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कैसे काम करता है हॉक-आई? DRS के फैसले में मददगार है यह टेक्नोलॉजी

हॉक-आई के आने के बाद से तीसरे अंपायर को फैसला लेने में काफी मदद मिलती है। यह टेक्नोलॉजी कितनी सटीक नहीं है और कैसे काम करती है? सब कुछ जान लीजिए।

Hawk Eye

हॉक-आई। (ICC/X)

21 अप्रैल 2024 को कोलकाता के ईडन गार्डन्स में IPL सीजन का 36वां मैच खेला जा रहा था। कोलकाता नाइटराइडर्स (KKR) और रॉयल चैलेंजर्स बेंगलुरु (RCB) के बीच। केकेआर ने पहले बैटिंग करते हुए 222 रन बनाए। 223 के टारगेट का पीछा करने उतरी आरसीबी की शुरुआत धमाकेदार रही। विराट कोहली और फाफ डु प्लेसिस की ओपनिंग जोड़ी दो ओवरों में 27 रन ठोक चुकी थी।

 

फिर तीसरा ओवर हर्षित राणा लेकर आए। उनके सामने कोहली थे। पहली ही गेंद पर वो बाहर निकले और फुलटॉस बनाकर मारने की कोशिश की। मगर ऊंचाई से चकमा खा गए। नतीजतन बॉल वहीं हवा में टंग गई। हर्षित राणा ने आसानी से कैच पकड़ लिया। चूंकि गेंद की हाइट ज्यादा थी। मामला थर्ड अंपायर के पास पहुंचा। उन्होंने जांच कर बताया कि बॉल लीगल थी। इसलिए कोहली आउट हैं। लेकिन कोहली इससे खुश नहीं थे। सोशल मीडिया पर भी लंबी बहस चली। इस बहस की वजह थी हॉक-आई टेक्नोलॉजी। जिसके जरिए ही थर्ड अंपायर ने कोहली को आउट दिया था।

 

PSL में भी हुआ विवाद

 

पाकिस्तान सुपर लीग के 2024 सीजन में हॉक-आई की वजह से ऐसी गफलत हुई कि टेक्नॉलजी कंपनी को चिट्ठी लिखकर माफी मांगनी पड़ी। अक्टूबर 2024 में भारत और न्यूजीलैंड के बीच टेस्ट सीरीज शुरू हुई। पहला मैच बेंगलुरु के एम चिन्नास्वामी स्टेडियम में था। मैच के पहले ही दिन बारिश होने लगी। बाद में बारिश रुकी भी। लेकिन मैच शुरू नहीं हो सका। क्योंकि हॉक-आई सिस्टम इंस्टॉल करने का मौका नहीं मिला था। इसलिए पहले दिन का खेल पूरी तरह से धुल गया। इन तीनों किस्सों में एक कॉमन फैक्टर है हॉक-आई टेक्नोलॉजी। आखिर ये सिस्टम है क्या? ये काम कैसे करता है और अगर ये इतना विवादित है तो इसका इस्तेमाल क्यों किया जाता है? 

 

कैसे काम करती है ये तकनीक?

 

हॉक-आई टेक्नोलॉजी एक सॉफ्टवेयर और कैमरा बेस्ड सिस्टम है।  माने  Triangulation के प्रिंसिपल पर काम करती हैं। Triangulation का मतलब है किसी ऑब्जेक्ट की सही स्थिति या गति को मापने के लिए अलग-अलग प्वाइंट से डाटा इकट्ठा करना। यह सिद्धांत आमतौर पर कैमरों या सेंसर के इस्तेमाल से अमल में लाया जाता है। आसान भाषा में समझें तो जब गेंद पिच पर डाली जाती है, तो कई कैमरे अलग-अलग एंगल से इसे रिकॉर्ड करते हैं। इन कैमरों के डाटा को मिलाकर और एक फॉर्मुले का इस्तेमाल कर सॉफ्टवेयर एक त्रिभुज बनाता है।

 

ज्यादा डिटेल में जानें तो स्क्रीन पर दिख रहे इस फॉर्मुला का इस्तेमाल कर दो कैमरा से बॉल की ट्रैजेक्ट्री को ट्रैक किया जाता है। ऐसे ही बाकी के कैमरा का भी इस्तेमाल करते हुए कैल्कुलेशन करते हैं जिससे बॉल की सही ट्रैजेक्ट्री पता चलती है। यही तकनीक हॉक-आई को इतना सटीक बनाती है।

 

