°C

भारत

0.7°C

उत्तर अमेरिका

1.6°C

एशिया

1.8°C

ऑस्ट्रेलिया

1.4°C

 

क्या हैं कारण

आर्कटिक प्रभाव

यूरोप में तेजी से बढ़ते तापमान की एक बड़ी वजह है इसकी आर्कटिक (उत्तरी ध्रुव) के पास स्थित भौगोलिक स्थिति। यूरोप का बड़ा हिस्सा आर्कटिक क्षेत्र में आता है और यह क्षेत्र दुनिया की तुलना में तीन से चार गुना तेज़ी से गर्म हो रहा है। आर्कटिक में करीब 4 डिग्री सेंटीग्रेट तापमान की बढ़ोत्तरी हुई है।

 

इसका प्रमुख कारण है "एल्बिडो इफेक्ट"। दरअसल, बर्फ सूर्य की किरणों की ज्यादातर मात्रा को परावर्तित कर देता है, जिससे वायुमंडल ज्यादा गर्म नहीं होता, लेकिन जैसे-जैसे- आर्कटिक में बर्फ पिघल रही है, वैसे वैसे सतह दिखनी शुरू हो रही है। ऐसे में जमीन सूर्य की ऊर्जा को ज्यादा अवशोषित करती हैं। इससे और ज्यादा गर्मी बढ़ती है, और यह गर्मी बर्फ को और ज्यादा पिघलाती है। इसी को एल्बिडो इफेक्ट कहते हैं। फिर यह ऐसा दुष्चक्र शुरू हो जाता है जो कि ग्लोबल वॉर्मिंग को उत्पन्न करता है। अल्पाइन ग्लेशियरों ने 6.2% बर्फ पिघल चुकी है।

 

दक्षिणी ध्रुव (अंटार्कटिका) में ऐसा प्रभाव अपेक्षाकृत कम है, क्योंकि वहां के ग्लेशियर अधिक स्थिर और मोटे हैं। उत्तरी ध्रुव पर हो रहा यह असंतुलन सीधे तौर पर यूरोप को गर्म कर रहा है। 2024 में आर्कटिक के बर्फ का आकार केवल 4.0 मिलियन वर्ग किलोमीटर रह गया जो कि सामान्य से 40% कम था।

एरोसॉल्स में कमी

यूरोप में वायुमंडलीय प्रदूषण (एरोसोल्स) में आई कमी भी गर्मी बढ़ने का एक अहम कारण है। पिछले दो दशकों में, यूरोपीय संघ ने प्रदूषण कम करने के लिए सख्त नियम लागू किए, जिससे एरोसोल्स यानी वायुमंडल में तैरते महीन कण में भारी कमी आई।

 

हालांकि ये कण स्वास्थ्य के लिए हानिकारक होते हैं, लेकिन वे सूर्य की किरणों को वापस अंतरिक्ष में परावर्तित करके धरती की सतह को ठंडा बनाए रखते हैं। जब ये कण कम हो जाते हैं, तो सूर्य की किरणें उतनी ज्यादा मात्रा में परावर्तित नहीं हो पातीं जिससे तापमान बढ़ता है।

 

यह एक प्रकार का जलवायु "ट्रेड-ऑफ" है — साफ हवा बेहतर स्वास्थ्य देती है, लेकिन सूर्य की गर्मी से सुरक्षा कम हो जाती है। यूरोप में PM2.5 प्रदूषण 2000 से 2022 के बीच 36% घटा और सल्फर डाइऑक्साइड (SO₂) में 75% से ज्यादा की गिरावट आई।

जेट स्ट्रीम और समुद्र का असर

वहीं यूरोप के ऊपर बहने वाली जेट स्ट्रीम्स और हाई प्रेशर सिस्टम में आए बदलावों के कारण भी गर्मियों में हीटवेव्स की संख्या और अवधि बढ़ रही है। ये वातावरणीय परिवर्तन लगातार गर्मियों को अधिक भीषण और लंबा बना रहे हैं।

 

यूरोप के आस-पास के समुद्रों में समुद्री सतह का तापमान (SSTs) भी तेज़ी से बढ़ रहा है। समुद्र गर्म होकर ज्यादा वाष्पित हो रहे हैं, जिससे आसपास के भूभाग भी गर्म हो जाते हैं।

2024 में, भूमध्य सागर का तापमान सामान्य से 2–3°C अधिक रहा, जिससे समुद्री जीवन को नुकसान हुआ और मरीन हीटवेव्स बढ़ीं।

अर्बन हीट आइलैंड इफेक्ट

यूरोप के कई हिस्सों में शहरीकरण के कारण भी गर्मी बढ़ रही है। कंक्रीट की इमारतें, सड़कों पर पेड़-पौधों की कमी, और कम हवा के प्रवाह के कारण शहरों में तापमान गांवों के मुकाबले काफी ज्यादा रहता है।

 

पेरिस, बर्लिन, मिलान, मैड्रिड जैसे शहरों में रात का तापमान ग्रामीण इलाकों की तुलना में कहीं अधिक होता है। यह खासकर बुजुर्गों, गरीब तबके और बीमार लोगों के लिए खतरा बनता जा रहा है। पेरिस में 2024 की गर्मियों में 22 रातें ऐसी रहीं जब तापमान 20°C से नीचे नहीं गया, एथेंस में तापमान 44.2°C तक पहुंचा, मिलान में लगातार 9 रातों तक 25°C से ज्यादा तापमान दर्ज किया गया।

ग्लेशियर का पिघलना

यूरोप की अल्पाइन ग्लेशियर्स बड़ी तेज़ी से पिघल रही हैं। स्विस ग्लेशियर मॉनिटरिंग नेटवर्क के अनुसार, 2024 में स्विट्जरलैंड ने अपने ग्लेशियर वॉल्यूम का 6% खो दिया, जबकि 2023 में 5% नुकसान हुआ था। कई छोटे ग्लेशियर तो अब पूरी तरह से गायब हो चुके हैं। बर्फबारी में भी भारी गिरावट आई है। कई स्की रिसॉर्ट्स अब कृत्रिम बर्फ पर निर्भर हो गए हैं, जिससे लागत और पर्यावरणीय दबाव दोनों बढ़े हैं।

पिघल रहे पर्वत

यूरोप की गर्मी दुनिया के अन्य हिस्सों से कहीं ज्यादा है। उदाहरण के लिए:

  • जमीन की सतह में औसतन 1.59°C की वृद्धि हुई है, जबकि महासागर लगभग 0.9°C गर्म हुए हैं।

  • भारत, जो भूमध्यरेखीय क्षेत्र के करीब है और जहां एरोसोल्स अधिक हैं, वहां तापमान केवल 0.7°C बढ़ा है।

  • आर्कटिक में कुछ क्षेत्रों में 4°C तक की वृद्धि हो चुकी है।

यूरोप की प्रमुख पर्वत श्रृंखलाएं जैसे आल्प्स, पाइरेनीज़, और कार्पैथियन्स में तेजी से ग्लेशियर पिघल रहे हैं। पिछले 20 वर्षों में 1200 से ज्यादा छोटे ग्लेशियर खत्म हो चुके हैं। बर्फबारी के दिन औसतन 38 दिन कम हो गए हैं जिसकी वजह से जल आपूर्ति, हाइड्रोपावर, और पर्यटन पर सीधा असर डालता है।

 

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