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मणिपुर का खेल सगोल कांगजेई कैसे दुनियाभर में पोलो बनकर छा गया?

पोलो किस देश का खेल है? घोड़ों पर सवार होकर खेले जाने वाले हॉकी जैसे खेल की शुरुआत कहां से हुई थी? ये सवाल अगर आपके भी मन में हैं तो आज आपके हर सवाल का जवाब मिलने वाला है।

Manipuri Sagol Kangjei

मणिपुर में सैकड़ों साल से सगोल कांगजेई खेल प्रचलन में है. (तस्वीर- manipuricommunity.com)

हर खेल, यूरोप से ही आए हैं, ऐसा नहीं है। कुछ खेल ऐसे हैं, जिन्हें दुनिया को हिंदुस्तान ने भी सिखाया है। इन्हीं खेलों में से एक खेल है पोलो। लिखित इतिहास में मणिपुर के इस स्थानीय खेल को जब वहां के लोगों ने ब्रिटिश अधिकारी लेफ्टिनेंट जो शेरर को दिखाया तो उन्होंने कहा कि ये खेल तो हमें सीखना चाहिए। फिर क्या था, दुनिया में देखते-देखते ये खेल लोकप्रिय हो गया। क्या है इसकी पूरी कहानी, आइए जानते हैं।

 

वैसे तो खानाबदोश लोग कब से पोलो खेल रहे हैं, इसकी ठीक तारीख बताना बेहद मुश्किल है। यह भी कहा जाता है कि 600 ईसा पूर्व यह खेल पर्शिया (ईरान) में खूब खेला जाता था। तब सैकड़ों लोग इस खेल में हिस्सा लेते थे। 100 खिलाड़ियों एक तरफ होते थे, 100 खिलाड़ी एक तरफ होते थे। ईरान में पोलो राष्ट्रीय खेल था। तिब्बत, चीन और जापान जैसे देशों में यह खूब खेला जाता है।

 

आधुनिक पोलो की शुरुआत मणिपुर से हुई थी। जब अंग्रेज अधिकारी लेफ्टिनेंट जो शेरर ने स्थानीय लोगों को पोलो खेलते हुए देखा तो हैरान रह गए। उन्हें ये खेल पसंद आया। उन्होंने कहा कि हमें भी इस खेल को सीखना चाहिए। साल 1859 में उन्होंने द सिलचल पोलो क्लब की स्थापना की। यह खेल देखते-देखते दुनियाभर में लोकप्रिय होता चला गया। साल 1868 में यह खेल माल्टा पहुंचा, 1869 में इंग्लैंड, आयरलैंड 1870 और अर्जेंटीना में 1872 और 1874 तक यह खेल ऑस्ट्रेलिया में पहुंच चुका था। 


मणिपुर का सगोल कांगजेई, दुनिया के पोले से बेहद अलग

मणिपुर में यह खेल घोड़ों पर आज भी अलग तरह से खेला जाता है। इस खेल का वहां स्थानीय भाषा में नाम सगोल कांगजेई भी कहते हैं। यह खेल, मणिपुर के स्थानीय लोगों का खेल है, जिसे अब राजा-महाराजाओं का खेल बना दिया गया है। मणिपुर के लोगों के पास एक स्थानीय घोड़े होते हैं, जिन्हें टट्टू भी कहा जाता है। यहां घोड़ों का एक मंदिर भी है, जिसके देवता का नाम रार्जिंग हैं। इन्हें पोलो का देवता भी माना गया है। मणिपुर के पारंपरिक ग्रंथों और लोककथाओं में भी इस खेल का जिक्र है।  थांगमेइरोल और कांगजेइरोल जैसी धार्मिक किताबों में भी इसका जिक्र है। 

 

कैसे खेला जाता है मणिपुरी पोलो?
मणिपुरी पोलो में हर टीम में 7-7 खिलाड़ी होते हैं। ये टट्टुओं पर सवार होते हैं। हर खिलाड़ी के पास एक पोलो स्टिक होती है, घुड़सवार गेंद हासिल करने और गोल दागने की कोशिश करते हैं। खिलाड़ी को गेंद को स्टिक से मारना होता है। मणिपुर का स्थानीय खेल, इंटरनेशनल खेलों से थोड़ा अलग होता है।

कैसे दुनिया में लोकप्रिय हुआ पोलो?
अमेरिका में साल 1876 तक पोलो क्लब बन गया था। 1890 तक 7 से ज्यादा पोलो क्लब बन गए थे। अमेरिका में आज सबसे ज्यादा पोलो क्लब और मशहूर खिलाड़ी हैं। 1886 में अमेरिका और इंग्लैंड के बीच वेस्टेचेस्टर पोलो क्लब का एक मैच हुआ था। इंग्लैंड की जीत इस मैच में हुई थी। 1909 से लेकर 1950 तक अमेरिका पोलो में सबसे कामयाद देश रहा। यह खेल कई दूसरे देशों में पॉपुलर हुआ। पोलो करीब 80 देशों में खेला जाता है। अर्जेंटीना ओपन, ब्रिटिश ओपन, यूएस ओपन, पोलो-डे-पेरिस कुछ प्रसिद्ध टूर्नामेंट हैं। 

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