हॉक-आई सिस्टम में दो खास हिस्से होते हैं। एक ट्रैकिंग सिस्टम और दूसरा वीडियो रिप्ले सिस्टम होता है। ट्रैकिंग सिस्टम में  6 हाई-स्पीड विजन प्रोसेसिंग कैमरा होते हैं जो 340 फ्रेम प्रति सेकंड की स्पीड से बॉल की ट्रैजेक्टरी माने उसकी स्पीड और उसके डायरेक्शन को अलग-अलग एंगल से रियल टाइम में ट्रैक करते हैं। इसके बाद हर एक कैमरा से मिले अलग-अलग एंगल के इनपुट को सॉफ्टवेयर की मदद से कंबाइंड और प्रोसेस किया जाता है। इसके बाद बॉल के पाथ का एक एक्यूरेट 3D रिप्रेजेंटेशन तैयार किया जाता है। इसी से ये चेक किया जाता है कि गेंद स्टंप्स से टकराती है या नहीं। आसान भाषा में कहें तो बॉलर की फेंकी हुई बॉल जो बैट्समैन  के पैड या फिर बॉडी पार्ट से टकरा कर रुक गई । अगर टक्कर नहीं होती तो वो बॉल कहां जाती, स्टंप से टकराती या नहीं? अगर स्टंप से टकराती है तो बैट्समैन आउट करार दिया जाएगा। LBW के जजमेंट के अलावा और भी कई चीजें इस सिस्टम से पता कि जाती हैं। 

 

- बॉल किस स्पिड से बॉलर के हाथ से निकली
- बैट्समैन का रिएक्शन टाइम क्या रहा
- बॉलर के हाथ से निकलने के बाद गेंद कितनी स्विंग करती हुई पिच की
- बॉल फेंकी कहां से गई
- बॉल कितनी बाउंस की
- बॉल में स्पिन कितना हुआ, यानी स्टंप से वो कितने दूर तक गई
- इसके अलावा ये प्रीडिक्ट करना की गेंद स्टंप के पास से कहां गुजरी होगी
- किस बैट्समैन ने ग्राउंड के किस एरिया में सिंगल, डबल, बाउंड्री और सिक्सर मारे उसे अलग-अलग रंगों से दिखाना
- किस एरिया में कितने रन बनाएं जैसे आंकड़े दिखाए और स्टोर किए जाते हैं। 

 

इन सारे आंकड़ों को मिलाकर ही वैगन व्हील और पिच मैप जैसे ग्राफ दिखाए जाते हैं।

 

 

स्टेडियम में एक दिन पहले होती है हॉक-आई की सेटिंग

 

इस ट्रैकिंग सिस्टम से कोच और खिलाड़ियों को ये भी जानकारी मिल जाती है कि उन्होंने कैसा प्रदर्शन किया है। क्रिकेट ग्राउंड में जब इसे इंस्टॉल किया जाता है तो पिच के कवर को हटाना पड़ता है। अमूमन स्टेडियम में हॉक-आई की सेटिंग मैच के एक दिन पहले की कर ली जाती है। इसके कैलिबरेशन के लिए कम से 90 मिनट का समय देना होता है। तब कहीं जा कर ये सिस्टम काम कर पाता है। यही कारण रहा कि जब अक्टूबर 2024 में भारत और न्यूजीलैंड के बीच टेस्ट मैच हुआ तब बारिश के कारण मैच रुका पर बारिश बंद होने के बाद भी समय से मैच शुरू नहीं किया जा सका। क्योंकि हॉक-आई की सेटिंग पूरी नहीं हुई थी, जिसकी वजह से मैच शुरू कराने के लिए कम से कम 90 मिनट का इंताजर करना पड़ा और नतीजन पहले दिन का खेल धुल गया।

 

हॉक-आई का इस्तेमाल और कहां होता है?

 

क्रिकेट के अलावा इस टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल फुटबॉल, टेनिस, रग्बी यूनियन, वॉलीबॉल और आइस हॉकी जैसे खेलों में किया जाता है। स्पोर्ट्स के अलावा इसका इस्तेमाल सैन्य उद्देश्यों के लिए भी अपनाया जाता है, जिससे दुश्मन के इलाके पर दूर से नजर रखने की सुविधा मिल जाती है। 

 

ब्रिटिश गणितज्ञ ने किया हॉक-आई को डेवलप

 

क्रिकेट में इसके इतिहास की बात करें तो साल 1999 में 26 साल के ब्रिटिश गणितज्ञ पॉल हॉकिन्स ने इस तकनीक को डेवलप किया। जिसे चैनल 4 ने साल 2001 में सबसे पहले लंदन के लॉर्ड्स क्रिकेट ग्राउंड में इंग्लैंड और पाकिस्तान के बीच हुए टेस्ट क्रिकेट मैच के दौरान इसका इस्तेमाल किया गया। इसके बाद साल 2008 के विंटर सीजन में ICC ने एक रेफरल ट्रायल सिस्टम का इस्तेमाल किया था जहां कोई भी टीम अंपायर के LBW के डिसीजन से असहमत होकर तीसरे अंपायर के पास जा सकता था। इसी साल कोलंबो में खेले गए भारत बनाम श्रीलंका टेस्ट मैच में डिसीजन रिव्यू सिस्टम (DRS) का इस्तेमाल किया गया था। DRS में 3 मेन टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल होता है - हॉक-आई, हॉट स्पॉट और स्निको मीटर।

 

DRS में बॉल ट्रैकिंग के लिए हॉक-आई, बैट और बॉल के कॉन्टैक्ट के लिए हॉट स्पॉट और बल्ले से आई आवाज के लिए स्निको मीटर का इस्तेमाल किया जाता है। साल 2008 में टेस्ट फिर साल 2011 में ODI में और साल 2017 से टी20आई में DRS के तहत हॉक-आई का इस्तेमाल देखा जाता है। इससे पहले LBW के डिसीजन वीडियो रिप्ले और स्निको मीटर जैसी टेक्नोलॉजी के जरिए ही पता की जाती थी। जो कई मामलों में कारगर साबित नहीं हुई। 

 

 

हॉक-आई भी 100 फीसदी सटीक नहीं

 

हालांकि हॉक-आई की मदद से ज्यादातर मामलों में सही फैसला होता है पर यह 100 फीसदी सटीक नहीं है। यहां बॉल की एग्जैक्ट ट्रैजिक्टरी बताने पर कि पिच करने के बाद बॉल कहां जाएगी इसमें 3.6 मिलिमीटर का मार्जिन ऑफ एरर रहता है। इसी वजह से कई बार इसे लेकर विवाद की स्थिति पैदा हो जाती है। हालिया उदाहरण की बात करें तो पिछले साल फरवरी के महीने में पीएसएल में क्वेटा ग्लैडिएटर्स ने इस्लामाबाद यूनाइटेड का सामना किया। क्वेटा की पारी के 11वें ओवर में आगा सलमान ने बॉल फेंका जिसपर साउथ अफ्रिका के राइली रूसो ने स्वीप शॉट लगाने की कोशिश की। लेकिन बैट का बॉल से कनेक्शन नहीं हो पाया और बॉल उनके पैड पर जा लगी। इस्लामाबाद ने LBW की जोरदार अपील की, लेकिन फील्ड अंपायर अलीम डार ने आउट नहीं दिया।

 

इसके बाद इस्लामाबाद ने तुरंत DRS लेने का फैसला किया। अंत में हॉक-आई ने निष्कर्ष निकाला कि गेंद स्टंप लाइन के बाहर बल्लेबाज के पैड से टकराई थी। स्लो-मोशन रिव्यू में गेंद घूमने के बजाय सीधी होती दिख रही थी, जिसे देखकर फील्डिंग करने वाली टीम और अंपायर अलीम डार दोनों ही हैरान रह गए। क्योंकि जिस हिसाब से बॉल जा रही थी, देखकर यही लगा कि उसकी स्टंप के साथ लाइन में होने की अधिक संभावना थी। मतलब राइली रूसो आउट थे। इसके बाद इस बारे में खूब चर्चा हुई।

 

मांगनी पड़ी माफी

 

ईएसपीएनक्रिकइन्फो की एक रिपोर्ट के अनुसार, बॉल-ट्रैकिंग तकनीक हॉक-आई ने पाकिस्तान क्रिकेट बोर्ड को एक माफीनामा भेजा, जिसमें स्वीकार किया कि उनकी तकनीक ने एक बड़ी गलती की। इसके अलावा मार्च 2024 में हुए भारत बनाम इंग्लैंड टेस्ट सीरीज में जो रूट के LBW आउट होने पर भी हॉक-ऑई पर सवाल उठे। इंग्लैंड के पूर्व कप्तान और कॉमेंटेटर माइकल वॉन ने हॉक-आई के आविष्कारक से यहां तक पूछ लिया कि आप ये बताइये कि ये काम कैसे करता है। और तो और जैसा साल 2024 के IPL में भी इसी सिस्टम की वजह से विराट कोहली को काफी गुस्सा आया था जिसकी बात हमने शुरू में ही की थी।

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